
वनभूमि पर बढ़ते अवैध कब्जे, हरियाली की जगह खेतों ने ली जगह
दमोह जिले में वन भूमि पर अवैध कब्जे का सिलसिला तेजी से बढ़ता जा रहा है। जहां कभी हरे भरे घने जंगल थे, अब वहां खेती होती नजर आ रही है। सैंकड़ों हेक्टेयर वन भूमि परकब्जा कर खेती की जा रही है, जिससे पर्यावरण संतुलन और वन्यजीवों के अस्तित्व पर बड़ा खतरा मंडराने लगा है।
सूत्रों के अनुसार, यह कब्जे अचानक नहीं हुए हैं, बल्कि इसके पीछे एक सुनियोजित रणनीति है, जिसमें कुछ स्थानीय वनकर्मियों की मिलीभगत भी सामने आई है। आरोप हैं कि निचले स्तर के वनकर्मी इन कब्जाधारियों को मौन स्वीकृति दे रहे हैं और जानबूझकर कार्रवाई नहीं कर रहे। वहीं विभाग के वरिष्ठ अधिकारी या तो इस पूरे मामले से अनजान बने हुए हैं या जानबूझकर अनदेखी कर रहे हैं।
रजपुरा क्षेत्र में बाहरी घुमक्कड़ जातियों द्वारा तेजी से आकर बसने और वन भूमि पर कब्जा करने के मामले सामने आए हैं। रोजगार और आश्रय की तलाश में आए इन समुदायों ने वन क्षेत्र को अपना स्थायी ठिकाना बना लिया है। इससे न सिर्फ जंगलों की भूमि पर कब्जा हुआ है, बल्कि स्थानीय आदिवासी समुदायों की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं। वहीं दूसरी ओर वन भूमि पर अवैध कब्जों के बावजूद अब तक विभाग की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। कुछ प्रयासों के दौरान विभागीय अमले को विरोध और हमलों का सामना करना पड़ा, जिसके बाद कार्रवाई लगभग बंद हो गई।
बता दें कि जिले के तेजगढ़, सागौनी, तेंदूखेड़ा, हटा, रजपुरा और मडिय़ादो इलाके सबसे ज्यादा अतिक्रमण से प्रभावित हैं। पहले ये इलाके घने जंगलों के लिए प्रसिद्ध थे, लेकिन अब यहां की सैकड़ों एकड़ जमीन पर खेती की जा रही है। हरियाली की जगह अब खेत दिख रहे हैं और जंगल उजड़ते जा रहे हैं।
-वर्ष 2019: जिले का कुल वन क्षेत्र 2774 वर्ग किलोमीटर था।
-वर्ष 2021: यह घटकर 2594 वर्ग किलोमीटर रह गया यानी 180 वर्ग किलोमीटर की कमी।
-वर्ष 2023: वन क्षेत्र और घटकर 2504 वर्ग किलोमीटर रह गया और 85 वर्ग किलोमीटर की और गिरावट हुई।
&अतिक्रमण को लेकर जांच कराई जाएगी। यदि वनभूमि पर कब्जे पाए जाते हैं, तो उन्हें हटाकर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।
ईश्वर जरांडे, डीएफओ दमोह
Published on:
09 Jun 2025 02:11 am
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