scriptपं. श्रीराम शर्मा आचार्य जयंती विशेष : भगवान् की इच्छा वर्तमान समय में युग परिवर्तन की व्यवस्था बना रही है | Pt. Shriram Sharma Acharya Jayanti 20 september 2019 | Patrika News

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जयंती विशेष : भगवान् की इच्छा वर्तमान समय में युग परिवर्तन की व्यवस्था बना रही है

locationभोपालPublished: Sep 20, 2019 11:05:01 am

Submitted by:

Shyam

Pt. Shriram Sharma Acharya Jayanti : युग बदल रहा है- हम भी बदलें

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जयंती विशेष :  भगवान् की इच्छा युग परिवर्तन की व्यवस्था बना रही है

पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जयंती विशेष : भगवान् की इच्छा युग परिवर्तन की व्यवस्था बना रही है

गायत्री परिवार के संस्थापक युगऋषि आचार्य श्रीराम शर्मा जी की जन्म जयंती हर साल 20 सितंबर को मनाई जाती है। विचार क्रांति अभियान का शंखनाद, धरती पर स्वर्ग का अवतरण एवं मनुष्य मात्र में देवत्व के उदय की उदघोषणा करने वाले आचार्य श्रीराम शर्मा जी ने गायत्री महामंत्र एवं यज्ञ को जन-जन के लिए सर्व सुलभ करने के साथ अपने जीवन में लगभग 3200 सद्साहित्य जिसमें चारों वेदों का सरल भाष्य, उपनिषद सहित अनेक ग्रथों की रचना की जिसमें जीवन के समस्त प्रश्नों का उत्तर बहुत ही सरलता से समाहित है। आज उनकी जन्म जयंती पर प्रस्तुत लेख (वर्तमान समय के लिए) उनकी भविष्यवाणी उनके ही शब्दों में “युग बदल रहा है – हम भी बदलें” के कुछ अंश।

 

भगवान् की इच्छा युग परिवर्तन की व्यवस्था बना रही है। इसमें सहायक बनना ही वर्तमान युग में जीवित प्रबुद्ध आत्माओं के लिये सबसे बड़ी दूरदर्शिता है। अगले दिनों में पूंजी नामक वस्तु किसी व्यक्ति के पास नहीं रहने वाली है। धन एवं सम्पत्ति का स्वामित्व सरकार एवं समाज का होना सुनिश्चित है। हर व्यक्ति अपनी रोटी मेहनत करके कमायेगा और खायेगा। कोई चाहे तो इसे एक सुनिश्चित भविष्यवाणी की तरह नोट कर सकता है।

 

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विचारशील लोग

अगले दिनों इस तथ्य को अक्षरशः सत्य सिद्ध करेंगे। इसलिये वर्तमान युग के विचारशील लोगों से हमारा आग्रह पूर्वक निवेदन है कि वे पूंजी बढ़ाने, बेटे पोतों के लिये जायदादें इकट्ठी करने के गोरख-धंधे में न उलझें। राजा और जमींदारों को मिटते हमने अपनी आंखों देख लिया अब इन्हीं आंखों को व्यक्तिगत पूंजी को सार्वजनिक घोषित किया जाना देखने के लिए तैयार रहना चाहिए।

 

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आज की सबसे बड़ी बुद्धिमानी

भले ही लोग सफल नहीं हो पा रहे हैं पर सोच और कर यही रहे हैं कि वे किसी प्रकार अपनी वर्तमान सम्पत्ति को जितना अधिक बढ़ा सकें, दिखा सकें उसकी उधेड़ बुन में जुटे रहें। यह मार्ग निरर्थक है। आज की सबसे बड़ी बुद्धिमानी यह है कि किसी प्रकार गुजारे की बात सोची जाए। परिवार के भरण-पोषण भर के साधन जुटाये जायें और जो जमा पूंजी पास है उसे लोकोपयोगी कार्य में लगा दिया जाए।

 

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वर्तमान परिवार

जिनके पास नहीं है वे इस तरह की निरर्थक मूर्खता में अपनी शक्ति नष्ट न करें। जिनके पास गुजारे भर के लिए पैतृक साधन मौजूद हैं, जो उसी पूंजी के बल पर अपने वर्तमान परिवार को जीवित रख सकते हैं वे वैसी व्यवस्था बना कर निश्चित हो जायें और अपना मस्तिष्क तथा समय उस कार्य में लगायें, जिसमें संलग्न होना परमात्मा को सबसे अधिक प्रिय लग सकता है।

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