
दमोह. जिले में बाल अधिकारों की रक्षा और संरक्षण को लेकर तस्वीर बेहद चिंताजनक है। शासन द्वारा बनाए गए कानून और योजनाएं ज़मीनी हकीकत से कोसों दूर हैं। शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों तक नाबालिग बच्चे नशे की लत और बाल श्रम में उलझे हुए हैं, लेकिन प्रशासन की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही।
नशे की गिरफ्त में मासूम बचपन
शहर के सार्वजनिक स्थलों, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और व्यस्त बाज़ार क्षेत्रों में नाबालिगों को सिगरेट, गुटखा, शराब और अन्य नशे की चीजों का सेवन करते देखा जा सकता है। यह हालात तब हैं, जब कानून के मुताबिक बच्चों को ऐसी चीजें बेचना अपराध है। बावजूद इसके गुटखा और तम्बाकू उत्पाद आसानी से बच्चों की पहुंच में हैं।
बाल श्रम के बढ़ते मामले
बता दें कि होटल, ढाबों, मैकेनिक की दुकानों और निर्माण स्थलों पर बाल मजदूरी आम बात बन चुकी है। ये बच्चे या तो स्कूल कभी गए ही नहीं, या पढ़ाई बीच में छोड़ने को मजबूर हो गए। रोज़गार के नाम पर उनका शारीरिक और मानसिक शोषण हो रहा है, लेकिन संबंधित विभागों की सक्रियता सवालों के घेरे में है।बाल कल्याण समिति और विभाग निष्क्रियजिला बाल कल्याण समिति, चाइल्ड हेल्पलाइन (1098) और महिला एवं बाल विकास विभाग की निष्क्रियता के चलते कई बार की गई शिकायतें भी ठंडे बस्ते में चली जाती हैं। बाल संरक्षण के नाम पर सालभर बैठकें और योजनाओं की समीक्षा तो होती हैं, लेकिन जमीनी असर कहीं नजर नहीं आता।
विदित हो कि जिला मुख्यालय स्थित रेलवे स्टेशन परिसर में हालात और भी भयावह हैं। यहां कई नाबालिग बच्चे भीख मांगने और कबाड़ बीनने के बाद उससे मिलने वाले पैसों से नशा कर रहे हैं। कई मामलों में उनके साथ उनके अभिभावक भी मौजूद रहते हैं। यह स्थिति लंबे समय से बनी हुई है, लेकिन प्रशासन की ओर से न तो निगरानी हो रही और न ही कोई अभियान।
पत्रिका व्यू
जिला प्रशासन ने इस दिशा में गंभीरता नहीं दिखाई, तो आने वाले वर्षों में जिले का सामाजिक ताना-बाना और अधिक बिगड़ सकता है। जरूरत है कि जागरूकता अभियान चलाए जाएं, स्कूलों और पंचायतों को सक्रिय किया जाए, और बाल श्रम व नशा कर रहे बच्चों की पहचान कर उन्हें पुनर्वास दिलाया जाए। साथ ही बाल अधिकारों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
Published on:
01 Jul 2025 11:10 am
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