
Dhanda Laxmi Stotram: धनदा लक्ष्मी स्तोत्रम्
Dhanda Laxmi Stotram: धन प्राप्ति के लिए धन लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ सभी स्तोत्रों में महत्वपूर्ण है। इसके पाठ से भक्तों को धन मिलता है, उसका कल्याण होता है और रक्षा होती हैं।
kaise padhen dhan laxmi stotra: धन लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ शिव मंदिर, केले के पेड़, विल्व वृक्ष या किसी देवी के मंदिर में ब्रह्मचर्य का पालन करते प्रतिदिन 100 बार करना चाहिए। इससे लक्ष्मी की प्राप्त होती है। 1100 पाठों के बाद फिर पढ़ना शुरू करें। इस स्तोत्र को स्वयं धनदा लक्ष्मी कामधेनु स्वरूप हैं, उन्होंने ही लोगों के लिए इसे बताया है।
मां धन लक्ष्मी ने स्वयं कहा है कि पूरे विश्वास के साथ इसका पाठ करने या कराने से शीघ्र ही धन का लाभ होता है। ऐसे भक्तों को करोड़ों की सम्पत्ति प्राप्त होती है। धन लक्ष्मी स्तुति के नियमित पाठ से धन लाभ, दरिद्रता का नाश और सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। आइये पढ़ें धनदा लक्ष्मी स्तोत्रम् …
॥ धनदा उवाच ॥
देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।
कृपया पार्वती प्राह शंकरं करुणाकरम्॥1॥
ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।
दरिद्र दलनोपायमंजसैव धनप्रदम्॥2॥
पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह महेश्वरः।
उचितं जगदम्बासि तव भूतानुकम्पया॥3॥
स सीतं सानुजं रामं सांजनेयं सहानुगम्।
प्रणम्य परमानन्दं वक्ष्येऽहं स्तोत्रमुत्तमम्॥4॥
धनदं श्रद्धानानां सद्यः सुलभकारकम्।
योगक्षेमकरं सत्यं सत्यमेव वचो मम॥5॥
पठंतः पाठयंतोऽपि ब्रह्मणैरास्तिकोत्तमैः।
धनलाभो भवेदाशु नाशमेति दरिद्रता॥6॥
भूभवांशभवां भूत्यै भक्तिकल्पलतां शुभाम्।
प्रार्थयत्तां यथाकामं कामधेनुस्वरूपिणीम्॥7॥
धनदे धनदे देवि दानशीले दयाकरे।
त्वं प्रसीद महेशानि! यदर्थं प्रार्थयाम्यहम्॥8॥
धराऽमरप्रिये पुण्ये धन्ये धनदपूजिते।
सुधनं र्धामिके देहि यजमानाय सत्वरम्॥9॥
रम्ये रुद्रप्रिये रूपे रामरूपे रतिप्रिये।
शिखीसखमनोमूर्त्ते प्रसीद प्रणते मयि॥10॥
आरक्त-चरणाम्भोजे सिद्धि-सर्वार्थदायिके।
दिव्याम्बरधरे दिव्ये दिव्यमाल्यानुशोभिते॥11॥
समस्तगुणसम्पन्ने सर्वलक्षणलक्षिते।
शरच्चन्द्रमुखे नीले नील नीरज लोचने॥12॥
चंचरीक चमू चारु श्रीहार कुटिलालके।
मत्ते भगवती मातः कलकण्ठरवामृते॥13॥
हासाऽवलोकनैर्दिव्यैर्भक्तचिन्तापहारिके।
रूप लावण्य तारूण्य कारूण्य गुणभाजने॥14॥
क्वणत्कंकणमंजीरे लसल्लीलाकराम्बुजे।
रुद्रप्रकाशिते तत्त्वे धर्माधरे धरालये॥15॥
प्रयच्छ यजमानाय धनं धर्मेकसाधनम्।
मातस्त्वं मेऽविलम्बेन दिशस्व जगदम्बिके॥16॥
कृपया करुरागारे प्रार्थितं कुरु मे शुभे।
वसुधे वसुधारूपे वसु वासव वन्दिते॥17॥
धनदे यजमानाय वरदे वरदा भव।
ब्रह्मण्यैर्ब्राह्मणैः पूज्ये पार्वतीशिवशंकरे॥18॥
स्तोत्रं दरिद्रताव्याधिशमनं सुधनप्रदम्।
श्रीकरे शंकरे श्रीदे प्रसीद मयिकिंकरे॥19॥
पार्वतीशप्रसादेन सुरेश किंकरेरितम्।
श्रद्धया ये पठिष्यन्ति पाठयिष्यन्ति भक्तितः॥20॥
सहस्रमयुतं लक्षं धनलाभो भवेद् ध्रुवम्
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धन-धान्यादिसम्पदः॥21॥
॥ इति श्री धनलक्ष्मी स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
जो व्यक्ति बार-बार अपने काम में असफल हो रहा है और लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पा रहा है, उन्हें धन लक्ष्मी स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए।
Updated on:
17 Oct 2024 12:31 pm
Published on:
17 Oct 2024 12:30 pm
बड़ी खबरें
View Allधर्म-कर्म
धर्म/ज्योतिष
ट्रेंडिंग
