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मंदिरों के शहर में राज्य की इकलौती त्रिमुखी सूर्य प्रतिमा पड़ी है खुले मेंं, एटलस की तरह मानते हैं ग्रामीण नवदंपती दर्शन के बाद करते हैं गृहप्रवेश

सात घोड़ों पर सवार देवता निस्संदेह सूर्यदेव हैं और ऐसी त्रिमुखी प्रतिमा राज्यभर में कहीं नहीं है। इसका संरक्षण होना चाहिए।

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मंदिरों के शहर में राज्य की इकलौती त्रिमुखी सूर्य प्रतिमा पड़ी है खुले मेंं, एटलस की तरह मानते हैं ग्रामीण नवदंपती दर्शन के बाद करते हैं गृहप्रवेश

मंदिरों के शहर में राज्य की इकलौती त्रिमुखी सूर्य प्रतिमा पड़ी है खुले मेंं, एटलस की तरह मानते हैं ग्रामीण नवदंपती दर्शन के बाद करते हैं गृहप्रवेश

शैलेंद्र ठाकुर/दंतेवाड़ा. 9वीं से 13वीं शताब्दी के ऐतिहासिक धरोहरों के लिए मशहूर बारसूर नगरी में सूर्यदेवता की त्रिमुखी व दुर्लभ प्रतिमा खुले में पड़ी हुई है। जानकारों के मुताबिक पूरे छत्तीसगढ़ में सूर्यदेव की त्रिमुखी प्रतिमा और कहीं भी नहीं है। बारसूर के कलमभाटा पारा स्थित इस जगह पर प्राचीन सूर्यमंदिर ध्वस्त होकर टीले में तब्दील हो चुका है। करीब 6 दशक पहले यह मंदिर ध्वस्त हुआ था। ध्वस्त होने से पहले मंदिर की जीर्ण हालत को देखते हुए ग्रामीणों ने सूर्यदेव की प्रतिमा को निकालकर कुसुम के पेड़ के नीचे रख दिया था, जो अब भी उसी जगह पर मौजूद है।

ऐतिहासिक धरोहरों की सूची में जिक्र ही नहीं
राज्य के मशहूर ट्रेवल ब्लॉगर व इतिहास के जानकार ललित शर्मा का कहना है कि सात घोड़ों पर सवार देवता निस्संदेह सूर्यदेव हैं और ऐसी त्रिमुखी प्रतिमा राज्यभर में कहीं नहीं है। इसका संरक्षण होना चाहिए। दुखद पहलू यह है कि बारसूर के ऐतिहासिक धरोहरों की सूची में इस ध्वस्त हो चुके मंदिर का जिक्र ही नहीं है। जबकि केंद्र सरकार के आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया ने बारसूर के मामा भांजा मंदिर, गणेश मंदिर, चंद्रादित्येश्वर मंदिर, दंतेश्वरी मंदिर समेत कुछेक मंदिरों को अपने संरक्षण में रखा हुआ है।

प्राचीन ग्रीक देवता एटलस की तरह मान्यता
सूर्यदेवता की प्रतिमा वाली इस जगह को ग्रामीण तमानगुड़ी के नाम से जानते हैं। यहां के पुजारी पूरन का कहना है कि जिस तरह ग्रीक देवता एटलस द्वारा पृथ्वी को उठाया हुआ माना जाता है उसी तरह ग्रामीणों की मान्यता है कि तमानगुड़ी के देवता ने बारसूर नगर की रक्षा का भार उठाया हुआ है। यहां शादियों में नवदंपति तमानगुड़ी आकर देवता से आशीर्वाद लेते हैं। इसके बाद ही गृहप्रवेश होता है।

खुदाई से मिल सकती है और भी जानकारिया
टीले में तब्दील हो चुके सूर्यदेवता के मंदिर के अवशेष के भीतर और भी प्राचीन मूर्तियां दबी हुई होने की पूरी संभावना है। इस जगह की खुदाई होने पर पुरातात्विक महत्व की कई महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल हो सकती हैं। 9वीं से 11वीं शता.दी के दौरान इस इलाके में चालुक्य और छिंदक नागवंशी शासकों के काल में इन ऐतिहासिक मंदिरों का निर्माण कराया गया था।

सात घोड़ों वाले रथ पर सवार सूर्यदेवता
यह दुर्लभ प्रतिमा 3 फीट ऊंची है। इसमें सूर्यदेव की मुख्य प्रतिमा को त्रिमुख वाला अंकित किया गया है। साथ ही उन्हें सात घोड़ों वाले रथ पर सवार दर्शाया गया है। जो प्रतिमा के सूर्यदेव होने का प्रमाण है। प्रतिमा का सिर वाला हिस्सा खंडित हो चुका है।

प्रतिमा के संरक्षण के लिए उसका सूचीबद्ध होना आवश्यक नहीं है। इस बारे में अभी पता चला है। इसके संरक्षण के जरूरी उपाय किए जाएंगे।
अध्यक्ष, पुरातत्व संग्रहालय जगदलपुर


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