
सदियों से साल में एक बार आज भी धरती पर बरसता है अमृत, जाने दिन और तिथि
भारतीय संस्कृति व धर्म में श्रद्धा रखने वाले श्रद्धालुओं के लिए धार्मिक परम्पराएं बहुत महत्त्व रखती हैं ऐसी ही एक सदियों से चली आ रही परम्परा है कि, साल में एक बार आज भी धरती पर बरसता है अमृत, आश्विन माह में नवरात्र के बाद आने वाली पूर्णिमा यानी की शरद पूर्णिमा भी बहुत मह्त्त्व रखती हैं, ऐसी मान्यता हैं कि इस शरद पूर्णिमा को स्वर्ग लोक से धरती पर चंद्रमा के माध्यम से अमृत की बूंदे बरसती हैं । इस वर्ष 2018 में शरद पूर्णिमा का पर्व 23 अक्टूबर मंगलवार के दिन है। इस पूर्णिमा को खोजागिरी पूर्णिमा भी कहा जाता हैं । अगर इस दिन किसी विशेष कामना की पूर्ति के लिए अनुष्ठान करना बहुत लाभकारी माना गया है । इस दिन चांद के प्रकाश के माध्यम से जो अमृत बरसता हैं और उसे पान करन से अनेक असाध्य रोग दूर हो जाते हैं ।
इसलिए मनाई जाती हैं शरद पूर्णिमा
1- शरद पूर्णिमा से शरद ऋतु का आरम्भ हो जाता है ।
2- चन्द्रमा इस दिन अपनी पूरी सोलह कलाओं से युक्त होता है ।
3- शरद पूर्णिमा को चन्द्रमा से अमृत की वर्षा होती है, जिससे धन, प्रेम और स्वास्थ्य मिलता है ।
4- चंद्रमा की रोशनी के नीचे जब गाय के दुध की खीर बनाई जाती तो उस खीर में स्वर्ग से अमृत की बूंदों की सूक्ष्म वर्षा होती है, जिसे खाने से मनुष्य शरीर के अनेक रोग नष्ट हो जाते हैं ।
5- इस दिन विशेष रूप में माता महालक्ष्मी की पूजा करने का शास्त्रोंक्त विधान हैं ।
6- चंद्रमा की रोशनी में जब तक खीर पक रही होती है तब तक सफेद आसन पर बैठकर इस मंत्र- ऊँ श्रीं ऊँ और ऊँ ह्वीं ऊँ महालक्ष्मये नम: का 108 या 251 बार जप करना बहुत ही शुभकारी होता है ।
7- एक शोध के मुताबिक अगर इस दिन चांदी के बर्तन में खीर बनाना चाहिए । चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है, इससे विषाणु दूर रहते हैं, शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान की तरह है ।
8- रोगी को रात्रि जागरण और औषधि सेवन के बाद 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है ।
9- इस रात दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है ।
10- लंकाधिपति रावण भी शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था, इससे उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी ।
शरद पूर्णिमा व्रत
1- शरद पूर्णिमा के दिन सुबह में सबसे पहले अपने इष्ट देव का पूजन करना ही चाहिए ।
2- गाय के घी का दीपक जलाकर इन्द्र और श्री महालक्ष्मी जी का पूजन भी करनी चाहिए ।
3- इस दिन पूर्ण रूप से जल और फलों पर आधारित व्रत उपवास रखना या सात्विक आहार ग्रहण करने विधान है ।
4- रात में बिना चन्द्रमा के दर्शन किए और अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करना चाहिए ।
5- इस दिन काले रंग का प्रयोग भूलकर भी नहीं करना चाहिए । चमकदार सफेद रंग के वस्त्र धारण करना बेहतर होगा ।
6- इस दिन चांदनी रात में 10 बजे से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को आकाश से अनंत ऊर्जा प्राप्त होती है ।
Published on:
20 Oct 2018 01:42 pm
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