
भोपाल। हिंदी पंचांग के मुताबिक, वर्ष में चार नवरात्रि मनाए जाते हैं। पहले नवरात्रि माघ महीने में मनाए जाते हैं। इसे गुप्त नवरात्रि कहते हैं। दूसरे नवरात्रि चैत्र महीने में मनाए जाते हैं। इन्हें चैत्र नवरात्रि कहते हैं। तीसरे नवरात्रि आषाढ़ महीने में मनाए जाते हैं, इन्हें गुप्त नवरात्रि ही कहा जाता है। वहीं चौथे और अंतिम नवरात्रि अश्विन या शारदीय नवरात्रि जो अश्विन माह में मनाए जाते हैं, जिसे अश्विन नवरात्रि कहा जाता है। इनमें गुप्त नवरात्रि में तंत्र साधना एवं मनोकामना सिद्धि की जाती है। गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की देवी की पूजा-उपासना की जाती है। उन्हीं में से एक हैं दतिया की बगलामुखी मां। मान्यता है कि जो भी इस मंदिर में आता है कभी खाली हाथ नहीं जाता। मां हर किसी के मन की बात सुनती है और उसे पूरी करती है। आप भी जानें दतिया की मां बगलामुखी के चमत्कार और आशीर्वाद की कहानी...
ये हैं दस महाविद्या देवियों के नाम रूप
दस महाविद्या देवियां काली, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुनेश्वरी, छिन्नमस्ता हैं। इन दस महाविद्या देवियों की पूजा उपासना करने से साधक की सभी मनोकामनाएं जल्द पूरी हो जाती हैं। तंत्र साधना करने वाले साधक कठोर तपस्याकर माता को प्रसन्न करते हैं और उनसे मुंहमांगा वर प्राप्त करते हैं। इनमें बगलामुखी आठवी महाविद्या की देवी हैं। इनका वर्ण स्वर्ण समान है। अत: इन्हें पीतांबरा भी कहा जाता है।
राजसत्ता की देवी, अनुष्ठान से मिलता है लाभ
देश दुनिया में यूं तो कई देवियों व देवताओं के मंदिर हैं। इनमें से कुछ के चमत्कार तो आज तक वैज्ञानिक तक नहीं सुलझा पाए हैं। यही स्थिति है इस मंदिर की। आपको बता दें कि अपने बिगड़े कामों को सााने लोग यहां आते हैं और पूजा-अर्चना कर राजसत्ता तक पाते हैं। इसीलिए इन्हें राजसत्ता की देवी भी कहा जाता है। राजसत्ता की कामना रखने वाले भक्त यहां आकर गुप्त पूजा अर्चना करते हैं। ऐसे में यहां देश में चुनाव से पहले कई बड़े राजनेताओं तक का आना लगातार शुरू हो जाता है। वहीं स्थानीय लोगों की मान्यता है कि मुकदमें आदि के सिलसिले में भी मां पीताम्बरा का अनुष्ठान सफलता दिलाने वाला होता है।
तरंग की देवी हैं ये
आचार्यों की मानें तो यहां स्थापित मां बगलामुखी ब्रह्मांड में व्याप्त तरंग की देवी हैं। प्रदेश के दतिया में मां बगलामुखी का मंदिर स्थित है। इस मंदिर की स्थापना 1935 में की गई थी। यह मंदिर पीताम्बरा पीठ के नाम से दुनियाभर में प्रसिद्ध है। इतिहासकारों बताते हैं कि 1935 में 'स्वामीजी महाराजÓ ने दतिया के नरेश के सहयोग से इस मंदिर का निर्माण करवाया था। तत्कालीन समय में इस जगह पर श्मशान हुआ करता था। इससे पूर्व में मंदिर स्थल पर पीठ था।
इनके दर्शन का भी मिलता है सौभाग्य
मंदिर में मां पीतांबरा के साथ ही खंडेश्वर महादेव और धूमावती के दर्शनों का भी सौभाग्य मिलता है। मंदिर के दायीं ओर विराजते हैं खंडेश्वर महादेव, जिनकी तांत्रिक रूप में पूजा की जाती है। महादेव के दरबार से बाहर निकलते ही दस महाविद्याओं में से एक मां धूमावती के दर्शन होते हैं। सबसे अनोखी बात ये है कि भक्तों को मां धूमावती के दर्शन का सौभाग्य केवल आरती के समय ही प्राप्त होता है, क्योंकि बाकी समय मंदिर के कपाट बंद रहते हैं।
यहां है संस्कृत पुस्तकालय
इस मंदिर में मां बगलामुखी और धूमावती देवी की प्रतिमा स्थापित है। साथ ही मंदिर परिसर में हनुमान जी, काल भैरव, परशुराम सहित अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित हैं। इसके अलवा, मंदिर परिसर में एक संस्कृत पुस्तकालय भी है। तंत्र साधना सीखने वाले साधक संस्कृत पुस्तकालय से गुप्त मंत्रों से संग्रहित पुस्तकें खरीद सकते हैं।
Published on:
29 Sept 2022 10:47 am
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