9 दिसंबर 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Freedom Fighter: चाचा को ब्रिटिश पुलिस ने किया गिरफ्तार तो सरकारी नौकरी छोड़कर कूदे आजादी की जंग में, ऐसे बने ‘शेर-ए-राजस्थान’

दे दी हमें आजादी: सरदार पटेल ने रामकरण जोशी को शेर-ए-राजस्थान का नाम दिया। इंदिरा गांधी ने 1972 में ताम्रपत्र से सम्मानित किया।

less than 1 minute read
Google source verification

दौसा

image

Akshita Deora

Aug 01, 2025

रामकरण जोशी (1912-1983) फोटो: पत्रिका

Ramkaran Joshi From Dausa: आजादी के परवानों में शामिल रामकरण जोशी देवनगरी दौसा में जन्मे। उन्होंने शेर-ए-राजस्थान के नाम से पहचान बनाई। सरकारी नौकरी छोड़कर लड़ाई लड़ी तथा यातनाएं झेलीं।

शिक्षक के रूप में राजकीय सेवा में कार्यरत रामकरण जोशी के चाचा को ब्रिटिश पुलिस ने 1939 में गिरफ्तार किया। इस पर जोशी नौकरी छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। जमनालाल बजाज के नेतृत्व में आंदोलन में सक्रिय रहे। कुछ ही समय में वे अंग्रेजी हुकूमत की आंखों की किरकिरी बन गए। दौसा के गांधी चौक में उन्होंने ओजस्वी भाषण दिया जो यादगार बन गया।

उस समय अंग्रेजों ने देशी रजवाड़ों से समझौता कर आंदोलन को फैलने से रोकने की नीति बनाई। ऐसे में जयपुर प्रजामंडल ने भी आंदोलन में सहभागिता घटाई। मगर जोशी ने इसे नहीं माना, उन्होंने आजाद मोर्चे का गठन कर आंदोलन जारी रखा। बाद में जवाहरलाल नेहरू के हस्तक्षेप से प्रजामंडल की सदस्यता स्वीकार की।

‘वे आग का गोला हैं’

रामकरण जोशी के बड़े भाई के पौत्र विनय ने बताया, उनके घर-घर अलख जगाओ आंदोलन से परेशान अंग्रेजों ने एक जांच कमेटी का गठन किया। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में जोशी के लिए लिखा कि ‘वे आदमी नहीं आग का गोला हैं, उन्हें तुरंत गिरफ्तार करें।’ 1942 में उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर एक वर्ष कठोर कारावास दिया। इस दौरान जोशी ने प्रण लिया कि जब तक देश आजाद नहीं होगा वे दूसरा वस्त्र नहीं पहनेंगे। ऐसे में आजादी मिलने तक एक ही धोती पहनकर आंदोलन करते रहे। 17 जनवरी 1983 को उनका निधन हुआ।

आबू राजस्थान का मुकुट

जोशी 1952 से 57 तक राज्य में मंत्री रहे। पुनर्गठन के समय गुजरात ने माउंट आबू पर दावा किया। जोशी ने नेहरू-पटेल से कहा, आबू राजस्थान का मुकुट है। इसे छीनने का मतलब पगड़ी उतारना है। उनकी बात मानी गई।