
massive fire in girls hostel : बस्तर संभाग के बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा व नारायणपुर में वर्ष 2009 में 63 से अधिक प्री फेब्रीकेटेड केबिन बनाए गए थे। दरअसल नक्सल गतिविधियों के चलते ऐसा इसलिए किया गया चूंकि नक्सली पक्का इमारत बनने नहीं दे रहे थे। नक्सलियों का यह कहना था कि पक्के भवन में फोर्स रुक सकती है। इसलिए यह हल निकाला गया कि नक्सल प्रभावित जिले में प्रीफे ब्र्रीकेटेड केबिना बनाए जाएं।
बाद में इन केबिन को पोटाकेबिन कहा जाने लगा। बीजापुर के भैरमगढ़ में 13, उसूर में आठ भोपालपटनम में छ: और बीजापुर में सात पोटाकेबिन अब भी संचालत हैं। इन पोटाकेबिन में बालक- बालिका आवासीय विद्यालय संचालित हो रहे हैं । छह साल पहले ही इनकी मियाद खत्म हो जाने से इन सभी की हालत खराब काफी हो चुकी हैं।
बांस- बंबू से बने इन सभी स्ट्रक्चर्स की लाइफ लगभग खत्म हो चुकी है। इसके अलावा इन पोटाकेबिन को बनाने व इन्हें फायरसेफ्टी उपकरण से लैस करने कोई उपाय नहीं किया जा रहा है। इस अनदेखी का खामियाजा इनके धू धू जल जाने से उजागर हुई है।
12 साल से एक ही जगह जमे हुए है डीपीसी
इन केबिन के देखरेख का जिम्मा एक डीपीसी पर है। यहां पर डीपीसी विजेंद्र राठौर हैं। वे 12 साल से अधिक समय से इसी जगह पर जमे हुए हैं। जिले में छोटे से लेकर बड़े पदों पर तबादला होते रहते हैं। ऐसे में दशक भर से वे इस जगह पर उनके जमे रहने को लेकर भी कई तरह की बातें उठती रही हैं। इस ओर प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है।
अधिकतर पोटाकेबिन में बिजली सप्लाई की वायरिंग खराब है। वायर पाइप से निकलकर खुले में लटक रहे हैं। बोर्ड की कील भी उखड़ गई है । करंट इन नंगे तारों से होकर गुजरता है। ऐसे में कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। इन सभी बड़ी समस्याओं पर अधिकारियों का ध्यान नही जाता है। जब कोई घटना होने पर छोटे कर्मचारियो पर कार्यवाही कर अपना हाथ निकाल लेते है।
Published on:
08 Mar 2024 06:17 pm
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