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Acharya Mahashraman- जीव, अजीव दोनों हमेशा थे, आज भी हैं और आगे भी रहेंगे- आचार्य महाश्रमण

चूरू. छापर. जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्याहरवें अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण ने छापर चातुर्मास के दौरान शनिवार को नित्य प्रवचन में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के तत्त्वावधान में 17वें तेरापंथ किशोर मण्डल अधिवेशन के क्रम में देश से लगभग 700 किशोरों को आचार्य ने संस्कारवान बनने के साथ तत्वज्ञान के क्षेत्र में अच्छे विद्वता अर्जित करने की प्रेरणा प्रदान की।

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चूरू

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Vijay

Jul 31, 2022

Acharya Mahashraman- जीव, अजीव दोनों हमेशा थे, आज भी हैं और आगे भी रहेंगे- आचार्य महाश्रमण

Acharya Mahashraman- जीव, अजीव दोनों हमेशा थे, आज भी हैं और आगे भी रहेंगे- आचार्य महाश्रमण

आचार्य का चातुर्मास: अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के तत्वावधान में १७वां तेरापंथ किशोर मण्डल अधिवेशन
चूरू. छापर. जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्याहरवें अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण ने छापर चातुर्मास के दौरान शनिवार को नित्य प्रवचन में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के तत्त्वावधान में 17वें तेरापंथ किशोर मण्डल अधिवेशन के क्रम में देश से लगभग 700 किशोरों को आचार्य ने संस्कारवान बनने के साथ तत्वज्ञान के क्षेत्र में अच्छे विद्वता अर्जित करने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्य महाश्रमण ने कहा कि भगवान महावीर के एक शिष्य अनगार रोह ने यह प्रश्न किया था जिसका जवाब देते हुए भगवान महावीर ने कहा कि लोक और अलोक पहले भी थे और आगे भी रहेंगे। दोनों शाश्वत भाव है, अनानुपूर्वी है।
इनमें पहले और पीछे का कोई क्रम ही नहीं है। जीव और अजीव में भी कोई आगे-पीछे की बात नहीं, दोनों ही हमेशा थे, आज भी हैं और आगे भी रहेंगे। जैन दर्शन का सिद्धांत है कि सृष्टि हमेशा थीं और यहां जीव और अजीव दोनों ही हमेशा से ही हैं। सृष्टि एक शाश्वत तत्व है। अनेक दर्शन और सिद्धांतों ने अपने-अपने अनुसार सृष्टि के निर्माण के विषय में अपने-अपने सिद्धांत देते हैं। जैन दर्शन के अनुसार सृष्टि में जीव और अजीव दो ही तत्व हैं।
अलोक अथवा अलोकाकाश में तो केवल अजीव ही हैं। उसमें जीव होते ही नहीं है। सारे जीव और पुद्गल इस लोकाकाश में ही हैं। स्वर्ग, नरक, उध्र्वलोक और अधोलोक सब इसी लोकाकाश में है।
जैन दर्शन में आत्मवाद, कर्मवाद, लोक-अलोकवाद और क्रियावाद चार सिद्धांत हैं, जिनमें तीन तो अतिमहत्वपूर्ण हैं। तदुपरान्त आचार्यश्री ने आचार्य कालूगणी के अंतिम समय के कार्यों का वर्णन करते हुए उनके महाप्रयाण और महाप्रयाण के बाद मुनि मगनजी द्वारा मनुहार कर किस प्रकार मुनि कालू को आचार्य पट्ट पर बिठाया-ऐसे प्रसंगों का रोचक वर्णन और सुमधुर संगान किया। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्याजी ने श्रद्धालुओं को प्रेरणा प्रदान की। 17वें राष्ट्रीय तेरापंथ किशोर मण्डल के अधिवेशन के संदर्भ में तेरापंथ किशोर मण्डल के राष्ट्रीय प्रभारी श्री विशाल पितलिया ने अवगति प्रदान की। तेरापंथ किशोर मण्डल द्वारा गीत का संगान किया। इस संदर्भ में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री पंकज डागा ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा ने भी किशोरों को उत्प्रेरित किया। मुख्यमुनि ने भी किशोरों को संबोधित किया।