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Acharya Mahashraman- भव के हिसाब से देखें तो दीक्षा का परम महत्व – आचार्य महाश्रमण

चूरू. छापर. जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के महातपस्वी, शांतिदूत आचार्य महाश्रमण की मंगल सन्निधि में शुक्रवार को चातुर्मासकाल के दौरान प्रवचन पाण्डाल में दूसरी बार जैन भगवती दीक्षा समारोह का आयोजन हुआ। इस आध्यात्मिक भव्यता वाले समारोह को अपने नयनों से निहारने को प्रवचन पंडाल में आचार्यश्री के पदार्पण से पूर्व ही विराट जनमेदिनी उमड़ी हुई थी। मुमुक्षु भाविका ने सभी दीक्षार्थियों का परिचय प्रस्तुत किया।

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चूरू

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Vijay

Sep 10, 2022

Acharya Mahashraman- भव के हिसाब से देखें तो दीक्षा का परम महत्व - आचार्य महाश्रमण

Acharya Mahashraman- भव के हिसाब से देखें तो दीक्षा का परम महत्व - आचार्य महाश्रमण

प्रवचन पाण्डाल में दूसरी बार जैन भगवती दीक्षा समारोह

मुमुक्षु भाविका ने सभी दीक्षार्थियों का परिचय प्रस्तुत किया
चूरू. छापर. जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के महातपस्वी, शांतिदूत आचार्य महाश्रमण की मंगल सन्निधि में शुक्रवार को चातुर्मासकाल के दौरान प्रवचन पाण्डाल में दूसरी बार जैन भगवती दीक्षा समारोह का आयोजन हुआ। इस आध्यात्मिक भव्यता वाले समारोह को अपने नयनों से निहारने को प्रवचन पंडाल में आचार्यश्री के पदार्पण से पूर्व ही विराट जनमेदिनी उमड़ी हुई थी। मुमुक्षु भाविका ने सभी दीक्षार्थियों का परिचय प्रस्तुत किया। पारमार्थिक शिक्षण संस्थान के अध्यक्ष बजरंग जैन ने सभी दीक्षार्थियों के परिजनों से प्राप्त आज्ञा पत्र का वाचन किया। तदुपरान्त दीक्षा लेने को तत्पर दीक्षार्थी अश्विनी जैन, रोशनी लूणिया, तारा लूणिया व दीक्षा नाहटा ने अपनी श्रद्धासिक्त अभिव्यक्ति दी। साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभा ने दीक्षा के महत्त्व और तेरापंथ की दीक्षा प्रणाली को व्याख्यायित किया।
आचार्य महाश्रमण ने दीक्षा प्रदान करने से पूर्व कहा कि परम पूज्य कालूगणी की जन्मधरा पर इस चातुर्मास के दौरान दीक्षा का दूसरा समारोह हो रहा है। एक चातुर्मास लगने से पहले आदि मंगल के रूप में हुआ तो दूसरा यह समारोह चातुर्मासकाल के मध्य में मानों मध्य को मंगल करने के लिए हो रहा है। भव के हिसाब से देखें तो दीक्षा का परम महत्त्व है। आज चार दीक्षाएं हैं। दीक्षा के लिए ज्ञातिजनों से लिखित आज्ञा पत्र तो प्राप्त हो गया है। उसका भी अपना महत्व है, किन्तु मौखिक आदेश भी प्राप्त होने चाहिए। दीक्षार्थियों के परिजनों ने अपने स्थान पर खड़े होकर आचार्यश्री को अपनी सहमति वन्दना के रूप में प्रदान की। केशलोच के उपक्रम में नवदीक्षित संत का केशलोच स्वयं आचार्य आर्षवाणी का उच्चारण करते हुए अपने हाथों से किया तो वहीं तीन नवदीक्षित साध्वियों का केशलोच साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभा ने किया।
आचार्य ने अश्विनी को मुनि आगमकुमार, रोशनी को साध्वी रोशनीप्रभा, तारा को साध्वी तीर्थप्रभा और दीक्षा को साध्वी दीक्षाप्रभा नाम प्रदान किए। आचार्य ने नवदीक्षितों को मंगल पाथेय के रूप में आध्यात्मिक ओज आहार भी प्रदान किया। मुनि धर्मरुचि ने भी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया।दीक्षा के उपक्रम के दौरान आचार्य ने कहा कि आज के दिन ही मेरी भी दीक्षा हुई थी। मुझे दीक्षा लिए हुए 48 वर्ष 4 महीने को गए। मेरी दीक्षा सरदारशहर में गुरुदेव तुलसी की आज्ञा से मुनिश्री सुमेरमल स्वामी द्वारा हुई। आज साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा की अद्र्धवार्षिक पुण्यतिथि है। हमारे नए साध्वीप्रमुखा को पद पर आसीन हुए दो महीने हो गए। आज के दिन आचार्यश्री ने अपने संसारपक्षीय ज्येष्ठ भ्राता सुजानमल दूगड़ सहित बहनों और अन्य लोगों को याद करते हुए अनेक घटना प्रसंगों का वर्णन किया।