ये था मामला
गांव गोपालपुरा में तीन दिन पहले खनन इलाके में एक नाले की खुदाई के दौरान प्राचीन मूर्ति निकली है। ग्रामीणों के मुताबिक मूर्ति जैन धर्मावलम्बियों के कसी तीर्थंकर है। मूर्ति कितनी पुरानी है इसे लेकर फिलहाल संशय बना हुआ है। पूरी तस्वीर पुरात्तव विभाग की जांच के बाद ही साफ हो पाएगी। बहरहाल मूर्ति सुजानगढ़ के सदर थाने में रखवाई गई है।
महाभारतकालीन है गांव गोपालपुरा
ग्रामीणों ने बताया कि महाभारत काल में गांव को गुरु द्रोणाचार्य ने बसाया था। उन्होंने यहां पर तपस्या भी की थी। यही वजह है यहां के पहाड़ों को द्रोणगिरी की पहाडिय़ों के नाम से जाना जाता है। गांव के लोगों ने बताया कि यहां पर कभी ओसवाल जाति के मूथा परिवारों के बसे होने के प्रमाण भी मिले हैं। वहीं कई सभ्यताओं के यहां पर अवशेष कई बार खुदाई के दौरान निकले हैं। गांव का इतिहास काफी समृद्धशाली रहा है। यहां के कण- कण में बीदावत राजपूतों के शौर्य की गाथाएं विद्यमान हैं।
550 साल पुराना है डूंगर बालाजी का मंदिर
द्रोणगिरी की पहाडिय़ों की चोटी पर स्थित है प्राचीन डूंगर बालाजी मंदिर है। ग्रामीणों ने बताया कि मंदिर करीब 550 साल पुराना है। पहाड़ी पर बालाजी की मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी। इसके बाद तत्कालीन बीकानेर नरेश ने यहां पर मंदिर बनवाकर प्रतिमा को विराजित किया। मंदिर में बालाजी के दर्शन करने के लिए करीब ढाई हजार फीट की चढाई करनी पड़ती है।
मां- बेटे का प्राचीन मंदिर
द्रोणगिरि की पहाडिय़ों की तलहटी में बसे गांव डूंगरास आथूणा में करीब 4 सौ 31 वर्ष पुराना मां कालीका का मंदिर। इस मंदिर की खासियत यह है कि एकमात्र दक्षिणमुखी मंदिर है जहां मां कालिका विराजमान है। मंदिर में मां के दर्शन के लिए पहाड़ी पर बनीं 5 सौ 51 सीढिय़ां चढऩी पड़ती है। तब कहीं जाकर मां- बेटे के दर्शन श्रद्धालुओं को होते हैं। सपाट पहाड़ी पर एक ही पत्थर को तराश कर 3 भाग में 5 फीट ऊंचा मां कालिका का दक्षिणमुखी मंदिर है। ठीक इसके सामने 5 फीट ऊंचा बाल गणेश का मंदिर बना है। पुजारी कमलेश शर्मा के मुताबिक मंदिर पर लगे शिलालेख पर अंकित तिथि के अनुसार यह विसं 1646 में बनाया गया था।
ग्रामीण बोले…
गांव गोपालपुरा एक प्राचीन सभ्यता वाला गांव है। यहां पर कई सभ्यताएं पनपी हैं। खनन इलाकों में खुदाई के दौरान कई बार प्राचीन अवशेष निकले हैं। अब गांव में प्राचीन मूर्मि निकली है। गांव की विरासत को सहेजने के लिए यहां पर पुरातत्व विभाग की ओर से सर्वे करवाया जाना जरूरी है।
गणपत दास स्वामी, उप सरपंच गोपालपुरा
खनन के चलते गांव की खूबसरती पर ग्रहण लगा है। कभी गुरु द्रोण की तपोभूमि रहे इस गांव खनन माफियाओं की भेंट चढ गया है। अंधाधुंध खनन के चलते यहां की प्राचीन पहाडिय़ां अब विलुप्त होने की कगार पर है। समय रहते नहीं संभले तो यहां की पारिस्थितिकी खत्म हो जाएगी।
ईश्वरसिंह राजपूत, ग्रामीण गोपालपुरा
गांव के समीप ही तालछापर अभयारण्य है। काले हिरणों सहित विदेशी प्रजातियों के पक्षी इस इलाके में अपना बसेरा करते हैं। खनन के धमाकों से वन्यजीव प्रभावित होते हैं। खनन बंद नहीं किया गया तो यहां के आसपास के इलाकों में बसने वाले वन्यजीवों के जीवन पर संकट गहरा जाएगा।
सवाई सिंह, ग्रामीण गोपालपुरा
खनन के दौरान गांव में जैन धर्म के तीर्थंकर की प्राचीन मूर्ति निकलने के बाद गांव के लोग यहां पर मंदिर बनाने की मांग कर रहे हैं। कभी यहां पर ओसवाल समाज के मूथा परिवारों का बसेरा था। गांव के लोग अब पुरातत्व विभाग की ओर से सर्वे करवाने की मांग कर रहे हैं। बुधवार को इसे लेकर कलक्टर को ज्ञापन सौंपा जाएगा। इसके लेकर मंगलवार को डूंगर बालाजी मंदिर में ग्रामीणों ने बैठक की है।
सविता राठी, सरपंच गोपालपुरा
इनका कहना है :
गांव गोपालपुरा के खनन इलाके में खुदाई करते समय यह मूर्ति मिली है। पुरात्त्व विभाग को सूचित किया गया है। अभी तक विभाग की टीम नहीं पहुंची है। मैं स्वयं सदर थाने में जाकर आया था। अब टीम आने के बाद ही पूरे मामले के बारे में बता पाउंगा। बहरहाल मूर्ति सदर थाने में सुरक्षित रखवाई गई है।
सुभाष स्वामी, तहसीलदार, सुजानगढ़