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जैन धर्म में अक्षय तृतीया पर आहार दान देने का यह है महत्व, आप भी जानें

जैन धर्म में अक्षय तृतीया पर आहार दान देने का यह है महत्व, आप भी जानें आहार दान देने के लिए सौधर्म इंद्र भी तरसता है मुनि सुधासागर, अक्षय तृतीया पर निर्यापक मुनि सुधा सागर के सानिध्य में विविध आयोजन

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दमोह

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Samved Jain

May 11, 2024

Jain Aahar

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दमोह. पारसनाथ दिगंबर जैन नन्हें मंदिर धर्मशाला में निर्यापक मुनि सुधा सागर महाराज संघ सहित विराजमान है। मुनिश्री के सानिध्य में प्रतिदिन पूजन भक्ति के साथ प्रवचन का लाभ भक्तगण उठा रहे हैं। मुनि श्री के प्रवचन प्रात: ठीक 8:00 बजे प्रारंभ हो जाते हैं, वहीं जिज्ञासा समाधान कार्यक्रम शाम को ठीक 6 बजे प्रारंभ होता है। जिसमें भी प्रतिदिन बड़ी संख्या में भक्त जनों की भीड़ उमड़ रही है।

अक्षय तृतीया के अवसर पर निर्यापक मुनि सुधा सागर ने अपने प्रवचनों में भरत बाहुबली के समय इनके बीच हुए धर्म युद्ध का उल्लेख किया। मुनिश्री ने कहा कि दिगंबर मुनिराज को आहार दान देने के लिए स्वर्ग का राजा सौधर्म इंद्र भी तरसता है। मुनिराज के हाथ में एक ग्रास देने के लिए वह अपने स्वर्ग का पूरा राज भी छोडऩे को तैयार रहता है, लेकिन यह सौभाग्य प्राप्त नहीं हो पाता। आहार दान देने वाले मनुष्य को सम्यक दृष्टि देवता सौ-सौ बार नमस्कार करते हैं। ऐसी मूल्यवान क्रिया से मनुष्य अपने आप को वंचित कर लेता है यह उसका दुर्भाग्य ही कहा जाएगा।

मुनिश्री ने कहा कि आज भगवान ऋषभदेव को 7 महीने 8 दिन के पश्चात आहार लाभ हुआ था। श्रावक को आज आहार दान देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। आज लाभ दिवस है कि दान दिवस यदि लाभ दिवस मनाते हैं तो अधर्म होता है और दान दिवस मनाने पर महा धर्म होता है दान का उत्सव मनाया जाता है। श्रावक दान देकर अपने पुण्य की सराहना करता अपने जीवन को धन्य मानता है , जबकि मुनि आहार ग्रहण करते हुए अपने कर्मों को कोसते हैं वे आहार लेकर के दुखी होते हैं, क्योंकि उनको आहार लेना पड़ता है।

अक्षय तृतीया लाभ से नहीं दान दिवस से प्रसिद्ध है यह त्याग का दिवस है ग्रहण करने का दिवस नहीं। मुनि श्री के दर्शनों के लिए प्रतिदिन जिले की सकल जैन समाज के साथ सैकड़ों की संख्या में विभिन्न क्षेत्रों से भक्तगण नई जैन मंदिर आ रहे हैं।

गन्ने का रस व जूस पिलाकर मनाया अक्षय तृतीया पर्व

तेंदूखेड़ा.अखिल भारत वर्षीय दिगंबर जैन महिला मंडल चंदा प्रभु शाखा चेलना संभाग झलौन के द्वारा अक्षय तृतीया पर्व पर सैकड़ों महिलाओं पुरुष व बच्चों को गन्ने का रस व जूस पिलाकर अक्षय तृतीया पर्व को मनाया। आज अक्षय तृतीया के दिन भगवान आदिनाथ को 6 माह बाद गन्ने के रस से राजा श्रेयांश ने आहार दिए थे, इसलिए आज के दिन अक्षय तृतीया के रूप में मनाते हैं। इस अवसर पर पूर्व विधायक प्रताप सिंह लोधी, जनपद अध्यक्ष तुलाराम यादव व ग्राम की वरिष्ठ नागरिक, युवा बृतेश जैन, अशोक जैन, डॉक्टर पवन जैन, मुकेश जैन समय जैन, महिला मंडल में अध्यक्ष सरिता जैन सचिव , राखी जैन,विनीता जैन, मिनी जैन सहित अन्य मौजूद रहे।

अतिथि को भोजन करवाना भारतीय संस्कृति है:

बांसा तारखेड़ा. पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर बांसा तारखेड़ा में शुक्रवार को सुबह धर्मसभा का आयोजन हुआ। आचार्यश्री की पूजन हुई। शास्त्र अर्पण, चित्र अनावरण,दीप प्रज्वलन किया गया। इस अवसर पर धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि वमल सागर ने कहा कि गृहस्थ का धर्म दान और पूजा से चलता है। अक्षय तृतीया को आदिनाथ भगवान को प्रथम बार आहार मिला था।
इस तिथि को दान दिवस कहते हैं। अतिथि को भोजन करवाना भारतीय संस्कृति है। आदिनाथ भगवान तो 6 माह तक साधना में लीन हो गए थे। यह वीरों की चर्या है। इस पद के साथ अच्छे कार्य ही अच्छे लगते हैं। 6 माह बाद आहार चर्या को निकलते हैं, लेकिन कोई उनकी आहार चर्या करवाने में समर्थ नहीं हुआ था। दान की विधि कोई नहीं जानता था। कोई उपदेश देने वाला भी नहीं था। आदिनाथ भगवान का लाभ अंतराय कर्म का उदय था। श्रावको का दान अंतराय कर्म का उदय था।
जिन्होंने पूर्व भव में आहार दान दिया था, ऐसे राजा श्रेयांश और राजा सोम ने स्वप्न में देखा और प्रात: काल पडग़ाहन किया। आहार दान संसार के सर्वश्रेष्ठ सुख देता है। इक्षुरस का दान दिया था। जो दान के लिए पुरुषार्थ करता है वह तप करता है। किसी अतिथि के लिए वह द्रव्य लग जाए, ऐसा भाव दाता का होता है। जिस दिन पडग़ाहन हो जाता है वह दिन अक्षय हो जाता है इसी कारण अक्षय तृतीया प्रसिद्ध हो गई।
मुनि भावसागर ने कहा कि जिस प्रकार सब रत्नों में श्रेष्ठ हीरा है, पर्वतों में श्रेष्ठ सुमेरु पर्वत है, उसी प्रकार सभी दानों में श्रेष्ठ आहारदान हैं। जो पुरुष कभी न तो भगवान की पूजा करते हैं, न सुपात्रों को दान देते हैं, वे अत्यंत दीन दुर्गति के पात्र हो जाते हैं। कंजूस का संचित धन धर्म-प्रभावना, परोपकार व पात्रदान के लिए नहीं होता। अतिथि की पूजा न करने वाला व्यक्ति मृत्यु के समय में पछताएगा की हाय, मैंने इतना धन संचय किया, लेकिन वह कुछ काम नहीं आया।