सामाजिक रूढिय़ों व भ्रम के चलते परिवार नियोजन कार्यक्रमों के बावजूद प्रदेश की आधी आबादी ने नसबन्दी कार्यक्रम से दूरी बना रखी है। ऐसे में महिलाओं के मुकाबले केवल मात्र एक फीसदी पुरुष ही नसबन्दी करा रहे है। जो थोड़े बहुत पुरुष नसबंदी करा रहे हैं, उसमें भी गत वर्ष करीब 35 फीसदी केस कम हुए है। ऐसे में सरकार के स्तर पर गत दिनों माह के तीसरे बुधवार को पुरुष नसबंदी कैम्प अनिवार्य कर दिया है। लेकिन इसके बावजूद जागरुकता के अभाव में स्थिति जस की तस बनी हुई है।
सूत्रों के मुताबिक वर्ष 2017-18 में 2 लाख 49 हजार 680 लोगों की नसबन्दी कराई गई। इनमें से केवल 2 हजार 553 पुरुषों ने ही नसबंदी कराई है। जबकि वर्ष 2016-17 में 2 लाख 79 हजार 434 में से 3 हजार 833 पुरुषों ने नसबंदी कराई थी। ऐसे में गत वर्ष एक हजार से अधिक पुरुष नसबंदी के केस भी कम हुए है।
नसबंदी फेल होने पर होती है शर्मिंदगी
नसबंदी कराने के बाद भी कई बार फेल हो जाती है। ऐसे में पुरुष नसबंदी फेल पर महिला गर्भवती हो जाती है तो जागरुकता के अभाव में सामाजिक रूप से शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। ऐसे में पुरुष नसबंदी कराने से कतराते हंै।
लक्ष्य के मुकाबले एक लाख कम
प्रदेश में वर्ष 2017-18 में 3 लाख 50 हजार लोगों के नसबंदी कराने का लक्ष्य निर्धारित था। लेकिन लक्ष्य के मुकाबले करीब 71 फीसदी ही नसबंदी हो सकी है। वही वर्ष 2016-17 के मुकाबले वर्ष2017-18 में कुल नसबंदी में 10 फीसदी की गिरावट दर्जकी गई है।
सरकार की ओर से किए जा रहे प्रयासों के बाद भी आमजन में नसबन्दी के प्रति पर्याप्त जागरुकता नहीं आ रही है। कई लोग ऑपेरशन के नाम से कतराते हैं, तो कहीं सामाजिक मान्यताएं आड़े आ रही हैं। ऐसे में परिवार नियोजन के अन्य साधन अपनाने के प्रति जागरुक करने की जरुरत है।
महिला नसबंदी हुई-2 लाख 47 हजार 127
पुरुष नसबंदी हुई-2 हजार 553