पाइन लाइनें तो डली पर पानी नहीं आया
बस्ती के लोगों ने बताया कि साल 1986 में शहर से दूर जंगल में उस जमाने में सडक़ पर यायावर जिंदगी गुजार रहे 120 परिवारों को गांव गाजसर की रोही में सरकार की ओर से जमीनें दी गई। जिसमें 5 हजार की राशि जमीन मालिक व 7 हजार सरकार की ओर से करजे के तौर पर दिए गए। जिससे एक कमरा, रसोई व बाथरूम बनाए गए। हालांकि वो निर्माण तो जर्जर हो गया। इसके बाद हमनें अपनी मेहनत से मकान खड़े किए। उस समय से लेकर अब तक हमारे कंठ प्यासे हैं। पानी के लिए पाइपलाइनें तो डाली गई हैं, मगर मीठा पानी अभी तक नहीं आया। बीते चार दशकों से खारा पानी पीने को मजबूर हैं।
पुश्तैनी रोजगार छिन गया
लुहार परिवार के लोगों ने बताया 120 लोगों में से फिलहाल यहां पर कुल 32 परिवार बसते हैं। बाकी के लोग सुविधाएं नहीं होने के कारण यहां आए ही नहीं। उनकी जमीनें आज भी खाली पड़ी हैं। लोगों ने बताया कि यहां बसने का सबसे बड़ा नुकसान ये हुआ कि हमारा लोहे के औजार बनाने का पुश्तैनी काम छिन गया। अब मजदूरी कर परिवार का गुजर – बसर कर रहे हैं।
सडक़ें नहीं, कीचड़ से होकर गुजर रहे
बस्ती के बाबूलाल लुहार ने बताया कि खंबे लगा दिए, मगर ये अब तक रोशन नहीं हुए। इसके अलावा सडकें नहीं होने के कारण बस्ती के लोगों को रोज कीचड़ से होकर गुजरना पड़ता है। इसके अलावा नजदीक औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण प्रदूषण से शाम को दम घुटता है।
सामुदायिक भवन का वादा अधूरा
भंवरलाल लुहार ने बताया कि बस्ती में विधायक मद से 10 लाखा की राशि के सामुदायिक भवन बनाने की घोषणा तो हुई। मगर, अभी तक से सिरे नहीं चढ पाई। इसके लिए जमीन भी आवंटित हो गई। इसके अलावा शिव मंदिर भी अधूरा पड़ा है। सुवाई देवी ने बताया कि कई बार पट्टों के लिए आवेदन ने किया। मगर अभी तक हमारे पट्टे नहीं बनाए गए हैं। इसके अलावा राशन कार्डों में मोहर नहीं लगने से अनाज भी नहीं मिलता। वृद्धावस्था पेंशन का फायदा भी नहीं मिल रहा।
एक किमी की दूरी तय कर पढ रहे बच्चे
मनीषा चौहान व कांता ने बताया कि हमारे बच्चों को करीब एक किमी की दूरी तय कर गाजसर गांव की स्कूल में पढने के लिए जाना पड़ता है। बस्ती में ही स्कूल खुले तो राहत मिले।
लोग बोले…
चार दशक से मीठे पानी के लिए तरस रहे हैं। पाइप लाइने तो डाल दी, मगर इनमें अभी तक पानी नहीं आया। खारा पानी पीने को मजबूर हैं। नेताजी महज आश्वासन देते हैं।
संजय लुहार, गाजसर
बस्ती में खंबे तो लग गए, मगर अधिकांश पर लाइटें नहीं लगने से अंधेरा रहता है। सड़कें नहीं होने से लाेगों को कीचड़ से होकर गुजरना पड़ता है। विधायक कोटे से 10 लाख के सामुदायिक भवन बनाने की घोषणा हुई थी। जमीन भी आवंटित हो गई। मगर, अभी तक भवन नहीं बनाया गया है।
मूर्तिदेवी लुहार, गाजसर
पुश्तैनी रोजगार छिन गया, अब मजदूरी कर घर चला रहे हैं। राशनकार्ड में मोहर नहीं लगने से मुफ्त अनाज नहीं मिलता। पेंशन का लाभी भी नहीं मिलता। नेताजी आते हैं, वादा करके चले जाते हैं। हमारा कोई धणी- धोरी नहीं है।
संपत देवी लुहार, गाजसर