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Mahavidya Kali: मां काली को कितना जानते हैं आप, जानें महाविद्या काली की कथा, मंत्र, शिक्षाएं

Mahavidya Kali: महाविद्या काली मां पार्वती के दस महाविद्या में से पहली महाविद्या हैं। मान्यता है कि यह स्वरूप सभी दस स्वरूप में सबसे उच्च हैं। यह स्वरूप जल्द प्रसन्न हो जाता है और जल्द अप्रसन्न होकर दुष्टों का नाश कर देता है। गुप्त नवरात्रि के पहले दिन इसकी पूजा की जाती है। आइये जानते हैं कितना जानते हैं मां काली को, महाविद्या काली की कथा क्या है, मंत्र और शिक्षाएं क्या हैं ...

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Mahavidya Kali Ki Katha

Mahavidya Kali: मां काली को कितना जानते हैं आप, जानें महाविद्या काली की कथा, मंत्र, शिक्षाएं

महाविद्या काली (Mahavidya Kali)

महाविद्या काली को माता सती के सबसे प्रभावशाली रूपों में से एक माना जाता है। जब भी सृष्टि की जरूरत होती है मां इस स्वरूप को धारण करती हैं। आइये जानते हैं महाविद्या काली की कथा…

कथा के अनुसार ब्रह्माजी के मानस पुत्र दक्ष प्रजापति शिवजी से द्वेष रखते थे। लेकिन आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री स्वरूप में जन्म लिया था। हालांकि इस तथ्य को दक्ष भूल गए थे। इधर, उनकी पुत्री सती ने जब शिवजी से विवाह का फैसला किया तो दक्ष प्रजापति राजी नहीं थे, लेकिन बाकी देवताओं और पिता ब्रह्माजी के समझाने पर विवाह तो कर दिया। लेकिन वो शिवजी को नीचा दिखाने की योजना बनाते रहते थी। इसीलिए उन्होंने अपने यहां एक यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन शिवजी को नहीं बुलाया।


यज्ञ से पहले जब माता सती ने आकाश मार्ग से सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों को उस ओर जाते देखा तो अपने पति से इसका कारण पूछा। भगवान शिव ने माता सती को सब बातें बताईं और यह भी बताया कि उनको निमंत्रण नहीं मिला । इस पर माता सती ने भगवान शिव से कहा कि एक पुत्री को अपने पिता के यज्ञ में जाने के लिए निमंत्रण की आवश्यकता नहीं होती है।


माता सती अकेले ही यज्ञ में जाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने शिवजी से अनुमति मांगी लेकिन उन्होंने मना कर दिया। माता सती बार-बार आग्रह करती रहीं पर शिवजी भी नहीं मान रहे थे तो माता सती को क्रोध आ गया और उन्होंने शिव को अपनी महत्ता दिखाने का निर्णय लिया।

तब माता सती ने भगवान शिव को अपने 10 रूपों के दर्शन दिए, जिनमें से प्रथम मां काली थीं। मातारानी के यही 10 रूप बाद में दस महाविद्या कहलाईं। अन्य नौ रूपों में क्रमशः तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला आती हैं। इसके अलावा कुछ लोग माता सती के दस गुणों को दस महाविद्या कहते हैं।

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मां काली महाविद्या का स्वरूप

मां काली सती की पहली महाविद्या हैं। इनका रूप भीषण था और सभी गुणों में उच्च था, इसलिए इसे प्रथम महाविद्या कहा जाता है। यह स्वरूप दुष्टों का संहार करने वाली थी। इनका वर्ण एकदम काला था और केश खुले हुए थे। इनकी भगवान शिव की भांति तीन आंखें थीं। मां काली के चार हाथ थे जिसमें से एक हाथ में कटा हुआ राक्षस का सिर, दूसरे में खड्ग (मुड़ी हुई तलवार), तीसरा हाथ वरदान मुद्रा में और चौथा हाथ अभय मुद्रा में था। साथ ही गले में राक्षसों के कटे हुए सिर की माला बंधी हुई थी। इतना ही नहीं, उन्होंने राक्षसों के नरमुंडों की एक माला अपनी पीठ पर कमरबंध के रूप में बांध रखी थी। उनकी जीभ अत्यधिक लंबी और लाल थी जिसमें से रक्त टपक रहा था।


यह स्वरूप भगवान शिव के समान ही है, ये भी भगवान शिव के समान जल्दी प्रसन्न और क्रोधित हो जाती है। भगवान शिव के क्रोधित अवतार को रूद्र अवतार कहा जाता है और मां काली भी क्रुद्ध अवतार हैं। मां काली का स्वभाव अपने भक्तों पर जल्दी प्रसन्न होने वाला और दुष्टों पर जल्दी क्रोधित होने वाला है।

महाविद्या काली का महत्वः मां काली के इस रूप से कई शिक्षाएं मिलती हैं, आइये जानते हैं महाविद्या काली का क्या है संकेत …

  1. काली महाविद्या को समय और परिवर्तन की देवी माना जाता है, मान्यता है कि ये समय से परे हैं। उनकी तीन आंखें भूतकाल, भविष्यकाल और वर्तमानकाल को दिखाती हैं। ब्रह्मांड में समय हमेशा गतिमान है, जिसका प्रतिनिधित्व मां का यह रूप करता है।
  2. मां का यह भीषण रूप दुष्टों, पापियों और अधर्मियों को अत्यधिक डराने वाला है। इस रूप से मां का तात्पर्य यह है कि जब अधर्म बहुत बढ़ जाएगा तो मां चंडी का रूप धारण कर उनका वध करने में सक्षम होंगी।
  3. मां का यह रूप अपने भक्तों को अभय प्रदान करता है। मां का एक हाथ अभय मुद्रा में है, वह अपने भक्तों के मन से भय को भगाने और आत्म-विश्वास को बढ़ाने का परिसूचक है।
  4. मां का एक हाथ आशीर्वाद मुद्रा में है। इससे वह भक्तों के मन में यह आशा प्रकट करती है कि उनका यह भीषण रूप केवल दुष्टों के लिए ऐसा है जबकि भक्तों के ऊपर उनका आशीर्वाद हमेशा बना रहेगा।

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महाविद्या काली मंत्र (Kali Mahavidya Mantra)

ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिका।
क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥

कितना जानते हैं मां काली के बारे में

मां काली का दिन: सोमवार
मां काली की दिशा: पूर्व
मां काली की पूजा की विशेष तिथि: अमावस्या
मां काली का समय: रात्रि
मां काली से संबंधित रुद्रावतार: महाकालेश्वर
मां काली का मुख्य मंदिर: कलकत्ता, पश्चिम बंगाल
मां काली से संबंधित अन्य मंदिर: उज्जैन और गुजरात