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यहां है मां सरस्वती का घर, आज भी मुख की आकृति आतीं हैं नजर

देवी सरस्वती को नदी के रूप में यहां प्रकट होने का जिक्र श्रीमद्भगवद पुराण और विष्णु पुराण में…

भोपालFeb 16, 2021 / 12:31 pm

दीपेश तिवारी

Birth Place of Goddess Saraswati is here and her famous temples

Birth Place of Goddess Saraswati is here and her famous temples

मां सरस्वती का वेदों में, शास्त्रों में एक अलग ही स्थान दिया गया है। लेकिन आज हम आपको उस स्थान के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां मां सरस्वती पहली बार प्रकट हुई थीं। वो स्थान देश के ही देवभूमि उत्तराखंड में ही मौजूद है। दरअसल चमोली में बद्रीनाथ मंदिर से तीन किलोमीटर आगे जाने पर आपको सरस्वती नदी का उद्गम दिखेगा। मान्यता है कि इसी जगह पर मां सरस्वती पहली बार प्रकट हुईं थीं। यहां सबसे हैरानी की बात ये है कि सरस्वती नदी की धारा भी यहां पर एक मुख की आकृति के रूप में बहती है।

इसके अलावा बसंत पंचमी पर ज्ञानदायिनी और विद्यादायिनी मां सरस्‍वती का जन्‍मोत्सव भी मनाया जाता है। पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार, आज ही के दिन मां सरस्‍वती का प्राकट्य हुआ था। इस दिन चारों ओर का वातावरण पीतवर्णित हो जाता है। खेत में सरसों के फूल लहलहाते हैं और पीले रंग के वस्‍त्र पहनकर ही मां सरस्‍वती की पूजा की जाती है। सरस्‍वती माता की कृपा से सभी भक्‍तों को विद्या बुद्धि और शक्ति प्राप्‍त होती है। आज हम आपको भारत में और विदेश में स्थित मां सरस्‍वती के प्रख्‍यात मंदिरों के बारे में भी बताएंगे।

दरअसल उत्तराखंड में सरस्वती नदी की धारा एक शक्ल बनाती है। इसे मां सरस्वती का मुख भी कहा जाता है। ऐसा अद्भुत नज़ारा आपको सिर्फ उत्तराखंड के माणा गांव में ‘भीम पुल’ से ही दिखेगा। नदी की धारा पर जब सूर्य की रोशनी पड़ती है तो सामने इंद्र धनुष के सातों रंग नजर आते हैं।

कहा जाता है कि ये सात सुर हैं जो देवी सरस्वती की वीणा के तारों में बसे हैं। भीमपुल से सरस्वती नदी धरातल के अंदर बहती हुई देखी जा सकती है। इसके बाद ये नदी लुप्त हो जाती है। महाभारत में भी सरस्वती नदी के अदृश्य होने का वर्णन है। आज भी हरियाणा और राजस्थान के कई स्थानो पर सरस्वती नदी के धरातल के भीतर बहने की बाते कहीं जाती हैं। राजस्थान में तो सरस्वती नदी को धरती पर लाने के लिए प्रोजक्ट तक बनाया गया। लेकिन शायद ही कभी कोई इस नदी के असली रहस्य को जान और समझ पाए।

माना जाता है कि उत्तराखंड के इस दिव्य स्थान से ही पांडवों ने स्वर्ग की यात्रा की थी। यही नहीं, महर्षि वेद व्यास जी ने इसी स्थान पर महाभारत की रचना की थी। इसी जगह पर मां सरस्वती का एक दिव्य मंदिर भी है। कहा जाता है कि गंगा, यमुना और सरस्वती के बीच में हुए विवाद की वजह से देवी सरस्वती को नदी के रूप में यहां प्रकट होना पड़ा था। श्रीमद्भगवद पुराण और विष्णु पुराण में भी इस कथा का ज़िक्र किया गया है।

देवी सरस्वती का ये मंदिर दिखने में तो छोटा है लेकिन इसका महत्व बड़ा है। कहा जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से और देवी सरस्वती का मन से ध्यान करने पर जीवन में कुछ अच्छी घटनाएं होनी शुरू हो जाती हैं। यहीं पर यानी सरस्वती नदी के ठीक ऊपर एक बड़ी से शिला है जिसे भीम शिला भी कहा जाता है।

famous temples of goddess Maa Saraswati

मां सरस्‍वती के 8 प्रमुख मंदिर :

1. सरस्वती उद्गम मंदिर माणा गांव उत्तराखंड…
उत्तराखंड में बदरीनाथ धाम से 3 किलोमीटर की दूरी पर सरस्वती नदी के उद्गम तट पर मां सरस्वती का एक छोटा सा मंदिर है। मान्यता है कि सृष्टि में पहली बार इसी स्थान पर देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। इसी स्थान पर व्यासजी ने माता सरस्वती की पूजा करके महाभारत और अन्य पुराणों की रचना की थी। यहां सरस्वती की जलधारा के ऊपर सूर्य की रोशनी में सतरंगी किरणें नजर आती हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि ये सरस्वती के वीणा के तार हैं।

