
महेश कुमार जैन. दौसा
शहर स्वच्छ तो हम स्वस्थ। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किया गया स्वच्छ भारत अभियान का मकसद शायद यही है। लेकिन इस मकसद को जिले में जिम्मेदारों द्वारा बिसरा दिया गया है। दिखावा हो रहा है। जनप्रतिनिधि, अधिकारी, नेतागण सफाई अभियान के तहत झाड़ू लेकर सड़क पर आते हैं, एक झाडू़ को पांच पांच जने हाथ लगाते हैं...फोटो खिंचती है और घर चले जाते हैं। झाड़ू भी ऐसी जगह लगता है जहां जरूरत नहीं है। यह औपचारिकता नहीं है तो क्या है...? हकीकत में आप कहीं पर भी चले जाइए, कचरे का अम्बार है, गंदगी के ढेर हैं।
शौचालयों का पानी शहर में बह रहा है, जो जर्जर नलों के माध्यम से घरों तक पहुंच रहा है। न शहर स्वच्छ है, न निर्मल जल और सांस लेने के लिए न शुद्ध हवा...। आखिर लोगों को दवा का ही सहारा लेना पड़ रहा है। न हमारा शहर स्वच्छ न हम स्वस्थ...। दौसा को देवनगरी का दर्जा दिया गया है। यहां हरेक गली मोहल्ले में जगह-जगह देवालय हैं मंदिर हैं, जहां भगवंतों की पूजा होती है। यहां सफाई को दरकिनार करना शर्मनाक है। 'इन्हेंÓ कौन माफ करेगा...?
एक ओर 'प्रकाश पर्वÓ दीपावली के उत्सवी माहौल में लोग घर के कोने-कोने को चमकाने-दमकाने लगेे हैं। वहीं दूसरी ओर घरों की गंदगी भी गली-मोहल्लों व सड़कों चौराहों पर बाहर आ गई है। एक तरह से 'देवनगरीÓ में कचरे का 'जिन्नÓ बाहर आगया है। शहर में पहले से ही कचरे के ढेर लगे हुए थे, अब गंदगी का विकराल रूप नजर आ रहा है। यह 'जिन्नÓ सबको अपनी चपेट में ले रहा है।
कचरा नियमित निष्क्रमण नहीं हो रहा है और बीमारी का संक्रमण निरंतर फैल रहा है। ऐसे में दीवाली पूर्व नगर निकायों द्वारा विशेष योजना बनाकर सफाई अभियान चलाया जाना चाहिए, लेकिन वह तो दूर की बात जो साधन संसाधन लगे हैं उनका भी सुनियोजित समुचित इस्तेमाल नहीं हो रहा है। दौसा नगर निकाय की बात करें तो सफाई पर सालाना बजट दो करोड़ रुपए खर्च होता है। पौने चार सौ स्थाई अस्थाई सफाईकर्मी लगे हैं। जेसीबी, ट्रैक्टर ट्रोलियां, टेम्पो, आदि संसाधन भी पर्याप्त हैं। कचरा पात्र भी रखे हुए हैं। जो भी सड़ांध मार रहे हैं।
ट्रोलियां कचरे को ले जाती दिख भी जाती है तो पूरे शहर में मुख्य सड़कों पर कचरा उड़ाते हुए जाती है। इससे बचने के लिए वाहन चालकों को भी सड़क किनारे रुकना पड़ता हैं। यही नहीं कचरा जनित कीटाणू पानी व वायु के जरिए हमारे शरीर में पहुंच कर बीमारियों का कारण बन रहे हैं। घर घर में लोग बीमार हैं। जानकारी के अनुसार इन दिनों दौसा अस्पताल आउटडोर में प्रतिदिन 2000 मरीज पहुंच रहे हैं।
अर्थात दौसा शहर में एक माह में 60 हजार मरीज अस्पताल पहुंच रहे हैं। दौसा शहर की लगभग सवा लाख आबादी है। मतलब एक माह में आधी आबादी अस्पताल पहुंच चुकी है। स्वाइन फ्लू, मलेरिया, डेंगू, वायरल, उल्टी, दस्त, खांसी, जुकाम का प्रकोप बढ़ा है। जिले में स्वाइन फ्लू से तीन मौत हो चुकी है। एक डॉक्टर सहित 21 जनों की स्वाइन फ्लू पॉजीटिव रिपोर्ट आ चुकी है। एहतियात बतौर 331 को टेमी फ्लू दवा जिला चिकित्सालय में दी जा चुकी है। 100 से अधिक मरीज डेंगू व मलेरिया के भर्ती हो चुके हैं।
बांदीकुई लालसोट नगर निकाय भी इससे अछूते नहीं हैं। बांदीकुई की बात करें तो यहां सफाई के नाम पर प्रति वर्ष 40 लाख रुपए खर्च किए जाते हैं। 65 सफाई कर्मी भी तैनात हैं। फिर भी गंदगी से लोगों को छुटकारा नहीं मिल रहा है। यहां भी करीबन 1000 मरीज रोज अस्पताल पहुंच रहे हैं। डेंगू मलेरिया के 27 मरीज भर्ती हो चुके हैं। इसी प्रकार लालसोट नगर निकाय 30 लाख सफाई के नाम पर सालाना बजट खपाता है। लेकिन सफाई के माकूल बंदोबस्त नहीं है। प्रशासन को भी चाहिए कि साफ पानी की व्यवस्था हो, पक्के शौचालयों का निर्माण हो, कचरा निस्तारण का ठोस प्रबंधन हो। तब ही सफाई अभियान को गति मिलेगी।
लेकिन सारी जिम्मेदारी प्रशासन, नगर निकायों व सफाईकर्मियों की ही नहीं है, बल्कि जिले के हर एक नागरिक की भी है। हम अपने अधिकारों की बात सदैव करते हैं, लेकिन हमारे कर्तव्य क्या हैं उनका भी ध्यान रखना चाहिए। हमारा शहर स्वच्छ तब ही हो सकता है, जब इसकी शुरुआत स्वसंकल्पित होकर खुद से हो, पहले खुद के घर को लो, फिर गली को और फिर मोहल्ले को। हमें अपने आसपास कूड़ा कचरा फैलने से रोकना है। लोगों में सफाई के प्रति जागरूकता पैदा करनी ही है। इतना कर लिया तो हमारा शहर स्वत: ही साफ दिखाई देने लगेगा। तब ही हम हमारे प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 2019 तक सफाई अभियान को पूरा करने के मकसद को पार पाने में सहायक सिद्ध हो सकेंगे और खुद को भी बीमारू स्थिति से उबार सकेंगे।
mahesh.jain1@in.patrika.com
Published on:
29 Sept 2017 08:32 am
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