
चूरू.
शहर की बसावट के आस-पास के वर्षों में निर्मित सब्जी मंडी स्थित मंगलेश्वर महादेव मंदिर आज जन-जन की आस्था का केंद्र बना हुआ है। यहां सिद्धेश्वर महादेव शिवलिंग स्थित है। जो भवन निर्माण के लिए खुदाई के दौरान जमीन से निकला था। शिवलिंग निकलने पर यहां भवन की बजाय मंदिर का निर्माण किया गया। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि मंदिर में मांगी गई हर मंगल कामना भगवान भोले नाथ पूरी करते हैं। इसीलिए इसका नाम पड़ा मंगलेश्वर महादेव मंदिर। आज भी अपने प्राचीन स्वरूप में बरकरार इस मंदिर के मुख्य मंडप में चौमुखी शिवलिंग श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
400 वर्षों से संभाल रहे मंदिर
शहर के मनीष हारित ने बताया कि उनके पूर्वजों से लेकर आज तक करीब 400 वर्षों से उनका परिवार मंदिर की देखरेख कर रहा है। कभी इसके आस-पास श्मशान हुआ करता था। तात्कालीन ठाकुरों ने यहां हवेली निर्माण के लिए जमीन की खुदाई शुरू करवाई थी। उस समय जमीन से शिवलिंग निकला। कामना सिद्ध होने पर इसे सिद्धेश्वर महादेव नाम दिया गया। बाद में मंदिर के विकास के साथ-साथ यहां चौमुखी मंगलेश्वर महादेव शिवलिंग की स्थापना की गई। करीब 40-45 वर्षों से मंदिर में आ रहे श्रद्धालु महेश पांडिया ने बताया कि मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की हर मंगल कामना पूरी होती है। मंदिर के मुख्य मंडप में शिवलिंग के अलावा शिव-पार्वती, नंदी, गणेश सहित शिव परिवार की मूर्तियां विराजमान है। अन्य मंडप में धूणा है। राम-हनुमान सहित अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां आस्था की केंद्र है।
यहां चारों पहर होता है शिव का रुद्राभिषेक
चूरू. शहर की शंकर नाथ छतरी का शिव मंदिर अब लोगों के लिए आस्था का केंद्र बन गया है। छतरी का शिव मंदिर तो हमेशा से संतो की तपोस्थली रहा है। मंदिर में नाथ सम्प्रदाय के संत भानीनाथ भी इस मंदिर में तप व साधना कर चुके हैं। स्थापना के समय से ही यहां पर शिवलिंग बना हुआ है। श्रावण-भाद्रपद व शिवरात्रि पर मंदिर में चारों पहर रूद्राभिषेक व विशेष पूजा अर्चना की जाती है। संत निर्मल नाथ व हरिकृष्ण दाधीच के मुताबिक सैकड़ों वर्ष पहले फतेहपुर आश्रम के संत अमृतनाथ के तीन शिष्य भानीनाथ, किशननाथ व द्वारकानाथ चूरू आए थे। तीनों संतों ने इसी छतरी में भगवान शिव की उपासना की। यहां उपासना करने के कई वर्षों बाद संत भानीनाथ ने तारानगर रोड पर अपना आश्रम बना लिया। इस छतरी की जिम्मेदारी शंकरनाथ को दे दी गई। तभी से इसका नामकरण शंकरनाथ की छतरी पड़ गया। इस मंदिर की बनावट लोगों को बरबस ही अपनी और आकर्षित करती है।
छतरी आस्था बनी
अब शिवालय की शंकरनाथ के बाद संत सुंदरनाथ व वर्तमान में इसकी देखरेख संत निर्मल नाथ कर रहे हंै। यह छतरी लोगों के लिए किसी आस्था से कम नहीं है। इस छतरी में लोग काफी संख्या में दर्शन के लिए आते हैं।
यहां झोली व कमंडल मौजूद
यहां शिव मंदिर में वर्षों तक शिव की उपासना करने वाले संत भानीनाथ की झोली व कमंडल आज भी मौजूद है। जिसे देखने श्रद्धालू आते हैं। मंदिर में चारों पहर भगवान शिव का रूद्राभिषेक किया जाता है। रात्रि को क्षेत्र के संतों की ओर से भजन संध्या होती है। वहीं सावन के महीने में भी दिन-रात विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इसमें होने वाले कार्यक्रमों की लोगों की विशेष रूप से भागीदारी होती है।
श्रद्धा ने घर को ही बना दिया शिवालय
सुजानगढ़. स्टेशन रोड पर स्थित शिव मन्दिर 72 वर्ष पुराना है। पुजारी हरीश मिश्रा ने बताया कि यहां के जयदेवप्रसाद सर्राफ शिव उपासक थे। उन्होंने अपने घर में ही शिवलिंग की स्थापना कर मन्दिर बना दिया। जयदेव सर्राफ के अन्य भाइयों ने जब उनकी भक्ति देखी तब उन्होंने घर में अन्य कमरों का निर्माण कराया। करीब 35 वर्ष पहले जयदेव सर्राफ के परिजन सीताराम ने बड़े सभागार का निर्माण कराया। मन्दिर के प्रथम पुजारी नथमल, किशनलाल पुरोहित, मदनलाल, सीताराम रह चुके हैं। महाशिव रात्रि पर कतार लगना शुरू हो जाती है।
Published on:
14 Feb 2018 10:28 pm
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