
apara ekadashi may 2025 date: अपरा एकादशी मई 2025 महत्व (Photo Source: Pinterest)
Apara Ekadashi Mahatv: अजमेर की ज्योतिषी नीतिका शर्मा के अनुसार अपरा एकादशी का व्रत रखने से सभी पाप धुल जाते हैं। साथ ही व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना (Apara Ekadashi May) से जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
यदि आप आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे हैं तो एकादशी के दिन विष्णु जी के साथ-साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आप आर्थिक रूप से संपन्न होते हैं। एकादशी का व्रत रखने से शरीर रोग मुक्त भी रहता है।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। इसके लिए ये स्टेप अपना सकते हैं।
1.इस दिन यदि आप व्रत रखते हैं तो प्रातः उठकर, स्नान से मुक्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. फिर श्रीहरि विष्णु को केला, आम, पीले फूल, पीला चंदन, पीले वस्त्र चढ़ाएं और ऊं नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करें।
3. श्रीहरि को केसर का तिलक लगाएं और फिर स्वंय भी टीका करें, इसके बाद विष्णु सहस्रनाम का पाठ जरूर करें और एकादशी व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
4. यदि आप कथा करते या सुनते हैं तो आपको भगवान विष्णु को पंचामृत और आटे की पंजीरी का भोग जरूर लगाएं। साथ ही विष्णु जी को लगने वाले भोग में तुलसी दल अवश्य अर्पित करें।
विद्वान एकादशी व्रत के दिन कुछ गलतियों को भूलकर भी करने से बचने की सलाह देते हैं, उनका कहना है कि इससे भगवान नाराज हो जाते हैं। ऐसे लोग जो व्रत रख रहे हैं उन्हें तो जरूर इन बातों का पालन करना चाहिए।
1.तामसिक आहार और बुरे विचार से दूर रहें।
2. बिना भगवान कृष्ण की उपासना के दिन की शुरुआत न करें।
3. मन को ज्यादा से ज्यादा ईश्वर भक्ति में लगाए रखें।
4. एकादशी के दिन चावल और जड़ों में उगने वाली सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए।
5. एकादशी के दिन बाल और नाखून काटने से बचना चाहिए।
6. इस दिन सुबह देर तक नहीं सोना चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण ने अपरा एकादशी व्रत का महत्व सबसे पहले धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। इसके अनुसार अपरा एकादशी व्रत को करने से प्रेत योनि, ब्रह्म हत्या आदि पाप से मुक्ति मिलती है।
अपरा एकादशी कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नाम का एक धर्मात्मा राजा था। वहीं उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी और अन्यायी था, जो अपने बड़े भाई महीध्वज से घृणा और द्वेष करता था। राज्य पर अपना आधिपत्य जमाने के लिए एक रात उसने बड़े भाई की हत्या कर दी और उसकी देह को जंगल में पीपल के नीचे गाड़ दिया।
अकाल मृत्यु के कारण राजा महीध्वज प्रेत योनि में पहुंच गया और प्रेतात्मा बनकर उस पीपल के पेड़ पर रहने लगा। प्रेत योनि में रहते हुए राजा महीध्वज आसपास बड़ा ही उत्पात मचाता था। एक बार धौम्य ऋषि ने वहां प्रेत को देख लिया और माया से उसके बारे में सबकुछ पता कर लिया। ॠषि ने उस प्रेत को पेड़ से उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया।
महीध्वज की मुक्ति के लिए ऋषि ने अपरा एकादशी व्रत रखा और श्रीहरि विष्णु से राजा के लिए कामना की। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। राजा बहुत खुश हुआ और वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ स्वर्ग लोग में चला गया।
Updated on:
22 May 2025 10:49 am
Published on:
22 May 2025 08:16 am
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