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2009 के बाद शिक्षकों की नियुक्ति की जांच के आदेश

locationग्वालियरPublished: May 10, 2019 06:47:46 pm

हाईकोर्ट ने जीवाजी विश्वविद्यालय से संबद्ध अनुदान प्राप्त निजी कॉलेजों में वर्ष 2009 के बाद यूजीसी के नियमों के विरुद्ध की गई नियुक्तियों की जांच के आदेश दिए हैं

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2009 के बाद शिक्षकों की नियुक्ति की जांच के आदेश

ग्वालियर. हाईकोर्ट ने जीवाजी विश्वविद्यालय से संबद्ध अनुदान प्राप्त निजी कॉलेजों में वर्ष 2009 के बाद यूजीसी के नियमों के विरुद्ध की गई नियुक्तियों की जांच के आदेश दिए हैं। विनोद कुमार शर्मा द्वारा प्रस्तुत जनहित याचिका स्वीकार करते हुए यूजीसी को भी यह आदेश दिए हैं कि वह जांच में गड़बड़ी पाए जाने पर जेयू एवं जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है।
न्यायमूर्ति संजय यादव एवं न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की युगलपीठ ने याचिका का यह कहते हुए निराकरण कर दिया कि इस आदेश का पालन कर तीन सितंबर को इसकी रिपोर्ट पेश करें। कोर्ट ने आदेश में कहा कि 30 जून 2010 को यूजीसी ने जो नियम लागू किए हैं उसके अनुसार 1979 के नियम के तहत नियुक्तियां नहीं की जा सकती हैं। याचिकाकर्ता द्वारा कोर्ट के सामने महत्वपूर्ण तथ्य लाए गए कि जेयू ने इन नियमों की अवहेलना कर नियुक्तियां की हैं। इसे मूक दर्शक बनकर नहीं देखा जा सकता है।
गलत नियुक्तियों से गिरा शिक्षा का स्तर : याचिकाकर्ता द्वारा एडवोकेट सीपी सिंह के माध्यम से 2013 में जनहित याचिका प्रस्तुत करते हुए कहा गया था कि उच्च शिक्षा अनुदान आयोग द्वारा कॉलेजों में शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए कई नियम बनाए गए हैं, जिनमें शिक्षकों की भर्ती के लिए भी नियम तय किए गए हैं, लेकिन 2009 के बाद इन कॉलेजों में भर्ती के नियमों का पालन नहीं किया गया, भ्रष्टाचार कर गलत तरीके से नियुक्तियां की गईं।
दोषी अधिकारियों को सुनवाई का मौका मिलेगा
उच्च न्यायालय ने जीवाजी विश्वविद्यालय को निर्देश दिए हैं कि यदि जांच में नियमों का उल्लंघन किया गया पाया जाता है तो यूजीसी उन कॉलेजों की मान्यता समाप्त करेगा। यह कार्य तीन माह में 31 अगस्त से पहले करना होगा। इस मामले में दोषी पाए गए अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई से पहले उन्हें सुनवाई का पूरा अवसर प्रदान किया जाएगा।
जांच में नहीं देखी जाती गड़बडिय़ां
जहां नियुक्तियां हुई हैं, उनके नाम भी याचिका में दिए गए थे। याचिका में इनके लिए जिम्मेदार जीवाजी विश्वविद्यालय की कुलपति तथा अन्य जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की गई थी। याचिका में यह भी कहा गया कि जब भी प्राइवेट कॉलेजों को संबद्धता दी जाती है उसके पहले विश्वविद्यालय के प्रोफेसर निरीक्षण करते हैं, लेकिन उनके द्वारा गड़बडिय़ों को अनदेखा कर रिपोर्ट सौंप दी जाती है और महाविद्यालय को संबद्धता मिल जाती है। उल्लेखनीय है कि प्रोफेसरों को शीर्ष वेतनमान मिल रहा है। संबद्धता देने में होने वाले भ्रष्टाचार के कारण ही अयोग्य शिक्षक नोकरी कर रहे हैं, इस कारण बच्चे कॉलेजों में पढऩे नहीं जा रहे हैं। याचिका में विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद द्वारा सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति को स्वीकृति दिए जाने के निर्णय को भी चुनौती दी गई। याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार और यूजीसी शिक्षा के स्तर को कायम रखने में सफल नहीं हुई है। याचिका में जीवाजी विश्वविद्यालय सहित आधा दर्जन से अधिक कॉलेजों में हुई नियुक्ति की जानकारी भी दी गई है।
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