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स्लीपर कोच के नाम पर यात्रियों से ठगी, बसों में बेबस यात्री

ठगे जा रहे यात्री

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Standard bypassing the operation of sleeper coach buses Helpless

Standard bypassing the operation of sleeper coach buses Helpless

दमोह. जिला मुख्यालय के बस स्टैंड पर स्लीपर कोच बसों के नाम पर यात्रियों से जमकर ठगी की जा रही है। जिन बसों को ऑल इंडिया परमिट के नाम पर स्लीपर कोच में उपयोग किया जा रहा है उनकी हालत देखने में ही कंडम नजर आ जाती है। वहीं वह तमाम सुविधाएं इन बसों में नहीं है जो एक स्लीपर कोच बस में होनी चाहिए। देखा जा रहा है कि ऐसी बसों के खिलाफ परिवहन विभाग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। सूत्रों के अनुसार ऐसा इसलिए भी क्योंकि बसों का संचालन परिवहन विभाग की वैध व अवैध कमाई का प्रबल उपक्रम है। प्राप्त जानकारी के अनुसार जो बसें डीलक्स बसों की श्रेणी को भी पूरा नहीं करती हैं उनका स्लीपर कोच में संचालन किया जा रहा है। जिला मुख्यालय के बस स्टैंड से दूर दराज के गंतव्यों के लिए स्लीपर कोच बसें निकलतीं हैं। इसके अलावा अन्य शहरों से शुरू होने वालीं बसें भी जिला मुख्यालय पर ठहराव करतीं हैं और यहां से यात्रियों को गंतव्य तक पहुंचाने का कार्य करतीं हैं।


ठूंस ठूंस कर भरते हैं यात्रियों को


स्लीपर कोच बसों में यात्रियों की अधिकता क्षमता से अधिक नहीं होनी चाहिए, लेकिन यहां ऐसा नहीं है। स्लीपर कोच में जहां शयनयान पर सवारियों को बैठा दिया जाता है, वहीं इन बसों में स्टूलों पर बैठाकर भी सवारियों को यात्राएं कराई जातीं हैं जो स्लीपर कोच के मानकों के ठीक विपरीत हैं।


जगह जगह होता है ठहराव


स्लीपर कोच बसें जिन्हें ऑल इंडिया का परमिट मिलता है उनका परमिट कम से कम ६०० किमी की यात्रा करने पर ही दिया जाना चाहिए। लेकिन यहां यह नियम भी नजर अंदाज है। जिला मुख्यालय से होकर नागपुर, भोपाल, इंदौर, जबलपुर, सागर की ओर जाने वालीं स्लीपर बसों को स्टैंड छोडऩे के बाद छोटे छोट कस्बों के स्टैंडों पर भी खड़ा होता देखा जा सकता है। जबकि यह पूरी तरह नियम विपरीत है।


डेढ़ दर्जन स्लीपर बसें दमोह से होतीं हैं रवाना


वैसे तो लोकल दमोह के बस मालिकों द्वारा कम ही स्लीपर बसों का संचालन किया जा रहा है, लेकिन अन्य शहरों से दमोह पहुंचने वाली स्लीपर बसों की संख्या को जोड़ा जाए तो डेढ़ दर्जन से अधिक बसें दमोह से होकर बड़े शहरों के लिए रवाना होतीं हैं। बस यूनियन के सचिव समीम कुरैशी ने बताया है कि लोकल मालिकों के द्वारा ४ से ५ स्लीपर बसों का संचालन किया जाता है। वहीं दूसरे शहरों से ०९ बसें दमोह बस स्टैंड पहुंचती हैं। इसके अलावा दो से तीन बसें ऐसीं हैं जिनका मुख्य बस स्टैंड पर आगमन नहीं होता है।


आराम का सवाल ही नहीं उठता


स्लीपर कोच बसों में भले ही यात्री यह सोचकर बैठते हैं कि उनकी यात्रा आरामदायी रहेगी, लेकिन यह हकीकत बनकर सामने नहीं आती है। अधिकांश बसों की बॉडी डिजाइन आरामदायी हो ऐसा नहीं है। बस के भीतर अधिक सीटों बनाने के चक्कर में यात्रियों के आराम की बात को हटा दिया जाता है।