11 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

हनुमान जी बंदर नहीं थे! ऐसा अद्भुत रहस्य जिसे जानकर हैरान हो जाएंगे आप

क्या वाकई में हनुमान जी बंदर थे?

3 min read
Google source verification

image

Shyam Kishor

May 12, 2020

हनुमान जी बंदर नहीं थे! ऐसा अद्भुत रहस्य जिसे जानकर हैरान हो जाएंगे आप

हनुमान जी बंदर नहीं थे! ऐसा अद्भुत रहस्य जिसे जानकर हैरान हो जाएंगे आप

भगवान राम जी एवं उनके परम भक्त महाबलशाली हनुमान जी के बारे में पूर्ण जानकारी वाल्मीकि रामायण एवं तुलसीकृत रामचरित्रमानस में ही मिल सकती है। वाल्मीकि रामायण में तो भगवान राम के अलावा सबसे अधिक सबसे अधिक गुणी और बलवान श्री हनुमान जी को ही बताया गया है। जिन्होंने बड़े-बड़े कार्यों को बहुत ही सरलता से पलभर में समपन्न किया है। शास्त्रों के अनुसार जानें क्या हनुमान जी वास्तव में बंदर थे या नहीं?

मरते दम तक नहीं होगी पैसों की कमी, हर रोज करें ये काम

जब भी हम हनुमान जी का चित्र देखते हैं तो उसमें वें एक बन्दर के रूप में दिखाई देते हैं, जिनकी एक पूंछ भी है। उनके चित्र को देखकर हर किसी के मन में अनेक प्रश्न भी उठते हैं जैसे- क्या हनुमान जी वास्तव में बन्दर थे? क्या वाकई में उनके पूंछ लगी हुई थी? इत्यादि। इसका उत्तर वाल्मीकि रामायण में स्पष्ट रूप से मिलता है कि आखिर महाबलशाली परमवीर हनुमान जी आखिर हैं कौन।

वानर कोई जाति विशेष नहीं होती

- रामायण में कई स्थानों में हनुमान जी को “वानर” कहकर भी संबोधित किया है- सामान्य रूप से हम “वानर” शब्द से यह अभिप्रेत कर लेते है कि वानर का अर्थ होता है "बन्दर" परन्तु अगर इस शब्द का विश्लेषण करे तो वानर शब्द का अर्थ होता है वन में उत्पन्न होने वाले अन्न को ग्रहण करने वाला। जैसे पर्वत अर्थात गिरि में रहने वाले और वहां का अन्न ग्रहण करने वाले को गिरिजन कहते है। उसी प्रकार वन में रहने वाले को वानर कहते हैं। वानर शब्द से किसी योनि विशेष, जाति , प्रजाति अथवा उपजाति का बोध नहीं होता।

आज भी जीवित है महाबली हनुमान, प्रमाण जानकर हो जाएंगे हैरान

- हनुमान जी के अलावा सुग्रीव, बालि, अंगद आदि के चित्र में भी हमें उनकी पूंछ लगी हुई दिखाई देती है। परन्तु उनकी स्त्रियों के कोई पूंछ नहीं दिखाई देती। नर-मादा का ऐसा भेद संसार में किसी भी वर्ग में देखने को नहीं मिलता। इसलिए यह स्पष्ट होता है की हनुमान जी, सुग्रीव आदि के पूंछ होना केवल एक चित्रकार की कल्पना मात्र हो सकती है।

- किष्किन्धा कांड में एक स्थान पर वर्णन आता है कि जब श्री रामचंद्र जी महाराज की पहली बार ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान से भेंट हुई तब दोनों में परस्पर बातचीत के पश्चात रामचंद्र जी लक्ष्मण से बोले-

न अन् ऋग्वेद विनीतस्य न अ यजुर्वेद धारिणः।

न अ-साम वेद विदुषः शक्यम् एवम् विभाषितुम्।।

कर लें इनमें से किसी भी एक तेल से शनिदेव का अभिषेक, बाधाओं से मिलगी मुक्ति

अर्थात- ऋग्वेद के अध्ययन से अनभिज्ञ और यजुर्वेद का जिसको बोध नहीं है तथा जिसने सामवेद का अध्ययन नहीं किया, वह व्यक्ति इस प्रकार परिष्कृत बातें नहीं कर सकता। निश्चय ही इन्होनें सम्पूर्ण व्याकरण का अनेक बार अभ्यास किया है, क्यूंकि इतने समय तक बोलने में इन्होनें किसी भी अशुद्ध शब्द का उच्चारण नहीं किया है। संस्कार संपन्न, शास्त्रीय पद्यति से उच्चारण की हुई इनकी वाणी ह्रदय को हर्षित कर देती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि हनुमान जी बंदर नहीं थे।

- सुंदर कांड में भी एक स्थान पर वर्णन आता है कि जब हनुमान जी अशोक वाटिका में राक्षसियों के बीच में बैठी हुई सीता को अपना परिचय देने से पहले सोचते है- यदि द्विजाति (ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य) के समान परिमार्जित संस्कृत भाषा का प्रयोग करूंगा तो सीता मुझे रावण समझकर भय से संत्रस्त हो जाएगी। मेरे इस वनवासी रूप को देखकर तथा नागरिक संस्कृत को सुनकर पहले ही राक्षसों से डरी हुई यह सीता और भयभीत हो जाएगी। मुझको कामरूपी रावण समझकर भयातुर विशालाक्षी सीता कोलाहल आरंभ कर देगी। इसलिए मैं सामान्य नागरिक के समान परिमार्जित भाषा का प्रयोग करूंगा। इस प्रमाणों से यह सिद्ध होता है की हनुमान जी चारों वेद ,व्याकरण और संस्कृत सहित अनेक भाषायों के ज्ञाता भी थे।

- वाल्मीकि रामायण में हनुमान जी के अलावा बालि पुत्र अंगद को भी अष्टांग बुद्धि से सम्पन्न, चार प्रकार के बल से युक्त और राजनीति के चौदह गुणों से युक्त बताया गया है। इससे सिद्ध होता है की कोई इतने गुणों से सुशोभित बन्दर कैसे से हो सकता है।

***********