
दौसा। शीतलहर व पाले से फसलों को नुकसान होने की सम्भावना को देखते हुए पाले से बचाव के लिए कृषि विभाग द्वारा एडवाईजरी जारी की गई है। ताकि किसान सतर्क रहकर फसलों की काफी हद तक सुरक्षा कर सकेंगे। कृषि संयुक्त निदेशक डॉ. प्रदीप कुमार अग्रवाल ने बताया कि पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां व फूल झुलसकर झड़ जाते है एवं पौधों की फलियों-बालियों में दाने बनते नहीं हैं या सिकुड़ जाते हैं। रबी की फसलों में फूल व बालियों के समय पाला पड़ने पर सर्वाधिक नुकसान की संभावना रहती है।
संयुक्त निदेशक ने बताया कि फसलों को पाले से बचाने के लिए गंधक के तेजाब का 0.1 प्रतिशत अर्थात एक हजार लीटर पानी में एक लीटर सान्द्र गंधक का तेजाब का घोल तैयार कर फसलों पर छिडक़ाव करें अथवा घुलनशील गंधक के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव भी कर सकते हैं।
उन्होंने बताया कि नकदी सब्जी वाली फसलों में भूमि के तापमान को कम होने से बचाने के लिए फसलों को टाट, पॉलिथिन अथवा भूसे से ढक देना चाहिए। पाले के दिनों में फसलों में सिंचाई करने से भी पाले का असर कम होता है तथा पाले के स्थाई समाधान के लिए खेतों की उत्तर-पश्चिम दिशा में मेढ़ों पर घने ऊंचे वृक्ष लगाएं।
उन्होंने बताया कि जब आसमान साफ होने, हवा नहीं चलने और तापमान काफी कम होने के समय पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है।
दिन के समय दोपहर में पहले ठण्डी हवा चल रही हो व हवा का तापमान अत्यन्त कम होने लग जाए और दोपहर बाद अचानक हवा चलना बंद हो जाए तब पाला पड़ने की आंशका बढ़ जाती है। पाले के कारण पौधों की कोशिकाओं में उपस्थित जल जमने से कोशिका भित्ति फट जाती है, जिससे पौधों की पत्तियां, कोंपलें, फूल एवं फल क्षतिग्रस्त हो जाते है।
कृषि अधिकारी अशोक कुमार मीना ने बताया कि इस समय कृषकों को सतर्क रहकर फसलों की सुरक्षा के उपाय अपनाने चाहिए। पाला पड़ने के लक्षण सर्वप्रथम आंक आदि वनस्पतियों पर दिखाई देते है। रात को विशेषकर तीसरे एवं चौथे प्रहर में पाला पड़ने की संभावना रहती है।
साधारणतया तापमान चाहे कितना ही नीचे चला जाए, यदि शीतलहर हवा के रूप में चलती रहे तो कोई नुकसान नहीं होता है। परन्तु यही इसी बीच हवा चलना रूक जाए तथा आसमान साफ हो तो पाला पड़ता है, जो फसलों के लिए नुकसानदायक है।
Published on:
22 Dec 2024 04:14 pm
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