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16 साल की उम्र में संयम की राह पकड़ी, दीक्षा के बाद नाम अचलमुनि

-श्रीश्रीमाल परिवार के एकलौते पुत्र अचल का दीक्षा महोत्सव पूर्ण

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Amit Mandloi

Dec 04, 2022

16 साल की उम्र में संयम की राह पकड़ी, दीक्षा के बाद नाम अचलमुनि

16 साल की उम्र में संयम की राह पकड़ी, दीक्षा के बाद नाम अचलमुनि

नागदा. वीर पिता के कांधों पर विराजमान 16 वर्षीय दीक्षार्थी बाल मुमुक्षु अचल श्रीश्रीमाल दीक्षा महोत्सव के पांचवे दिन रविवार को अपने निवास से महाभिनिष्क्रमण यात्रा के साथ दीक्षा स्थल के लिए रवाना हुए तो हजारो गुरूभक्त दीक्षार्थी की जय-जयकार करते हुए यात्रा में शामिल हुए।

दीक्षार्थी के पिता मुकेश श्रीश्रीमाल अपने कांधों पर लिए दीक्षार्थी को दीक्षा स्थल मंडी प्रांगण पहुंचे तो उपस्थित गुरूभक्त एक स्वर में दीक्षार्थी की जय-जयकार करने लगे। प्रात: शुभ मुहुर्त में अचल श्रीश्रीमाल ने जिन शासन गौरव, पूज्य गुरूदेव उमेशमुनि के सुशिष्य प्रवर्तक पूज्य जिनेंद्रमुनि व साधु-साध्वी मंडल की पावन निश्रा में दीक्षा अंगीकार की। दीक्षा महोत्सव में शामिल होने दूर-दूर से कई प्रदेशों के गुरूभक्त पहुंचे। रात में आयोजित दीक्षा विदाई समारोह में संगीतकार अनिश राठौड़ जैन मुंबई द्वारा देर रात तक गीतों के माध्यम से दीक्षार्थी की अनुमोदना में भक्ती गीत प्रस्तुत किए। जहां आकर्षक सजे मंच पर दीक्षार्थी विराजमान था। वहीं सैकड़ो गुरूभक्तों ने दीक्षा विदाई समारोह का लाभ लिया। दीक्षा स्थल पर दीक्षा पूर्व आयोजित प्रवचन सभा में प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव जिनेंद्रमुनि ने कहा कि प्रेरणा जब मिलती है और व्यक्ति उसे आचरणिक कर लेता है तो दीक्षा लेने का मन बन ही जाता है और ऐसे ही दृढ़ता यहां के एक युवा ने दिखाई। इतनी कम उम्र में दीक्षा लेने के निर्णय ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। जिनशासन गौरव, आचार्य उमेशमुनि के शिष्य, धर्मदास गणनायक, प्रवर्तक पूज्य जिनेंद्रमुनि की पावन निश्रा में रविवार को नागदा निवासी 16 वर्षीय बाल मुमुक्षु अचल श्रीश्रीमाल दीक्षा अंगीकार कर संयम पथ पर आरूढ़ हुए।

जिसका इंतजार वह पल है आज

दीक्षा पूर्व अचल श्रीश्रीमाल ने कहा जिस पल का मुझे इंतजार था, वह पल आज आ गया है। मैंने मनुष्य जीवन प्राप्त किया और इस जीवन में गुरूवर की कृपा से मैं संयम को पाने जा रहा हूं। एकलौता पुत्र होने के कारण मुझे कठिनाइयां जरूर आई, लेकिन 2020 में नागदा में हुए वर्षावास में गुरूदेव के सानिध्य में मुझे संयम के पथ पर चलने का विचार आया था जो आज मिल गया। मैं हर्ष महसूस कर रहा हूं, हर सांस की लहर संयम की ओर चल रही है। जिसे मैं अपने भावों से प्रकट नहीं कर सकता। आज मेरी भावनाएं जिस पल के लिए लालायित थी वह मंगल बेला आज आ गई।

आज से शुरू होगा विहार

उन्होंने कहा इस संसार में क्या सुख लगता है। वह हमें आभास होता है, पर सच्चा सुख इस सृष्टि में संयम मार्ग से ही मिलता है। संयम ही शाश्वत सुख है। सांसारिक सुख, मोह माया से भरी जिंदगी को मैं आज त्याग कर संयमरूपी जिनशासन में गुरूवर की कृपा से जा रहा हूं। मेरे माता-पिता, बहन व परिजन का हृदय दुखाया उसके लिए मैं क्षमायाचना करता हूं। आपके द्वारा दी गई इस आज्ञा का उपकार भुल नहीं पाउंगा। आज यहां आचार्य भगवंत द्वारा मुमुक्षु अचल श्रीश्रीमाल का दीक्षा के बाद नामकरण किया। इसमें उनका नाम अचलमुनि रखा गया। हजारो गुरूभक्तों ने दीक्षार्थी व दीक्षार्थी परिवार की अनुमोदना की। साथ ही बदनावर की मुमुक्षु किरण कांठेड़ की दीक्षा भी आचार्य भगवंत की पावन निश्रा में संपन्न हुई। प्रवर्तक श्रीजी ने बदनावर की मुमुक्षु किरण कांठेड़ का दीक्षा पश्चात नामकरण किया। इसमें उनका नाम साध्वी कृतज्ञाश्रीजी रखा गया। दीक्षा महोत्सव के पांचवे दिन नवकारसी व स्वामीवात्सल्य में सैकड़ो गुरूभक्तों ने लाभ लिया। पूज्य गुरूदेव जिनेंद्रमुनि ने दीक्षा के बाद रविवार को हाटपिपल्या के लिए विहार किया। वहीं दीक्षा अंगीकार करने वाले अचलमुनि सोमवार को नागदा से विहार करेंगे।