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मुरादाबाद शहर के प्राचीन काली मंदिर की नवरात्र पर अलग ही महत्&zwj;ता बढ़ जाती है। यहां सिर्फ शहर से ही नहीं बल्कि आसपास और दूरदराज से लोग दर्शन करने आते हैं। मान्यताओं के मुताबिक, यहां जिसने भी मन्नत मांगी, मां उसकी झोली जरूर भरती हैं, इसलिए काली मंदिर में इन दिनों में खूब भीड़ उमड़ती है। <strong>कहां पर है</strong> शहर के उत्तर-पूर्व में रामगंगा नदी के किनारे लालबाग में मां काली का प्राचीन मंदिर है। मान्यता है कि यहां देवी की प्रतिमा जमीन से खुद प्रकट हुई थी। तब से इसे सिद्ध पीठ माना जाता है। इस मंदिर का रखरखाव जूना अखाड़ा करता है। उसी अखाड़े के महंत यहां पूजा-अर्चना भी करते हैं। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर मंदिर के रखरखाव के लिए कमेटी भी बनी हुई है। इस मंदिर का निर्माण कब हुआ, इसके बारे में किसी के पास स्&zwj;पष्&zwj;ट जानकारी नहीं है। हालांकि, कुछ लोगों का कहना है क&zwj;ि ये मंदिर अंग्रेजों के जमाने के पहले का है। <strong>खासियत</strong> इस मंदिर की खासियत यह है कि यह नदी के किनारे स्थित है और इसके पास श्&zwj;मसान घाट भी है। देश में शायद ही दुर्गा मां का ऐसा कोई सिद्धपीठ मंदिर हो, जो नदी के किनारे हो और पास ही में श्&zwj;मसान घाट हो। <strong>मान्&zwj;यता</strong> स्&zwj;थानीय निवासियों के अनुसार मंदिर में जिसने भी सच्&zwj;चे मन से मन्नत मांगी है, वो पूरी हुई है। नवरात्र में यहां दीपक जलाने से खूब कृपा बरसती है। <strong>किवंदती </strong> बताया जाता है क&zwj;ि जब भी कभी रामगंगा नदी में बाढ़ आई तो पानी काली मंदिर की सीढ़ियों से आगे नहीं आ पाया इसलिए लोग इस मंदिर को और भी अधिक पूजनीय मानते हैं। लोगों के मुताबिक, जब तक काली मंदिर में विराजमान देवी का आशीर्वाद है, तब तक शहर को कोई खतरा नहीं है। <strong>कैसे पहुंचें</strong> दिल्&zwj;ली से मुरादाबाद की दूरी करीब 150 किमी है। अगर आपको काली मंदिर जाना है तो मुरादाबाद तक ट्रेन सबसे अच्&zwj;छा साधन है। इस रूट पर काफी ट्रेनें आपको मिल जाएंगी। रेलवे स्टेशन या रोडवेज बस स्टैंड से रिक्शे या टैक्&zwj;सी से आपको लालबाग होते हुए मंदिर जाना पड़ेगा। दोनों ही जगह से मंदिर की दूरी करीब 8 किलोमीटर है। चूंकि शहर के घने इलाके से होकर इसका रास्ता जाता है तो आपको दुपहिया या फिर रिक्शा ही बेहतर रहेगा।





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