
दमोह. कभी दमोह शहर की पहचान रहे ऐतिहासिक तालाब आज अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। जहां कभी 11 तालाब जल संरक्षण, प्राकृतिक सुंदरता और पर्यावरण के प्रतीक थे, अब उनमें से महज 8 तालाब ही शेष बचे हैं। इनमें से भी अधिकांश या तो सूख चुके हैं, अतिक्रमण की चपेट में हैं या फिर गंदगी से पटे हुए हैं। प्रशासनिक लापरवाही और संरक्षण के अभाव में यह अमूल्य जल विरासत धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है।
गायब हो चुके तालाब, बस गई इमारतें
बीते एक सदी में कचौर तालाब, कैदों की तलैया और उमा मिस्त्री की तलैया जैसे प्रमुख तालाब पूरी तरह समाप्त हो गए हैं। इनकी जगह अब मकान, दुकानें और बाजार बस चुके हैं। जहां कभी जल से लबालब भरे ये जलस्रोत होते थे, आज वहां सिर्फ कंक्रीट नजर आता है।
फुटेरा तालाब की दुर्दशा
1309 ईस्वी में बना ऐतिहासिक फुटेरा तालाब भी अतिक्रमण की चपेट में है। 96 एकड़ क्षेत्र में फैले इस तालाब का अधिकांश हिस्सा कब्जों में है और पानी में गंदगी का अंबार है। बता दें कि साल 2023 में अमृत 2.0 योजना के तहत तीन तालाबों के संरक्षण के लिए 4 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए थे, लेकिन डीपीआर बनने और ठेका तय होने के बावजूद काम शुरू नहीं हो सका। बजट लैप्स हो गया और तालाबों की हालत जस की तस बनी रही।
शेष तालाबों की भी स्थिति चिंताजनक
दीवान जी की तलैया: 300 साल पुरानी यह तलैया गंदे पानी और कचरे से भर चुकी है। वर्तमान में यहां सफाई के नाम पर खुदाई चल रही है, जो काम करने वालों की कमाई का खासा जरिया बन गया है।
पुरैना तालाब: 4 एकड़ में फैला यह तालाब अब सिकुड़कर कुंड में तब्दील हो गया है। कुछ साल पहले इस तालाब के जीर्णोद्धार के नाम पर लाखों रुपए का फंड खर्च हुआ, लेकिन तालाब की िस्थति जस की तस ही रही।
बेलाताल: शहर का सबसे सुंदर तालाब कहा जाता था, लेकिन अब उपेक्षा का शिकार है। हर साल यहां सफाई अभियान चलाया जाता है, लेकिन िस्थति में सुधार नहीं हो पा रहा है। इन तालाबों के अलावा पाठक तालाब, किशुन तलैया भी धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं। पत्रिका व्यूशहर की जल धरोहर को बचाने के लिए तत्काल ठोस कार्ययोजना बनाकर उसे अमल में लाने की जरूरत है। जनप्रतिनिधियों और प्रशासन को इस दिशा में गंभीरता से कदम उठाना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियों को यह जल विरासत केवल किताबों में ही देखने को न मिले।
Published on:
24 May 2025 11:22 am
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