उच्च न्यायालय ने जीवाजी विश्वविद्यालय को निर्देश दिए हैं कि यदि जांच में नियमों का उल्लंघन किया गया पाया जाता है तो यूजीसी उन कॉलेजों की मान्यता समाप्त करेगा। यह कार्य तीन माह में 31 अगस्त से पहले करना होगा। इस मामले में दोषी पाए गए अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई से पहले उन्हें सुनवाई का पूरा अवसर प्रदान किया जाएगा।
जहां नियुक्तियां हुई हैं, उनके नाम भी याचिका में दिए गए थे। याचिका में इनके लिए जिम्मेदार जीवाजी विश्वविद्यालय की कुलपति तथा अन्य जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की गई थी। याचिका में यह भी कहा गया कि जब भी प्राइवेट कॉलेजों को संबद्धता दी जाती है उसके पहले विश्वविद्यालय के प्रोफेसर निरीक्षण करते हैं, लेकिन उनके द्वारा गड़बडिय़ों को अनदेखा कर रिपोर्ट सौंप दी जाती है और महाविद्यालय को संबद्धता मिल जाती है। उल्लेखनीय है कि प्रोफेसरों को शीर्ष वेतनमान मिल रहा है। संबद्धता देने में होने वाले भ्रष्टाचार के कारण ही अयोग्य शिक्षक नोकरी कर रहे हैं, इस कारण बच्चे कॉलेजों में पढऩे नहीं जा रहे हैं। याचिका में विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद द्वारा सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति को स्वीकृति दिए जाने के निर्णय को भी चुनौती दी गई। याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार और यूजीसी शिक्षा के स्तर को कायम रखने में सफल नहीं हुई है। याचिका में जीवाजी विश्वविद्यालय सहित आधा दर्जन से अधिक कॉलेजों में हुई नियुक्ति की जानकारी भी दी गई है।