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पानी बंद होने पर भाई-बहन ने यहां ली थी समाधि, लाखों की संख्या में दर्शन करने आते है भक्त

ratangarh mata mandir : सिंध नदी पर स्थित माता रतनगढ़ के दर्शन करने देश अलग अलग राज्यों से लाखों की संख्या में आते हैं श्रद्धालु

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दतिया

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monu sahu

Oct 07, 2019

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पानी बंद होने पर भाई-बहन ने यहां ली थी समाधि, लाखों की संख्या में दर्शन करने आते है भक्त

दतिया। भारत देश को यदि मदिरों का देश कहा जाए तो यह गलत नहीं होगा। क्योकि यहां लाखों छोटे-बड़े मंदिर हैं,जो अलग-अलग देवी-देवताओं को समर्पित हैं और हर मंदिर का अपना अलग और अनोखा इतिहास है। इन मंदिरों से अलग-अलग मान्यताएं जुड़ी हैं। ऐसा ही एक मंदिर है मध्यप्रदेश के दतिया जिले में माता रतनगढ़ और कुंअर बाबा का। जंगल के बीच में बने इस मंदिर का इतिहास भी बहुत ही दिलचस्प है, तो आइए जानते है। करीब चार सौ साल पहले जब जिले में मुस्लिम तानाशाह अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया और दतिया जिले के सेंवढ़ा से रतनगढ़ में आने वाला पानी बंद कर दिया तो राजा रतन सिंह की बेटी मांडुला व उनके भाई कुंअर गंगाराम देव ने इसका विरोध किया।

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इतना ही नहीं बहन व भाई ने इसी भीषण जंगल में निर्जन स्थान पर समाधि ले ली थी। तभी से माता रतनगढ़ व भाई कुंअर देव पूजे जाते हैं। इतना ही नहीं तभी से सर्पदंश से पीडि़त लोगों का जहर भी उतरा जाता है। यहां हर सालों लाखों की संख्या में भक्त माता के दर्शन करने आते हैं। साथ ही यहां नवरात्र और दीपावली पर लख्खी मेला भी भरता है। दतिया जिले के सेंवढ़ा ब्लॉक के सिंध नदी पर स्थित माता रतनगढ़ माता मंदिर व यहां की ख्याति किसी परिचय की मोहताज नहीं है। पिछली पांच पीढिय़ों से माता की सेवा-पूजा करने वाले 82 वर्षीय पं.धनीराम कटारे के मुताबिक पूर्व में यहां भीषण जंगल हुआ करता था।

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शेर-चीते समेत अन्य अन्य आदमखोर जानवर विचरण करते थे। चार सौै साल पहले जब खिलजी वंश के शासक अलाउद्दीन ने लोगों को मारने की नीयत से सेंवढ़ा से इस ओर जाने वाले पानी की आपूर्ति बंद कर दी और वर्तमान मंदिर परिसर में बने राजा रतन सिंह के किले पर आक्रमण कर दिया तो रतन सिंह की बेहद सुंदर बेटी मांडुला को यह नागवार गुजरा।मुसलमान आक्रमणकारी उनके बुरी नीयत से देखें इससे पहले ही बहन व भाई ने जंगल में ही समाधि ले ली थी। तभी से यहां ऐसी सिद्धि हुई कि सर्पदंश से पीडि़त लोग जैसे ही यहां दीपावली की दोज पर पहुंचकर ढोक लगाते थे ते जहर उतर जाता था। मान्यता यह है कि भाई-बहन का आपसी प्रेम इतना था कि भाई दूज का ही यहां ज्यादा महत्व रहा और अब भी यहीं मेला लगता है, जिसमें 25 लाख सेे ज्यादा भक्त मंदिर पहुंचते हैं। वर्तमान में कटारे की पांचवी पीढ़ी के सदस्य व पं.धनीराम के पोते राजेश कटारे भी दादा के पूजा-पाठ में मदद करते हैं।

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सुरक्षा के हैं कड़े इंतजाम
शारदीय नवरात्र की नवमी यानी सोमवार को यहा जवारे भी चढ़ेंए जाएंगे। रविवार को रतनगढ़ माता मंदिर पर करीब एक लाख श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। सोमवार को नवमी पर तकरीबन तीन श्रद्धालुओं के मंदिर पर पहुुंचने का प्रशासन ने दावा किया है। इसके लिए तीन दिशाओं में चार पार्किंग बनाई गई हैं। सबसे पहले बसई मलक पर मंदिर से तीन किमी पहले वाहन रोके जाएंगे। दतिया, झांसी की तरफ से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मरसैनी के रास्ते रतनगढ़ पहुंचने का रास्ता बनाया गया है। जबकि जालौन, सेंवढ़ा, भिंड की तरफ से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भगुवापुरा, ग्वालियर की तरफ से आने वाले श्रद्धालु बेहट के रास्ते और डबरा की तरफ से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए देवगढ़ के रास्ते मंदिर पर पहुंचने का रास्ता तय किया गया है। वहीं मंदिर परिसर और रास्तें में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए है और चप्पे चप्पे पर पुलिस को तैनात भी किया गया है।

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सीसीटीवी कैमरे की जद में पूरा एरिया
जिला प्रशासन ने नवरात्र मेले की व्यवस्था को दीपावली की भाईदूज पर लगने वाले लख्खी मेले को देखते हुए चाकचौबंद की हैं। बसई मलक से लेकर मंदिर और 12 किमी क्षेत्र में रात में रोशनी के लिए लाइटें लगाई गई हैं। श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए 500 पुलिस जवान और 600 अधिकारी और कर्मचारी तैनात किए गए हैं। रतनगढ़ माता मंदिर का पूरा 12 किमी लंबा एरिया सीसीटीवी कैमरे की जद में है। पहाड़ी पर बने कंट्रोल रूम से मॉनीटरिंग हो रही है।