2. पुष्कर स्थित सरस्वती मंदिर, राजस्थान…
राजस्थान के पुष्कर में विश्व का इकलौता ब्रह्मा मंदिर है। ब्रह्मा मंदिर से कुछ दूर पहाड़ी पर देवी सरस्वती का मंदिर है। मान्यता है कि ब्रह्माजी की पत्नी ने सिर्फ पुष्कर में ही पूजे जाने का श्राप दिया था।

3. शारदाम्बा मंदिर श्रृंगेरी कर्नाटक…
आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मठों में पहला मठ ऋृगेरी शारदा पीठ है जिसकी स्थापना आठवीं सदी में हुई थी। यह पीठ शारदाम्बा मंदिर के नाम से विख्यात है। इस मंदिर में पहले चंदन की लकड़ी से बनी देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित थी जिसे आदिगुरु शंकराचार्य ने स्थापित किया था। इस मूर्ति को 14वीं सदी में बदल दिया गया और इसकी जगह सोने की मूर्ति स्थापित की गई।

इस मंदिर में सरस्वती देवी के अलावा स्फटिक का शिवलिंग भी स्थापित है जिसके बारे में कहा जाता है कि इस शिवलिंग को भगवान शिव ने स्वयं शंकराचार्य को दिया था। माघ शुक्ल सप्तमी यानी बसंत पंचमी सरस्वती पूजा के दिन यहां माता की पूजा भव्य रूप से की जाती है। नवरात्र और अन्य कई अवसरों पर भी विशेष पूजा का आयोजन होता है।

4. मैहर का शारदा मंदिर, मध्यप्रदेश…
मध्यप्रदेश के सतना जिले त्रिकुटा पहाड़ी पर मां दुर्गा के शारदीय रूप देवी शारदा का मंदिर है। इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि आल्हा और उदल नाम के दो चिरंजीवी कई वर्षों से रोज देवी की पूजा कर रहे हैं।

5. श्री ज्ञान सरस्वती मंदिर, आंध्र प्रदेश…
कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध विराम के बाद इसी जगह वेदव्यास ने देवी सरस्वती की तपस्या करी थी। जिससे खुश होकर माता सरस्वती ने उन्हें प्रकट होकर दर्शन दिए थे। देवी के आदेश पर उन्होंने तीन जगह तीन मुट्ठी रेत ली, चमत्कार स्वरूप रेत सरस्वती, लक्ष्मी और काली प्रतिमा में बदल गई। आज भी यहां तीनों देवी विराजमान होकर अपने भक्तों का कल्याण करती हैं। भारत के कोने-कोने से यहां लोग दर्शन करने आते हैं। बसंत पंचमी के दिन यहां माता के दर्शन का विशेष महत्व है। कहते हैं इनके दर्शन से अज्ञान का अंधकार मिट जाता है।
6. भोजशाला में सरस्वती मंदिर,धार…
मध्यप्रदेश के धार स्थित भोजशाला में प्रतिवर्ष बसंत पंचमी पर सरस्वती माता के आराधकों का मेला लगता है। इस स्थान पर मां सरस्वती की विशेष रूप से इस दिन पूजा-अर्चना होती है। यह मंदिर वास्तु शिल्प का अनुपम प्रतीक है। पुराणों के अनुसार राजा भोज सरस्वती माता के भक्त थे। उनके काल में सरस्वती की आराधना का विशेष महत्व था। वर्ष में केवल एक बार बसंत पंचमी पर भोजशाला में मां सरस्वती का तैलचित्र ले जाया जाता है, जिसकी आराधना होती है। यहां पर बसंत पंचमी के दौरान कई वर्षों से उत्सव आयोजित हो रहे हैं।
7. मूकाम्बिका मंदिर, केरल…
दक्षिण मूकाम्बिका के नाम से प्रसिद्ध केरल का प्रसिद्ध मंदिर देवी सरस्वती को समर्पित है। एरनाकुलम जिले में स्थित इस मंंदिर में मुख्य देवी सरस्वती के अलावा भगवान गणेश, विष्णु, हनुमान और यक्षी की प्रतिमा स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार यहां के राजा देवी मूकाम्बिका के भक्त थे और हर साल मंगलौर के कोल्लूर मंदिर में जाकर देवी के दर्शन किया करते थे। राजा जब बूढे़ हो गए तो हर साल मंदिर जाने में इन्हें परेशानी होने लगी। भक्त की आस्था का भक्ति को देखकर देवी मूकाम्बिका राजा के सपने में आईं और राजा से कहा उनका मंदिर बनवाएं और यहीं उनके दर्शन करें। यहां देवी सरस्वती की मूर्ति पूर्व दिशा की ओर मुंह करके विराजमान है। मंदिर में 10 दिनों का उत्सव जनवरी और फरवरी महीने में मनाया जाता है। यहां विद्यारंभ उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है जिसमें बच्चों का विद्यारंभ संस्कार किया जाता है।
8. बाली में सरस्‍वती मंदिर…
भारत के अलावा विदेश में भी मां सरस्‍वती की विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है। खूबसूरत देश बाली में भी मां सरस्‍वती का मंदिर स्थित है। यहां मंदिर के चारों ओर बने पवित्र जल के सरोवर में कमल ही कमल खिले हुए हैं। यहां के लोग मां सरस्‍वती के प्रति विशेष आस्‍था रखते हैं और बसंत पंचमी के अवसर पर खास आयोजन के साथ यह त्‍योहार मनाते हैं।

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