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Holika Dahan Tradition: नई दुल्हनें क्यों नहीं देखतीं जलती होली, जानिए रहस्य और होलिका दहन की महत्वपूर्ण बातें

Holika Dahan Tradition: होलाष्टक से शुरू हो रहा होली का त्योहार देश भर में उत्साह से मनाया जाता है। लोग फागुन पूर्णिमा के दिन होली जलाते हैं और उसमें अक्षत (चावल और सीजन का पहला अन्न डालते हैं)। लेकिन आप जानकर हैरान होंगे कि होली जलाए जाने से पहले महिलाएं इसकी पूजा करती हैं, लेकिन नई दुल्हनों को दूर रखा जाता है। आइये जानते हैं होलिका दहन स्थल से नई दुल्हन के दूर रहने का रहस्य और मान्यता

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भारत

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Pravin Pandey

Mar 24, 2024

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नई दुल्हनें क्यों नहीं देखतीं जलती होली, जानिए रहस्य


इस साल होलिका दहन 2025 पर भद्रा का साया रहेगा। भद्रा में कोई शुभ और मांगलिक कार्य करने से बचते हैं। हालांकि भद्रा के बाद 13 मार्च की रात में होलिका दहन किया जाएगा। इसके अगले दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा 14 मार्च 2025 को रंग खेला जाएगा।

कैसे होता है होलिका दहन का निर्धारण


आचार्य अंजना गुप्ता के अनुसार किसी कारण भद्रा मध्य रात्रि तक हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन करने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार भद्रा मुख में होली दहन से न केवल दहन करने वाले का अहित होता है बल्कि यह पूरे गांव, शहर और देशवासियों के लिए भी कष्ट लेकर आता है। आचार्य गुप्ता के अनुसार किसी कारण यह स्थिति भी नहीं बन रही है तो प्रदोष काल के बाद होलिका दहन करना चाहिए। वहीं यदि भद्रा पूंछ प्रदोष से पहले और मध्य रात्रि के बाद हो तो उसे होलिका दहन के लिए नहीं लिया जा सकता क्योंकि होलिका दहन का मुहूर्त सूर्यास्त और मध्य रात्रि के बीच ही निर्धारित किया जाता है।

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होलिका दहन की परंपरा

ज्योतिषाचार्य अंजना गुप्ता के अनुसार होली दहन आर्य परंपरा में सामूहिक यज्ञ है। इसीलिए पूजा पाठ के बाद होली जलाने के बाद इसमें अक्षत, सीजन का अन्न डालते हैं और परिक्रमा करते हैं।

मान्यता है कि इससे वातावरण शुद्ध होता है, क्योंकि मौसम में बदलाव (हेमंत, बसंत ऋतु का संधिकाल) के कारण रोग का कारण बनने वाले जो जीवाणु वातावरण में पैदा हो जाते हैं, वो होली की आग से नष्ट हो जाते हैं। होली नए अन्न वाले समय का भी प्रतीक है। इसलिए होलिका दहन रूपी यज्ञ में यज्ञ परंपरा का पालन करते हुए शुद्ध सामग्री, तिल, मुंग, जड़ी बूटी आदि जरूर डालनी चाहिए।

पितरों को अर्पित किया जाता है अन्न (Holika Dahan Ka Mahatv)

इसके अलावा भारत में खेती से तैयार हुए अन्न को सबसे पहले पितरों को अर्पित करने की परंपरा है। इस मौसम में चना, मटर, अरहर, गेहूं और जौ आदि अन्न पक कर घरों में आते हैं। इसको होलिका जलाकर अग्नि के माध्यम से सूक्ष्म रूप में पितरों को भेजा जाता है।

इसलिए नव विवाहिता नहीं देखती होलिका दहन (Holika Dahan Tradition Bride)

भारत के कई हिस्सों में नववधुओं को होलिका दहन की जगह से दूर रखा जाता है। यहां विवाह के बाद नववधू को होली के पहले त्योहार पर सास के साथ रहना अपशकुन माना जाता है। इसके पीछे मान्यता यह है कि होलिका (दहन) मृत संवत्सर का प्रतीक है। अतः नवविवाहिता को मृत को जलते हुए देखना अशुभ है।

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होलिका की ऊंचाई कितनी होनी चाहिए (Holika Hights)

धार्मिक ग्रंथों में होलिका की ऊंचाई एक पुरुष की ऊंचाई जितनी होनी चाहिए। मान्यता है कि इससे वायुमंडल शुद्ध बनता है । इस तरह होलिका की ऊंचाई आम तौर पर पांच से छह फीट कम से कम होनी चाहिए। इससे तेज तरंगें और बड़े पैमाने पर निकली ऊर्जा वातावरण शुद्ध करती है। साथ ही मौसम में बदलाव के कारण पनपे हानिकारण जीवाणुओं का भी नाश करती है।

होलिका दहन का नियम (Holika Dahan Niyam)


1.होलिका दहन के लिए लकड़ी जुटाना और स्त्रियों द्वारा होलिका पूजन

2. होलिका दहन से पूर्व उसका पूजन, अर्घ्य
3. होलिका दहन और प्रदक्षिणा
4. राक्षसी के नाश के लिए शोर मचाना (मान्यता है कि इससे बीमारियां दूर होते हैं, छोटे बच्चे स्वस्थ होते हैं)

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5. होलिका की अग्नि में नया अन्न पकाना
6. रात में गीत गाना, नृत्य करना
7. प्रतिपदा के दिन धूलि वंदन और धुलेंडी मनाना (पलाश के फूलों में रोगाणु मारने का गुण होता है और इसके रंग एक दूसरे को लगाने से चर्म रोग दूर होता है)
8. बच्चों द्वारा काष्ठ की तलवार से आपस में खेलना
9. काम पूजा और चंदन मिश्रित आम का बौर ग्रहण करना