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खरमोर संरक्षण अभयारण को नहीं मिल पाई पहचान, चार दशक से किसान परेशान

सरदापुर क्षेत्र में ३५ हेक्टेयर जमीन चिन्हित, पिछले कई सालों से नजर नहीं आया खरमोर पक्षी, १४ गांवों में जमीन खरीदी-बिक्री पर रोक, अपने ही जमीन नहीं मिल रहा लोन

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धार

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rishi jaiswal

Nov 13, 2023

dhar

खरमोर संरक्षण अभयारण को नहीं मिल पाई पहचान, चार दशक से किसान परेशान,खरमोर संरक्षण अभयारण को नहीं मिल पाई पहचान, चार दशक से किसान परेशान

-धार. विलुप्त होते जा रहे खरमोर पक्षी के संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। धार जिले के सरदारपुर क्षेत्र में खरमोर अभ्यारण के लिए ३५ हेक्टेयर जमीन बर्ड सेंचुरी के नाम से चिन्हित की गई थी। लेकिन चार दशक के प्रयासों के बाद भी इस प्रोजेक्ट को पहचान नहीं मिल पाई।

दरअसल, मालवा के पठार कहे जाने वाले सरदापुर क्षेत्र में खरमोर पक्षियों के संरक्षण के लिए सरकार द्वारा बहुत प्रयास किए गए। इसी को देखते हुए वन विभाग और आसपास किसानों की जमीन को चिन्हित किया गया, लेकिन पिछले कुछ सालों से यहां खरमोर पक्षी नहीं देखा गया। ऐसे में क्षेत्र के किसान बेहद परेशान हैं। क्योंकि वन विभाग और शासन ने उनकी जमीनोंं की खरीदी-बिक्री पर रोक जो लगा रखी है। इस वजह से किसान न तो जमीन बेच सकते और ना ही उस पर लोन ले सकते हैं।
१९८३ में शुरू हुए थे प्रयास

जानकारों की मानें तो खरमोर शर्मिला पक्षी है। जो आमतौर पर सीधे लोगों सामने नहीं आता। प्रवासी पक्षी होने से यह बारिश के दिनों में भी सरदारपुर इलाके में आता है। यहां वह प्रजनन करता है और अंडे देता है। इसके बाद वह बच्चों को लेकर उड़ जाता है। बॉम्बे हिस्ट्री नेचुरल सोसायटी के पक्षी विशेषज्ञ सलीम अली ने खरमोर के लिए सेंचुरी बनाने का सुझाव वर्ष 1980 में दिया था। अली जब इस क्षेत्र में आए थे, तो उन्हें खरमोर दिखाई दिए थे। उन्होंने पाया कि यह क्षेत्र खरमोर के आने और प्रजनन के लिए अनुकूल है। ऐसे में उन्होंने राज्य सरकार को यह सुझाव दिया। वर्ष 1983 में यहां पक्षी अभ्यारण् यानी बर्ड सेंचुरी बनाई गई। उसी समय रतलाम जिले के सैलाना में भी खरमोर के लिए एक दूसरी सेंचुरी बनाई थीं।

इसलिए खास है बर्ड सेंचुरी

३५ हेेक्टेयर में फैले इस क्षेत्र में हरे-भरे पेड़ व घास है, जो पक्षियों की बसावट के लिए सबसे उपयुक्त स्थान माना गया है। बर्ड सेंचुरी के लिए वन विभाग द्वारा यहां सामने की ओर बाउंड्रीवाल और तार फेसिंग लगाई गई है। यह स्थान प्राकृतिक रूप से बेहद खास है। वन विभाग के रेंजर विक्रम चौहान बताते हैं कि बीते साल यहां पांच जोड़े खरमोर पक्षी आए थे और उसके पहले की संख्या भी तकरीबन यही थीं। भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम- 1972 की अनुसूची में खरमोर को लुप्तप्राय जीव के रूप में सूचीबद्ध किया है।

मालिक होते हुए भी जमीन का अधिकार नहीं

सरदारपुर में बर्ड सेंचुरी के आसपास कई गांव बसे हैं। उनमें से 14 गांव ऐसे हैं जहां की जमीनों को 40 वर्ष पहले सेंचुरी के लिए रिजर्व या नोटिफाई किया था। इन गांवों के किसानों के पास अपनी जमीनें तो हैं, लेकिन उनके पास वह अधिकार नहीं है जो किसी दूसरे जमीन मालिक के पास होते हैं। किसानों की जमीनें न तो सरकार ने ली है और न ही कोई मुआवजा दिया है। जमीनों की खरीद-बिक्री पर सरकार ने रोक लगा दी है। ऐसे में किसानों को उस पर लोन भी नहीं मिल सकता है। किसानों के मुताबिक, उन्हें उनकी जमीनों पर किसी सरकारी योजना का फायदा भी नहीं मिलता। ग्रामीण लगातार इस रोक को हटाने की मांग कर रहे हैं।

ये गांव प्रभावित

गुमानपुरा, बिमरोद, चिदावड़, पिपलानी, सेमलिया, करणावद, केरिया, धुलैट, सियावड़, सोनगढ़, अमोदिया, तिमाइची, , भानगढ़ और महापुरा शामिल हैं।

शासन स्तर का मामला

सरदारपुर के समीप बर्ड सेंचुरी खरमोर पक्षी के संरक्षण के लिए बनाया गया है। यह पक्षी प्राय: यदाकदा ही नजर आता है। इस बार पक्षी के आने की सूचना नहीं है। किसानों की जमीन से जुड़ा मामला शासन स्तर का है। इसलिए इस बारे में कुछ नहीं बोल सकते।

मयंक सिंह गुर्जर, प्रभारी डीएफओ धार