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Asia cup: दीपक चाहर की कामयाबी के लिए पिता ने छोड़ दी थी सरकारी नौकरी, बोले- तपस्या का फल मिला

एशिया कप 2018 में भारत के आखिरी सुपर फोर मुकाबले में आज भारत का सामना अफगानिस्तान से हो रहा है। इस मैच में भारत की कप्तानी महेंद्र सिंह धोनी संभाल रहे हैं।

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Asia cup: दीपक चाहर की कामयाबी के लिए पिता ने छोड़ दी थी सरकारी नौकरी, बोले- तपस्या का फल मिला

नई दिल्ली। एशिया कप 2018 के सुपर फोर में भारतीय टीम आज अपना आखिरी मुकाबला खेल रही है। दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में खेले जा रहे इस मुकाबले में भारतीय टीम में कुल पांच बदलाव किए गए है। कप्तान रोहित शर्मा ने इस मुकाबले में अपने बेंच स्ट्रेथ को आजमाया है। फाइनल में पहले ही पहुंच चुकी भारतीय टीम की ओर से इस मैच में दीपक चाहर एकदिवसीय क्रिकेट में अपना पर्दापण कर रहे हैं। मूलत: उत्तरप्रदेश के आगरा के रहने वाले दीपक चाहर भारतीय घरेलू क्रिकेट में राजस्थान की ओर से खेलते है। लिहाजा उनके चयन से भारत के दो सबसे बड़े प्रांतों के क्रिकेट प्रेमियों में खुशी है। बताते चले कि क्षेत्रफल के नजरिए से राजस्थान जबकि आबादी के नजरिए से उत्तरप्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है।

राजस्थान के लिए दोहरी खुशी-
राजस्थान के क्रिकेट प्रेमियों के लिए आज का मुकाबला दोहरी खुशी देने वाला साबित हुआ। कारण कि ऐसा पहली बार हुआ जब भारतीय क्रिकेट टीम में राजस्थान के दो खिलाड़ियों को मौका मिला हो। दीपक चाहर के अलावा खलील अहमद भी आज भारतीय टीम में शामिल है। दीपक चाहर को मिली इस बड़ी कामयाबी से उनके परिजन काफी खुश हैं। दीपक के पिता लोकेंद्र सिंह चाहर का कहना है कि आज उनकी तपस्या का फल उन्हें मिला है।

टी-20 में पहले कर चुके हैं डेब्यू-
दीपक चाहर के बारे में बता दें कि वो इसी साल भारत के इंग्लैंड दौरे के दौरान टी-20 क्रिकेट में अपना डेब्यू कर चुके हैं। घरेलू क्रिकेट और आईपीएल 2018 में चेन्नई सुपरकिंग्स की ओर दीपक ने शानदार स्विंग बॉलिंग से चयनकर्ताओं का दिल जीत लिया था। बतौर क्रिकेटर दीपक अब किसी पहचान के मोहताज नहीं है। लेकिन उनकी इस पहचान के पीछे उनके परिजन और खासकर पिता लोकेंद्र का बहुत बड़ा योगदान है।

बेटे के लिए नौकरी तक छोड़ दी-
दीपक के पिता लोकेंद्र सिंह चाहर भारतीय सेना में नौकरी करते थे। इस नौकरी के कारण लोकेंद्र बेटे को कोचिंग में ज्यादा समय नहीं दे पा रहे थे। इस वजह से उन्होंने अक्तूबर 2006 में नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़े जाने पर पूछते ही लोकेंद्र बड़ी सरलता से कहते हैं कि औलाद के लिए लोग क्या-क्या कुर्बार्नियां नहीं देते, नौकरी छोड़ना कोई बड़ी बात नहीं। मुझे इस बात की खुशी है कि अब तपस्या का फल मिल रहा है।