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जिन खेतों में उड़ती थी रेत उन खेतों में फल रहे रुपए

चूरू/सांडवा. तेहनदेसर निवासी लिछूराम मंडा के जिन खेतों में कभी रेत उड़ती थी वहां आज पेड़ पौधे फलों से झूल रहे हैं। इसके कारण प्रतिवर्ष चार से पांच लाख रुपए की आमदनी शुरू हो गई है।

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चूरू/सांडवा.

तेहनदेसर निवासी लिछूराम मंडा के जिन खेतों में कभी रेत उड़ती थी वहां आज पेड़ पौधे फलों से झूल रहे हैं। इसके कारण प्रतिवर्ष चार से पांच लाख रुपए की आमदनी शुरू हो गई है। इसके पीछे लिछूराम की करीब तीन साल की मेहनत है। यह संभव हुआ सिंदूरी अनार व खजूर की बागवानी के साथ ग्वार पाठे की खेती से। इससे जहां खेतों में हरियाली छा गई वहीं किसान का परिवार भी खुशहाल हो गया। अनार, खजूर के खेती ने उसके जीवन को बदल दिया।

 

इस सीजन में एक लाख रुपए का अनार बेचा

 

इसके अलावा लिछूराम ने करीब चार बीघे में अनार की बागवानी की है जिसमें करीब १३ सौ सिंदूरी अनार के पौधे लगा रखे हैं। कुछ पौधे तीन साल व कुछ दो साल पहले लगाए थे। करीब चार सौ पौधों में उत्पादन शुरू हो गया है। प्रत्येक पेड़ में आठ से दस किलो अनार लगते हैं। साल में दो बार फल लगते हैं। एक सीजन मार्च और दूसरी सीजन अक्टूबर से शुरू होती है। इस सीजन में करीब एक लाख रुपए की बिक्री की है।

 

यूं शुरू की अनार व खजूर की खेती

 

पानी के अभाव में कोई भी खेती करना संभव नहीं हो रहा था। मूंगफली की खेती भी करना मुश्किल हो गया था। कुछ साल पहले कृषि विभाग की मीटिंग में चूरू गया था वहां पर अधिकारियों ने उसे अनार व खजूर की खेती के लिए पे्ररित किया। उसके बाद उसने बागवानी के लिए मानस बनाया। कुछ साल पहले लिछूराम ने धोरों में अनार व खजूर की खेती करने का मन बनाया और मजबूत इरादों के साथ वर्ष 2014 में तेहनदेसर के नजदीक पांडुराई तलाई से तीन किलोमीटर आगे अनार व खजूर के पौधों की बागवानी की। निरंतर देखभाल करते चार साल में पौधे तैयार होकर फल देने लगे। अनार व खजूर की गुणवत्ता अच्छी होने के कारण दाम भी अच्छे मिल जाते हैं।

 

चार बीघे में लगाया खजूर

 

लिछूराम मंडा ने धोरों में पानी की एक-एक बूंद सींचकर चार बीघा भूमि में खजूर का बाग लगाया। तीसरे साल में खजूर का अच्छा उत्पादन हासिल किया। कम पानी वाले क्षेत्र में यहां बागवानी किसी सपने से कम नहीं है। मंडा ने बताया कि चार वर्ष पहले उसने चार बीघे में 156 पौधे लगाए थे। उस वक्त लोगों ने कहा कि पानी की कमी से यहां बागवानी बहुत कठिन है। लेकिन बुलंद इरादों के साथ लिछूराम ने किसी की परवाह नहीं करते हुए पौधों की लगन से परवरिश की।

32 सौ रुपए प्रति पौधा आया खर्च

उन्होंने बताया कि इजराइल की ड्रिप सिस्टम पद्धति से बाग तैयार किया। फल के गुच्छों को पक्षियों से बचाने के लिए कपड़े से ढंककर रखते हैं। इनपौधों में 150 मादा व छह नर खजूर के पौधे हैं। उन्होंने सबसे पहले 3200 रुपए प्रति पौधे के हिसाब से जोधपुर से खलास खजूर किस्म का पौधा मंगवाया। इस पर सरकार की ओर से 90 प्रतिशत अनुदान दिया गया। क्लोन पद्धति से तैयार इस किस्म को लगाने पर किसी प्रकार की दवा या उर्वरक की जरूरत नहीं होती है। इससे तैयार खजूर में गुठली का आकार विदेशी किस्म से छोटा होता है। कच्चे फल का स्टोरेज 15 दिन तक किया जा सकता है।

करीब 80 रुपए किलो बिकता खजूर

लिछूराम ने बताया कि बाजार में खजूर के दाम अच्छे मिल रहे हैं। खजूर ६0 से ८0 रुपए किलो तक बिक रहा है। तीन साल पहले खजूर के पौधों पर फलों के गुच्छे लगने शुरू हुए। तीन साल पहले पौधों पर मीठे फलों के गुच्छे लगने पर फसल के साथ अतिरिक्त आमदनी होने लगी है। अब तक एक पौधे पर 10 से 20 किलो वजन के खजूर के गुच्छे लग रहे हैं। खजूर के पौधे की उम्र 70 साल से अधिक होती है। ज्यों-ज्यों पौधा बड़ा होता है। फलों के गुच्छे का वजन भी बढ़ता रहता है। साल में करीब दो लाख रुपए की आमदनी इससे हो जाती है।

 

खजूर के साथ अन्य खेती भी

लिछूराम ने बताया कि खजूर के पौधों के बीच खाली जगह में गेहूं, सरसों, चना के अलावा ग्वार, मूंग आदि की भी खेती करता है। इसमें किसी प्रकार की दिक्कत नहीं नहीं होती। इन फसलों की सिंचाई के साथ खजूर की भी सिंचाई हो जाती है। इससे भी अच्छी आमदनी हो जाती है। जब से उसने यह खेती अपनाई है तब से उसकी जीवन में चार-चांद लग गया है। करीब 12 बीघे ग्वारपाठा पाठा है। दो बाज बेजते हैं। प्रतिबीघा 40 रुपए की बचत होती है भाव सही होनें पर।