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रंग-बिरंगी तितलियों से महकी चूरू के तालछापर की धरती, हिमालय से हजारों किलोमीटर उड़ान भर हर साल पहुंचती हैं

तालछापर अभयारण्य के रेंजर उमेश बागोतिया ने बताया कि भारत में तितलियों की करीब 1501 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से करीब 25 से 30 प्रजातियां तालछापर (Tal Chhapar) और इसके आसपास के क्षेत्रों में निवास करती हैं। सर्दियों के मौसम में हिमालयी क्षेत्रों और पूर्वोत्तर भारत से कई तितलियां हजारों किलोमीटर का सफर तय कर हर साल यहां पहुंचती हैं।

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-भागीरथ सुथार

छापर. हल्की ठंड शुरू होने के साथ खेत खलिहानों से लेकर बाजारों में पिछले कई दिनों से तितलियों की भरमार है।हवा के झोकों के साथ असंख्य तितलियां उड़ती हुई देखी जा सकती हैं। कीट जगत में सबसे सुंदर और आकर्षक प्राणी मानी जाने वाली तितलियां इन दिनों तालछापर अभयारण्य (Tal Chhapar Sanctuary) को भी अपने रंगों से महका महका रही हैं। जब ये फूलों पर मकरंद चुगने के लिए एक डाल से दूसरी डाल पर उड़ती हैं, तो उनके रंग-बिरंगे पंखों की छटा हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देती हैं। बच्चों के लिए तो यह दृश्य किसी जीवंत इंद्रधनुष से कम नहीं होता।

देश में 1501 प्रजातियां, तालछापर में मिलती हैं 30 के करीब
तालछापर अभयारण्य के रेंजर उमेश बागोतिया ने बताया कि भारत में तितलियों की करीब 1501 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से करीब 25 से 30 प्रजातियां तालछापर (Tal Chhapar) और इसके आसपास के क्षेत्रों में निवास करती हैं। सर्दियों के मौसम में हिमालयी क्षेत्रों और पूर्वोत्तर भारत से कई तितलियां हजारों किलोमीटर का सफर तय कर हर साल यहां पहुंचती हैं। रेतीली धोरों की गर्म भूमि पर स्थित तालछापर के नम घास के मैदान इनके लिए आदर्श आवास बन जाते हैं। यहां येलो पेंसी, प्रेसिस हियरटा, ब्लैक स्पॉटेड ग्रास ज्वेल, प्लेन टाइगर, पायोनियर, स्मॉल ऑरेंज, व्हाइट ऑरेंज टिप, ब्लू पेंसी, इंडियन मॉथ, येलो मॉथ और डेजर्ट मॉथ जैसी कई रंगीन प्रजातियां देखी जा सकती हैं।

फूलों के मकरंद से चलती हैं जिंदगी
जीवविज्ञानियों के अनुसार तितलियां केवल तरल आहार लेती हैं। इनके मुंह में पाइप जैसी संरचना होती है, जिससे ये फूलों का मकरंद चूसती हैं। भोजन की कमी होने पर ये सड़े-गले फलों या जमीन पर जमा पानी से भी काम चला लेती हैं। तितलियां पूर्णतः शाकाहारी होती हैं और इनमें लाल रक्त कणिकाएं नहीं होती। इनका रक्त सफेद रंग का होता है।

जन्म से व्यस्क बनने तक सिर्फ 28 दिन
राजकीय लोहिया कॉलेज के जीव विज्ञान के डॉ. केसी सोनी ने बताया कि तितलियों की उम्र बहुत कम होती है। एक बार में ये सैकड़ों अंडे देती हैं, जिन्हें पौधों की पत्तियों पर चिपका देती हैं। इसके बाद लार्वा, फिर प्यूपा और अंत में व्यस्क तितली बनती है। यह पूरा चक्र करीब 20 से 28 दिन में पूरा होता है।सबसे छोटी तितलियों की उम्र एक सप्ताह, बड़ी प्रजातियों की एक माह, जबकि अमेरिका की मोनार्क तितली की उम्र करीब 9 महीने तक होती है।

तितलियां प्रति सेकंड पांच बार पंख फड़फड़ाती हैं और 80 से 90 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ सकती हैं। इनके पंखों पर मौजूद रंग पानी में भी फीके नहीं पड़ते। खास बात यह है कि पंखों पर कई सूक्ष्म आंखें होती हैं, जो इन्हें आसपास के खतरों का आभास करा देती हैं।

अद्भुत संरचना, तेज दिमाग
एसीएफ क्रांति सिंह ने बताया कि तितलियों के दो जोड़ी पंख और तीन जोड़ी पैर होते हैं। सिर पर एक जोड़ी एंटीना होती है, जो गंध और दिशा पहचानने में मदद करती है। मुंह में स्प्रिंग जैसी प्रोबोसिस नली होती है, जिससे ये फूलों का रस चूसती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार तितलियों का दिमाग बेहद तेज होता है। इनमें देखने, सुनने, स्वाद पहचानने और दिशा भांपने की अद्भुत क्षमता होती है। व्यस्क अवस्था में ये प्रायः उसी पौधे या पेड़ पर लौट आती हैं, जहां इन्होंने अपने जीवन की शुरुआत की थी।