
Hindu Dharm Sanskar
Hindu Dharm Sanskar: संस्कारों का हिंदू धर्म में बहुत महत्व होता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक कई तरह के संस्कार के होंते हैं। हिंदू धर्म में इन 16 संस्कारों को षोडश संस्कार भी कहा जाता है। आइए जानते हैं इन 16 संस्कारों के बारे में ..
गौतम शास्त्र में 40 संस्कारों को बताया गया है। लेकिन कुछ जगह 48 संस्कार भी बताए गए हैं। इसके साथ ही महर्षि अंगिरा ने 25 संस्कारों को बताया है। लेकिन वर्तमान में प्रमुख 16 संस्कार प्रचलित हैं। संस्कारों से हमारा जीवन बहुत प्रभावित होता है। संस्कार के लिए किए जाने वाले कार्यक्रमों में जो पूजा, यज्ञ, मंत्रोच्चारण आदि होता है, उसका वैज्ञानिक महत्व भी होता है तो आइए जन्म से लेकर मरण तक इन संस्कारों के बारे में..
यह संस्कार विवाह के बाद संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपत्ति के लिए पहला संस्कार है। इसका उद्देश्य धार्मिक भावना के साथ स्वस्थ और संस्कारी संतान को जन्म देने की प्रार्थना करना है।
गर्भवती स्त्री के गर्भस्थ शिशु के स्वस्थ और सुरक्षा की कामना के लिए किया जाता है। आमतौर पर गर्भधारण के तीसरे महीने में किया जाने वाला यह संस्कार शिशु के स्वास्थ्य और उसकी बुद्धि की कामना करता है।
गर्भवती स्त्री के मनोबल को बढ़ाने और गर्भ में पल रहे बच्चे के समुचित विकास के लिए किया जाता है। इसमें गर्भवती स्त्री के बालों में विभाजन कर 'सीमंत' पूजा की जाती है।
शिशु के जन्म के तुरंत बाद किया जाने वाला संस्कार है, जिसमें माता और बच्चे के स्वास्थ्य की कामना की जाती है। इसे शिशु के जीवन की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।
यह संस्कार बच्चे के जन्म के 11वें या 12वें दिन किया जाता है, जब बच्चे को उसका नाम दिया जाता है। यह नाम न केवल पहचान का हिस्सा होता है, बल्कि यह ज्योतिषीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
शिशु को पहली बार घर से बाहर लाने का संस्कार है। इसे आमतौर पर चार महीने के बाद किया जाता है, जब बच्चे को सूर्य और चंद्रमा के दर्शन कराए जाते हैं।
बच्चे को पहली बार अन्न खिलाने का संस्कार है, जिसे 6 महीने की उम्र में किया जाता है। यह बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।
शिशु की उम्र के पहले वर्ष के अंत में या तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष के पूर्ण होने पर बच्चे के बाल उतारे जाते हैं। इस क्रिया को मुंडन संस्कार कहा जाता है।
बच्चे के कानों में छेद किया जाता है। यह संस्कार शारीरिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।
यह संस्कार विशेष रूप से ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ग के लिए होता है। इसे यज्ञोपवीत संस्कार भी कहते हैं और यह बच्चे को शिक्षा और विद्या के मार्ग पर ले जाने का प्रतीक है।
इस संस्कार में बच्चे को वेदों की शिक्षा दी जाती है और उसे एक नया पाठ शुरू करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है।
यह किशोरावस्था में किया जाने वाला संस्कार है। इसे मुण्डन या पहला दाढ़ी मुंडवाने का संस्कार भी कहा जाता है।
गुरुकुल से शिक्षा पूर्ण करने पर किया जाने वाला यह संस्कार व्यक्ति के सामाजिक जीवन में प्रवेश को दर्शाता है।
व्यक्ति के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार, जो परिवार और समाज में व्यक्ति की भूमिका को तय करता है। यह जीवन के नए चरण की शुरुआत का प्रतीक है।
इसमें व्यक्ति गृहस्थ जीवन से मुक्त होकर सामाजिक और आध्यात्मिक सेवा की ओर अग्रसर होता है।
मृत्यु के बाद किया जाने वाला संस्कार आखिरी संस्कार है। इस संस्कार को व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके परिजनों द्वारा किया जाता है।
डिस्क्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारियां पूर्णतया सत्य हैं या सटीक हैं, इसका www.patrika.com दावा नहीं करता है। इन्हें अपनाने या इसको लेकर किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले इस क्षेत्र के किसी विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।
Updated on:
20 Nov 2024 11:20 am
Published on:
19 Nov 2024 07:52 pm
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