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इस नगरी में खूब होती थी कुबेर की पूजा,सदियों पुुरानी हैं हमारी ये परंपराएं

- मप्र की सबसे बड़ी और ईसा पूर्व की कुबेर प्रतिमा यहां हैं

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Deepesh Tiwari

Oct 21, 2022

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धनतेरस पर महालक्ष्मी के साथ ही धन के देवता यक्षराज कुबेर की पूजा की भी परंपरा है। मप्र की प्राचीन नगरी विदिशा में कुबेर की पूजा की सदियों पुुरानी परंपरा है। पहले कुबेर के मंदिर नहीं होते थे, बल्कि चबूतरों पर विशाल प्रतिमाएं स्थापित की जाती थीं। भारत की सबसे बड़ी कुबेर प्रतिमाओं में से एक 14 फीट ऊंची और ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी की कुबेर प्रतिमा सहित कई कुबेर प्रतिमाएं अब भी विदिशा में हैं।

विदिशा एक प्राचीन नगरी है और यह अतीत का समृद्ध और वैभवशाली नगर हुआ करता था। व्यापारियों और साहूकारों की इस नगरी में कुबेर की पूजा भी खूब होती थी। करीब 70 वर्ष पहले प्राचीन बैसनगर के पास से बहने वाली बैस नदी में विशाल कुबेर प्रतिमा मिली थी।

यह प्रतिमा नदी में उल्टी पड़ी थी, जिस पर लोग कपड़े धोया करते थे। जब पानी कम हुआ तो प्रतिमा के पैर दिखाई दिए। बड़ी मशक्कत के बाद इस प्रतिमा को सीधा किया गया तो इसकी पहचान ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी की कुबेर प्रतिमा के रूप में हुई।

बाद में इसे जिला संग्रहालय में मुख्य द्वार पर स्थापित कर दिया गया। अब इसकी प्रतिकृतियां अतिथियों को स्मृति चिह्न के रूप में भेंट की जाती हैं। ऐसी ही प्रतिमा भारतीय रिजर्व बैंक के द्वार पर लगी बताई जाती है।

पुरातत्व विभाग के अधीन है प्रतिमा
बैस नदी से प्राप्त यह धन कुबेर की प्रतिमा 14 फीट ऊंची है। प्रतिमा की निर्माण शैली से ही इसकी प्राचीनता समझ आती है। पगड़ी, कांधे पर उत्तरीय वस्त्र, कमर में धोती, कानों में कुंडल, गले में मोटा कंठा और एक हाथ में धन की थैली।

पेट और आंखें उभरी हु़ई सीं। यह प्रतिमा अब पुरातत्व के अधीन है, फिर भी लोग धनतेरस पर प्रतिमा के दर्शन और बाहर से ही पूजा करने पहुंचते हैं। यहां दीप जलाते हैं और पुष्प, प्रसादी अर्पित करते हैं।

वहीं यहां हैं राजसी ठाठ वाले
जिले के बड़ोह ग्राम से भी सातवीं शताब्दी की कुबेर की अनूठी प्रतिमा प्राप्त हुई है। यह प्रतिमा भी अब जिला संग्रहालय में है। इस प्रतिमा में कुबेर महाराज पूरी राजसी ठसक के साथ बैठे हुए हैं। सिर के पीछे आभा मंडल है। भारी मुकुट सिर पर हैं और गहनों से प्रतिमा अलंकृत है। इसमें कुबेर महाराज सिंहासन पर बैठे हुए हैं, एक हाथ में धन की थैली है और वे अपना एक पैर धन के कलश के ऊपर रखे हुए हैं। यक्ष-यक्षिणी उन पर चंवर हिला रहे हैं।

धन-ऐश्वर्य के हैं प्रतीक
पुरातत्ववेत्ता एमके माहेश्वरी कहते हैं कि कुबेर को पृथ्वी के मान्य दस दिग्पालों में मान्य किया जाता है। ये धन और ऐश्वर्य के प्रतिनिधि देवता के रूप में पूजे जाते हैं। लोक मान्यता के अनुसार कुबेर अपने भक्तों को शक्ति, समृद्धि और कल्याण प्रदान करते हैं। इन्हें यक्षराज और धन का स्वामी होने के कारण धनपति अथवा देवताओं के खजांची भी कहा जाता है। अथर्ववेद में कुबेर को यक्षराज बताया गया है।