
नैनीताल राजभवन
अमर श्रीकांत की रिपोर्ट...
(देहरादून): नैनीताल राजभवन पर भूस्खलन का खतरा मंडरा रहा है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भू गर्भीय वैज्ञानिक काफी पहले से ही इसका अंदेशा भी जता चुके हैं। भू वैज्ञानिकों की चेतावनी के बाद राजभवन ने भी शासन -प्रशासन को भविष्य में होने वाले खतरे से अलर्ट करते हुए आवश्यक कदम उठाने और स्थाई हल के लिए जरूरी ट्रीटमेंट कराने की पहल की है लेकिन लंबे अंतराल के बाद भी आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र राजभवन पर मंडरा रहे भूस्खलन के खतरा के प्रति गंभीर नहीं है।
गोल्फ ग्राउंड के पिछले हिस्से में काफी बड़ा भू स्खलन हो चुका है
दरअसल नैनीताल राजभवन के अंदर ही गोल्फ ग्राउंड है और इसके पिछले हिस्से में काफी बड़ा भू स्खलन हो चुका है। काफी पहले हुए भूस्खलन से पूरे राजभवन को खतरा है। माना जा रहा है कि यह भूस्खलन साल 1880 में हुआ होगा। यह बात भू गर्भीय वैज्ञानिकों ने अपने अनुसंधान के दौरान पाया है। हालांकि इसके पहले भू गर्भीय वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि वर्ष 1866 और वर्ष 1879 में भी भूस्खलन के संकेत मिले हैं। उस समय ही राजभवन स्थित गोल्फ ग्राउंड का पिछला हिस्सा काफी हद तक प्रभावित हुआ है। वैसे उस दौरान नैनीताल में करीब 151 लोगों की मृत्यु हुई थी जिसमें 108 लोग भारतीय और शेष 43 अंग्रेज शामिल थे। यह बताना आवश्यक है कि उस समय देश पर अंग्रेजी हुकूमत का आदेश चलता था। भूस्खलन से विशेष रूप से मलीताल का क्षेत्र बुरी तरह से प्रभावित हुआ था। इस दौरान ही नैना देवी मंदिर को भी तगड़ा झटका लगा था।
राजभवन के नीचे का क्षेत्र है काफी संवेदनशील
वर्ष 1880 में आए इस भूस्खलन को शहर का डांडा और 1898 में आए भूस्खलन जिसमें 28 लोगों की मौत हुई थी को केला खान भूस्खलन के नाम से जाना जाता है। इन सभी तथ्यों के रिकार्ड स्लोप इंस्टाबिलीटी एंड जियो इनवारोमेंटल इसूज आफ द एरिया एराउंड नैनीताल में दर्ज है। वैसे तो पूरा का पूरा नैनीताल ही भूकंप के लिहाज से आवंटित चौथी श्रेणी में शामिल है जो काफी संवेदनशील है। नैनीताल को आपदाआें के नजरिए से काफी सुपर अलर्ट पर रखा गया है। जहां तक नैनीताल राजभवन का सवाल है ,वहां पर स्थित गोल्फ ग्राउंड के नीचे का क्षेत्र भूस्खलन की दृष्टि से काफी संवेदनशील इसलिए भू वैज्ञानिक मान रहे हैं कि यहां पर लोकल फाल्ट है। इस फाल्ट का मतलब यह होता है कि हरिनगर अंचल की तरह ही यहां चूना पत्थर की मात्रा ज्यादा है। चूना पत्थर की खासियत तुरंत पानी में घुलने की है। इसके अतिरिक्त स्लेट की पतली परतें भी ज्यादा हैं। इस तरह की परतें काफी कमजोर और चिकनी होती हैं। जिससे भूस्खलन के समय तेजी के साथ कटाव होता है। भू वैज्ञानिकों का कहना है कि फाल्ट कैसा भी और कहीं भी हो। इससे चट्टानें कमजोर होती हैं।
इस बारे में आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के ही भू वैज्ञानिक सुशील खंडूड़ी का कहना है कि नैनीताल की बसावट ही भूस्खलन पर है। नैनीताल का इतिहास बहुत लंबा नहीं है। वर्ष 1841 के बाद से ही यहां लोगों का बसना शुरू हुआ है। लेकिन इस शहर को वर्ष 1880 से ही कई बार बड़ी बड़ी आपदाआें से जूझना पड़ा है। वर्ष 2011 में भू गर्भीय वैज्ञानिकों की टीम ने भी नैनीताल राजभवन का दौरा किया और पाया कि यहां ट्रीटमेंट की जरूरत है। इस बारे में भी भू गर्भीय वैज्ञानिक सुशील खंडूड़ी का कहना है कि यहां ट्रीटमेंट की आवश्यकता है। यह काफी संवेदनशील है। खंड़ूड़ी का मानना है कि पहले आए भूस्खलन पर ही पूरा नैनीताल बसा हुआ है। एेसे में जमीन तो ढीली होगी ही। बोल्डर पुराने होने पर गलते हैं और जमीन में धसने लगते हैं। भूस्खलन को समझने और परखने के लिए मिट्टी और पत्थर के मिश्रण के अनुपात का अध्ययन किया गया है। इसलिए सुरक्षा के लिहाज नैनीताल राजभवन का ट्रीटमेंट बेहद जरूरी है।
‘पीडब्ल्यूडी को ट्रीटमेंट की जिम्मेदारी सौंपी गई है। आपदा प्रबंधन नजर रखे हुए है। संवेदनशील क्षेत्र तो पूरा का पूरा नैनीताल ही है।
’डा.पीयूष रौतेला ,अधिशासी निदेशक ,आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र
Published on:
06 Oct 2018 07:27 pm
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