
Kanimojhi raja out of 2G scam
2जी मामले में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा को क्लीन चिट देते हुए सीबीआई की विशेष अदालत ने गुरुवार को कहा कि ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं जिससे यह साबित हो कि वह इस षड्यंत्र में शामिल था। न्यायालय ने तथाकथित 2जी घोटाले को कुछ तथ्यों को कलात्मक रूप से जोडऩे और खगोलीय स्तर तक मान्यता से परे अतिशयोक्ति बताया। विशेष न्यायधीश ओ.पी. सैनी ने अपने 1,552 पन्नों के फैसले में कहा, यह दूरसंचार विभाग द्वारा विभिन्न कार्यो और बिना कार्यो के पैदा की गई भ्रम की स्थिति है जिसने एक बड़े घोटाले का रूप धारण कर किया जबकि ऐसा हुआ ही नहीं था।
सात साल का इंतजार बेकार हो गया
विशेष न्यायाधीश ओ.पी. सैनी ने गुरुवार को कहा कि सात वर्ष तक सबूत का इंतजार करना बेकार हो गया क्योंकि यह मामला मुख्यत: अफवाह, चर्चा और अटकलों पर आधारित था। सैनी वर्ष 2011 की शुरुआत से 2जी मामले के सभी मुकदमों का निरीक्षण कर रहे हैं। सैनी ने कहा, अंतिम सात वर्षों में, गर्मी की छुट्टी समेत सभी कार्यदिवसों पर, मैं सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक, इस मामले में किसी के द्वारा कुछ कानूनी तौर पर मान्य सबूत के साथ आने का इंतजार करता रहा, लेकिन सब बेकार हो गया।"
गॉसिप पर आधारित मामला
उन्होंने कहा, "एक भी आदमी यहां नहीं आया। यह दिखाता है कि इस मामले में सभी ने अफवाह, चर्चा (गॉसिप) और अटकलों के आधार पर धारणा बना लिया था। हालांकि न्यायिक कार्यवाही में जनधारणा और कपोल-कल्पना का कोई स्थान नहीं है।" न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले ने कई लोगों का ध्यान आकर्षित किया और मामले के संबंध में सभी सुनवाई में अदालत रूम खचाखच भरे रहे।
काम छोड़ो, रिकॉर्ड में कोई सबूत नहीं
सैनी ने कहा, इस मामले का मूल राजा के कार्यो पर निर्भर नहीं करता है। रिकार्ड के तौर पर ऐसा कुछ नहीं है जिससे यह साबित हो कि राजा इस षड्यंत्र (मदर लोड ऑफ कांसपाइरेसी) में शामिल था। उसके खिलाफ किसी भी गलत कार्य, षड्यंत्र और भ्रष्टाचार का सबूत नहीं है। सीबीआई ने राजा को इस मामले का मुख्य अभियुक्त बनाया था और 200 करोड़ रुपए घूस लेने का आरोप में राजा को 15 माह की जेल की सजा भी काटनी पड़ी थी।
आखिर में पूरी तरह गिर गया था अभियोजन का स्तर
शुरुआत में अभियोजन ने बहुत उत्साह दिखाया लेकिन जैसे-जैसे केस आगे बढ़ा, ये समझना मुश्किल हो गया कि आखिर वो साबित क्या करना चाहता है और आखिर में अभियोजन का स्तर इस हद तक गिर गया कि वो दिशाहीन और संकोची बन गया। इस बारे में ज्यादा कुछ लिखने की जरूरत नहीं क्योंकि सबूतों को लेकर उनका रवैया ही उनकी गंभीरता बताने को काफी है। हालांकि, एक दो उदाहरण अभियोजन का व्यवहार बताने को काफी होगा।
सवालों के जवाब नहीं दे पाते थे लोग
उन्होंने कहा, कई लोग अदालत के समक्ष उपस्थित हुए और बताया कि मामले में सही तथ्य पेश नहीं किए गए। जब इन लोगों से यह पूछा जाता था कि क्या आपके पास इस तथ्य को साबित करने का प्रमाण है, वे इसका जवाब नहीं दे पाते थे।" उन्होंने हालांकि कहा कि लगभग 10 से ज्यादा लोगों ने इस संबंध में अन्य जांच और सीबीआई की जांच से बचे अतिरिक्त अभियुक्तों को समन जारी करने का लिखित आवेदन दिया। न्यायाधीश ने कहा, "इन पत्रों में से किसी भी पत्र का कानूनी आधार नहीं था। सभी आवेदन में अदालत के पास पहले से मौजूद तथ्यों के बारे में या पूरी तरह से अनुचित तथ्यों के बारे में बताया गया था।"
गैर जरूरी विवाद खड़े किए
