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पं. भरत व्यास की यादों को जीवंत बनाएगा शहर का उत्तराधा बाजार

शहर में गढ़ चौराहा से छोटा मंदिर तक का उत्तराधा बाजार अब वर्तमान और आने वाली पीढिय़ों की स्मृतियों में गीतकार पं. भरत व्यास की यादें जीवंत बनाएगा।

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 Pandit Bharat Vyas

Pandit Bharat Vyas churu

चूरू. शहर में गढ़ चौराहा से छोटा मंदिर तक का उत्तराधा बाजार अब वर्तमान और आने वाली पीढिय़ों की स्मृतियों में गीतकार पं. भरत व्यास की यादें जीवंत बनाएगा। जी हां! आगामी दिनों में इस बाजार को नवरंग, रानी रूपमति व मन की जीत, जैसी अनेक चर्चित हिन्दी फिल्मों में कालजयी गीतों के रचयिता पं. भरत व्यास के नाम से जाना जाएगा। नगर परिषद प्रशासन वर्तमान में चल रहे पं. व्यास के जन्म शताब्दी वर्ष पर शहर को ये बड़ी सौगात देने जा रहा है। इसके लिए गत दिनों हुई नगर परिषद की साधारण सभा की बैठक में प्रस्ताव पारित कर कार्रवाई शुरू की जा चुकी है।

गीतों के दम पर दी चूरू को पहचान

पं. व्यास ने अपने गीतों और अभिनय के दम पर चूरू को फिल्म जगत ही नहीं बल्कि देशभर में पहचान दी थी। इनके लिखे मुख्य गीत हैं 'आ लौट के आजा मेरे मीत..., ए मालिक तेरे बंदे हम..., आधा है चंद्रमा रात आधी..., ज्योत से ज्योत जलाते चलो..., जरा सामने तो आवो छलिए..., कहा भी ना जाए, चुप रहा..., निर्बल की लड़ाई बलवान... (१९५६ का सर्वश्रेष्ठ गीत) सहित सैकड़ों अन्य गीत।

जानिए, पं. भरत व्यास को


पं. भरत व्यास का जन्म १७ नवंबर १९१७ को चूरू में पं. शिवदत्तराय व्यास के यहां हुआ। जब भरत तीन वर्ष के थे तो पिता शिवदत्त राय का निधन हो गया। बचपन से ही प्रतिभा के धनी पं. व्यास ने पहली से 10वीं तक की परीक्षा चूरू के लक्ष्मीनारायण बागला स्कूल से पास की। आगे बीकानेर के डूंगर कॉलेज में कॉमर्स विषय की पढ़ाई की। चूरू में वे लगातार मंचों पर सक्रिय रहे। उन्होंने रामू-चनणा व ढोला-मरवण नाटक लिखे और इनमें अभिनय भी किया। सन 1962-63 तक चूरू में इनका आना-जाना भी रहा।

''देश-विदेश में चूरू को पहचान दिलाने वाले गीतकार पं. भरत व्यास के नाम से शहर में मार्ग का नामकरण किया जाना नगर परिषद का सराहनीय कदम है। शहर को साहित्य, संगीत व लोक संस्कृति के रूप में पहचान देने वाले ऐसे अन्य लोगों के नामों को भी चिर स्थाई बनाने की दिशा में भी काम किया जाना चाहिए।''
सुनील भाऊवाला, अध्यक्ष चूरू कपड़ा व्यापार मंडल, चूरू

''पं. भरत व्यास के गीतों की ये विशेषता है कि अधिकतर गीतों में हिन्दी शब्दों का ही उपयोग किया गया है। उनके नाम से मार्ग का नामकरण होने से आने वाली पीढिय़ों के लिए वे प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे। जन्म शताब्दी वर्ष पर ये सौगात वाकई में शहर के लिए अनूठी है।''
सुशील हारित, गायक कलाकार, चूरू

''गत दिनों पं. व्यास के शताब्दी वर्ष पर नगर श्री में हुए आयोजन में मैंने इनके नाम पर मार्ग के नामकरण की बात रखी थी। बड़ी खुशी है कि नगर परिषद ने ऐसे महान गीतकार की स्मृतियों को चिरस्थाई बनाए रखने के लिए ये कदम उठाया है। ''
श्यामसुंदर शर्मा, संगीतकार, चूरू