script189 फीट ऊंचाई के साथ यहां ले रहा है आकार दुनिया का सबसे ऊंचा जैन मंदिर | Under Construction World Highest Bade Baba Jain Temple in Kundalpur | Patrika News

189 फीट ऊंचाई के साथ यहां ले रहा है आकार दुनिया का सबसे ऊंचा जैन मंदिर

locationदमोहPublished: Sep 06, 2021 01:35:20 pm

Submitted by:

Hitendra Sharma

कुंडलपुर में एक स्थान पर हैं 65 जैन मंदिर, 2500 साल पुराना है इस क्षेत्र का इतिहास।

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दमोह. विश्व का सबसे ऊंचा जैन मंदिर मध्य प्रदेश के दमोह जिले के कुंडलपुर निर्माणाधीन है। जिला मुख्यालय से 36 किमी दूर जैन तीर्थ कुंडलपुर में पद्मासन बड़े बाबा भगवान आदिनाथ का मंदिर देश के सबसे ऊंचे शिखर वाले मंदिर में शुमार होने जा रहा है। इसका निर्माण तेजी से चल रहा है। अभी देश में अक्षरधाम मंदिर की ऊंचाई 110 फीट है। कुंडलपुर के इस मंदिर की ऊंचाई 189 फीट होगी।

पहाड़ी पर शिखर, गुण मंडप और नृत्य मंडप बनाने का काम चल रहा है। मंदिर की डिजाइन और ड्राइंग अक्षरधाम बनाने वाले सोमपुरा बंधुओं ने तैयार की है। इन्हीं ने मथुरा का प्रेम मंदिर और हाल ही में अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण को लेकर नक्शा तैयार किया है।

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मंदिर की विशेषता यह है कि इसमें लोहा, सरिया और सीमेंट का उपयोग नहीं किया जा रहा है। इसके पीछे तर्क है कि सीमेंट की आयु 100 साल होती है। उसके बाद वह खराब होने लगती है, जबकि मंदिर की आयु लंबी रखने के लिए उसे पत्थरों से ही तराशा जा रहा है। एक पत्थर को दूसरे पत्थर से जोड़ने के लिए खास तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।

छत्रसाल ने बनवाया था मुख्य मंदिर
कुंडलपुर में बड़े बाबा की पद्मासन प्रतिमा है, जो 15 फीट ऊंची है। इस प्राचीन स्थान को सिद्धक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। यहां अति अलौकिक 65 मंदिर हैं, जो आठवीं-नौवीं शताब्दी के बताए जाते हैं। यह क्षेत्र 2500 साल पुराना बताया जाता है। यहां मौजूद मुख्य मंदिर को राजा छत्रसाल ने बनवाया था।

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ये कथा है प्रचलित
बताते हैं कि एक बार पटेरा गांव में एक व्यापारी बंजी करता था। वहीं प्रतिदिन सामान बेचने के लिए पहाड़ी के दूसरी ओर जाता था। जहां रास्ते में उसे प्रतिदिन एक पत्थर से ठोकर लगती थी। एक दिन उसने मन बनाया कि वह उस पत्थर को हटा देगा। लेकिन उसी रात उसे स्वप्न आया कि वह पत्थर नहीं तीर्थकर कराने के लिए कहा गया। लेकिन शर्त थी कि वह पीछे मुड़कर नहीं देखेगा। उसने दूसरे दिन वैसा ही किया। बैलगाड़ी पर मूर्ति सरलता से आ गई। जैसे ही आगे बढ़ा उसे संगीत और वाद्यध्वनियां सुनाई दीं। जिस पर उत्साहित होकर उसने पीछे मुडकर देख लिया मूर्ति वहीं स्थापित हो गई।

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