अलग-अलग महकमों (टेलीकॉम विभाग, क़ानून मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय) के अधिकारियों ने जो किया और जो नहीं किया, की जांच से ये पता चलता है कि स्पेक्ट्रम आवंटन के मुद्दे से जुड़ा विवाद कुछ अधिकारियों के गैरजरूरी सवालों और आपत्तियों और अन्य लोगों की ओर से आगे बढ़ाए गए अवांछित सुझावों की वजह से उठा। इनमें से किसी सुझाव का कोई तार्किक निष्कर्ष नहीं निकला और वे बीच में ही बिना कोई खोज खबर लिए छोड़ दिए गए। दूसरे लोगों ने इनका इस्तेमाल गैरजरूरी विवाद खड़ा करने के लिए किया।
नीतियों और गाइडलाइंस में स्पष्टता की कमी
नीतियों और गाइडलाइंस में स्पष्टता की कमी से भी कन्फ्यूजऩ बढ़ा। ये गाइडलाइंस ऐसी तकनीकी भाषा में ड्राफ्ट किए गए थे कि इनके मतलब टेलीकॉम विभाग के अधिकारियों को भी नहीं पता थे। जब विभाग के अधिकारी ही विभागीय दिशानिर्देशों और उनकी शब्दावली को समझ नहीं पा रहे थे तो वे कंपनियों और दूसरे लोगों को इनके उल्लंघन के लिए किस तरह से जिम्मेदार ठहरा सकते हैं। ये जानते हुए भी कि किसी शब्द का मतलब स्पष्ट नहीं है और इससे समस्याएं पैदा हो सकती हैं, इसे दुरुस्त करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया।
कूटभाषा में लिखे नोटिंग्स
ये साल दर साल जारी रहा। इन हालात में टेलीकॉम विभाग के अधिकारी खुद ही इस पूरे गड़बड़झाले के लिए जिम्मेदार हैं। कई अधिकारियों ने फाइलों पर इतनी खऱाब हैंडराइटिंग में नोट्स लिखे कि उन्हें पढ़ा और समझा नहीं जा सकता था। कई बार तो ये नोटिंग्स कूटभाषा में या फिर बेहद लंबे और तकनीकी भाषा में लिखे गए। जिन्हें कोई आसानी से समझ नहीं सके और आला अधिकारी अपनी सुविधानुसार इसमें खामी खोज सकें।
दस्तखत करने तक को तैयार नहीं था कोई
अभियोजन की तरफ से कई आवेदन और जवाब दाखिल किए गए। हालांकि बाद में और ट्रायल के आखिरी फेज में कोई वरिष्ठ अधिकारी या अभियोजक (प्रोसेक्यूटर) इन आवेदनों और जवाबों पर दस्तखत करने के लिए तैयार नहीं था। इस बारे में पूछे जाने पर सीबीआई के सीनियर पब्लिक प्रोसेक्यूटर ने कहा कि इसपर स्पेशल पब्लिक प्रोसेक्यूटर (आनंद ग्रोवर) हस्ताक्षर करेंगे और जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने बताया कि सीबीआई के लोग इसपर हस्ताक्षर करेंगे।
बिना दस्तखत के दस्तावेज किस काम के
स्पेशल पब्लिक प्रोसेक्यूटर के हस्ताक्षर की सारी कोशिशें बेकार साबित हुईं। अंत में अदालत में मौजूद एक जूनियर अधिकारी ने इन पर दस्तखत किए। इससे पता चलता है कि न तो कोई जांच अधिकारी और न ही कोई अभियोजक इस बात की जिम्मेदारी लेना चाहता था कि अदालत में क्या कहा जा रहा है या क्या दाखिल किया जा रहा है। सबसे ज्यादा तकलीफदेह बात ये रही कि स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर उस दस्तावेज पर दस्तखत करने के लिए तैयार नहीं थे जो वो खुद कोर्ट में पेश कर रहे थे। ऐसे दस्तावेज का कोर्ट के लिए क्या इस्तेमाल है जिस पर किसी के दस्तखत नहीं हों।
कई बार लिखित आदेश के बाद दस्तखत
सारी कोशिशें बेकार होने के बाद विशेष अभियोजक के दस्तखत के लिए लिखित आदेश जारी किए गए कि बिना दस्तखत दस्तावेज मान्य नहीं होंगे। इसके बावजूद इसके लिए भी बार-बार लिखित आदेश जारी करने पड़ते थे। तब जाकर आदेश का पालन होता था।
सरकार-जांच दल में नहीं था समन्वय
जब नियमित सीनियर पब्लिक प्रोसेक्यूअर और इंसेक्टर से पूछा गया कि वे इन लिखित जवाब पर दस्तखत क्यों नहीं कर रहे तो उनका जवाब था कि ये उनके कार्यालय से नहीं बल्कि स्पेशल पब्लिक प्रोसेक्यूटर के कार्यालय से आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि जबतक बहस के ये लिखित हिस्से उनके ऑफिस से पढ़कर न आएं वे इसपर हस्ताक्षर नहीं कर सकते। ये दिखाता है कि स्पेशल पब्लिक प्रोसेक्यूटर और नियमित प्रोसेक्यूटर दो धाराओं मेंं बह रहे थे और उनमें आपस में कोई समन्वय नहीं था। इस मसले पर काफी कुछ कहा जा सकता है लेकिन ये सिर्फ कागज कोरे करने जैसा होगा।
Updated on:
22 Dec 2017 01:02 am
Published on:
22 Dec 2017 12:56 am
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