
दमोह . वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व को विकसित कर प्रदेश का प्रमुख ईको टूरिज्म स्थल बनाने के दावे, तो लंबे समय से किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हालात इसके उलट नजर आते हैं। हकीकत यह है कि रिजर्व क्षेत्र में पर्यटकों के लिए मूलभूत सुविधाओं का अब भी अभाव है। न तो ट्रैकिंग मार्गों को स्पष्ट रूप से चिह्नित किया गया है, न ही पर्याप्त गाइड और जिप्सी उपलब्ध हैं। ठहरने की सुविधाएं भी न के बराबर हैं, जिससे पर्यटक यहां आने से परहेज कर रहे हैं।
कागजों में सीमित योजनाएं
पर्यटन बढ़ाने के लिए रहली और डोंगरगांव में रिजॉर्ट निर्माण की योजना बनाई गई थी। इसके लिए जमीन भी चिन्हित की गई, लेकिन अब तक काम शुरू नहीं हो सका। इसी तरह हिनौती, बीना और सिंगौरगढ़ गेट पर सुविधाएं विकसित करने व अन्य नए गेट बनाने की योजनाएं भी अधूरी हैं। वहीं पर्यटकों की सफारी के लिए जिप्सी की संख्या बढ़ाने की योजना पर भी कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है। बता दें कि ईको टूरिज्म को लेकर अमल न के बराबर हुआ है।इन कार्यों में भी पिछड़ापन
1. विस्थापन: पिछले एक दशक से जारी गांवों के विस्थापन की प्रक्रिया अधूरी है। इससे वन्यजीव और ग्रामीण दोनों प्रभावित हो रहे हैं।2. हाथी कैंप: 2023 से प्रस्तावित पांच हाथी कैंप अब तक नहीं बन पाए हैं, जिससे वन क्षेत्र की निगरानी पर असर पड़ रहा है।
3. पर्यटन सुविधा: पर्यटकों की संख्या बेहद कम है। ठहरने, भ्रमण और गाइड जैसी जरूरी सुविधाएं नदारद हैं।4. हैंडओवर प्रक्रिया: दमोह वन मंडल का कुछ हिस्सा अभी तक टाइगर रिजर्व को हस्तांतरित नहीं हो सका है, जिससे प्रशासनिक और सुरक्षा व्यवस्थाएं बाधित हैं।
वर्जनहिनौती गेट पर इंटरप्रेटेशन सेंटर बनाने की योजना है और नए गेटों के निर्माण के प्रयास जारी हैं। कार्य चरणबद्ध तरीके से किए जा रहे हैं। विस्थापन कार्य भी प्रक्रियाधीन है।डॉ एए अंसारी, उपसंचालक रिजर्व
पत्रिका व्यूवीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व को एक प्रभावशाली ईको टूरिज्म डेस्टिनेशन के रूप में विकसित करने की जरूरत है। इसके लिए केवल योजनाएं बनाना काफी नहीं, बल्कि उनका समयबद्ध और प्रभावी क्रियान्वयन अनिवार्य है। अन्यथा यह महत्वाकांक्षी परियोजना भी अधूरी उम्मीदों में सिमट कर रह जाएगी।
Updated on:
02 Jun 2025 09:44 am
Published on:
02 Jun 2025 09:43 am
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