वर्गाकार है कस्बे की बसावट
लोगों ने बताया कि उस समय कस्बे की नींव गंगाबाई ने चांदी की करणी से चुनाई कर रखी थी। वास्तु के हिसाब से चार ब्लॉक में कस्बे को बसाया गया। इसकी सुरक्षा के लिए चार कोनों पर बुर्जें बनवाई गई। जिसमें दक्षिण – पश्चिम दिशा की बुर्ज सबसे बड़ी व उत्तरी – पूर्वी दिशा में सबसे छोटी बनाई गई। बुर्जों के नाम भी लोक देवताओं के नाम पर रखे गए। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि दो बुर्जें तोप रखने के लिए ही बनवाई गई थी। जिनसे दिन में दो बार गोले दागकर सलामी दी जाती थी। लोगों के मुताबिक कस्बा बसाने वाले केडिया परिवार के जयपुर राजघराने से अच्छे संबंध थे। यही वजह थी कि रतननगर को जयपुर के जैसे वर्गाकार बसाया गया।
ये है कस्बे को आबाद करने की कहानी
बुजुर्गों ने बताया कि बिसाऊ मूल के सेठ नंदराम केडिया की बिसाऊ के तत्कालीन ठाकुर श्यामसिंह से अनबन हो गई थी। इसके बाद सेठ नंदराम केडिया ने अपना अलग से कस्बा बसा दिया। इसका नाम बीकानेर रियासत के तत्कालीन राजा सरदारसिंह के पिता रतनसिंह के नाम पर रतन नगर रखा गया था। राजा ने आस पडोस के गांवों से अधिगृहित कर कस्बे के लिए 79 हजार बीघा जमीन दी थी। उस समय 6 हजार बीघा जमीन गोचर के लिए कायम की थी जो आज वन विभाग के अधीन है। कस्बे में बाकायदा जयपुर के जैसे कई चौपड़ कायम किए गए। इसके अलावा अनाज मंडी विकसित की गई। उस समय इलाके की धान की सबसे बड़ी मंडी यहां थीं।
जानें रतननगर की खासियतें
– इलाके का पहला ऐसा गांव जिसकी सुरक्षा के लिए उस जमाने में परकोटा बनाया गया था।
– परकोटे की सुरक्षा के लिए कस्बे के चारों तरफ चार बड़े मुख्य प्रवेशद्वार बनाए गए।
– तोपें रखने के लिए बुर्जों का निर्माण करवाया गया, तोपों से दिन में दो बार सलामी दी जाती थी।
-पूर्वी- उत्तरी ब्लॉक में14, दक्षिणी ब्लॉक में 22, उत्तर – पश्चिम में 8 व दक्षिण में 4 हवेलियां बनीं हैं।
– कस्बे की सीमाएं चूरू, देपालसर, मेघसर, थैलासर, हणुतपुरा, ऊंटवालिया व बीनासर आदि गांवों से लगती है।
– कस्बे के चौराहे आपस में एक दूसरे से मिलते हैं। यहां पर सभी भूखंड 110 गुणा 220 आकार के हैं।
– चौराहों पर उस जमाने में पीपल व नीम के पेड़ लगाए गए थे।
– परकोटे के भीतर दीवारों के पास खाली भूमि छोड़ी गई थी, जिसमें कई प्रजातियों के पेड़ लगाए गए।