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मेरठ में सदर बाजार में सिद्धपीठ मां काली मंदिर में वेस्ट यूपी से ही नहीं बल्कि आसपास के राज्यों से भी लोग यहां नवरात्र में आते हैं आैर मां का आशीर्वाद लेते हैं। मां इनकी सुनती है, यही वजह है कि यहां काफी श्रद्धालु मां के दर्शन करने हर वर्ष आते हैं। <strong>इतिहास </strong> सदर बाजार स्थित मां काली देवी का मंदिर 400 वर्ष से ज्यादा पुराना है। बताते हैं कि यहां पहले श्मशान घाट हुआ करता था। तब यहां मां काली की छोटी सी मूर्ति थी। लोग जब भी यहां आते, मूर्ति की भी पूजा-अर्चना करते थे। फिर यहां जो लोग आते, उनकी मनोकामना भी पूरी होने लगी तो धीरे-धीरे भीड़ बढ़ने लगी। कहा जाता है क&zwj;ि मां की पूजा-करने से अासुरी शक्तियां, टोने-टोटके दूर होने लगे, तो इस मूर्ति के प्रति लोगों में अटूट श्रद्धा बन गर्इ। करीब डेढ़ सौ साल पहले यहां इस मंदिर की स्थापना हुर्इ अब यह सिद्धपीठ के रूप में यह मंदिर जाना जाता है आैर अन्य राज्यों के लोग यहां मां का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं। <strong>किवदंती</strong> श्मशान के बीच मां काली की मूर्ति को लेकर तब कर्इ तरह की चर्चा थी। श्मशान में आने वाले लोग यहां स्थापित काली की मूर्ति को लेकर सामान्य रूप से ही हाथ जोड़कर चले जाते थे, लेकिन जब उनके काम तुरंत होने लगे तो वे बार-बार आने लगे आैर यहां पूजा-अर्चना करने लगे। एक बंगाली परिवार शहर में आया तो उन्होंने श्मशान में मां काली की इस मूर्ति को विलक्षण माना। उन्होंने यहां विधि-विधान से मां की पूजा करनी शुरू की। <strong>प्रसिद्धि</strong> पिछले 50 वर्षों में मां काली के दर्शन करने के लिए कर्इ गुना श्रद्धालुआें की संख्या बढ़ी है। वेस्ट यूपी में यह मां काली मंदिर की प्रसिद्धि एेसी है कि यहां नवरात्र के मौके पर मां के दर्शन करने जरूर आते हैं। एेसी मान्यता है कि जो भी यहां रात को होने वाली महाआरती में शामिल होता है, मां उसकी मनोकामना जरूर पूरी करती है। इसलिए महाआरती में यहां सबसे ज्यादा भीड़ होती है। <strong>मान्&zwj;यता </strong> प्रत्येक शनिवार को मां काली देवी को श्रद्धालु चुनरी, श्रंगार का सामान व नारियल चढ़ाते हैं आैर उनके सामने दीपक जलाते हैं। कोर्इ विशेष कामना हो तो यहां धागा भी बांधते हैं आैर पूजा-अर्चना के बाद रात को दस बजे ढोल-नगाड़ों के साथ होने वाली महाआरती में शामिल होते हैं। मान्&zwj;यता है क&zwj;ि उन पर मां काली की कृपा होती है। पढ़ार्इ, करियर व अन्य बिगड़े काम को बनाने में मां का आशीर्वाद मिलता है। <strong>विशेष</strong> छठे नवरात्र में मां काली की मूर्ति का रूप अन्य दिनों के मुकाबले बड़ा हो जाता है, जो नवमी तक रहता है। उसके बाद मां काली सामान्य हो जाती हैं। वैसे भी सामान्य दिनों में जो मां से सच्चे मन से मांगता है, देवी जरूर पूरी करती हैंं। साथ ही किसी युवक, युवती, महिला-पुरुष पर टोने-टोटके, बुरी आत्मा का साया, भूत-प्रेत का साया मां काली देवी के मंदिर में प्रवेश करते ही दूर हो जाते हैं। <strong>एेसे पहुंचें</strong> दिल्ली से मां काली देवी मंदिर की दूरी करीब 67 किलोमीटर है। भैंसाली रोडवेज बस अड्डे से रिक्शा या आॅटो से यहां पहुंचा जा सकता है।