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Shattila Ekadashi 2022- षटतिला एकादशी व्रत 2022 में कब है? साथ ही जानें इसका पूजा मुहूर्त, महत्व और व्रत कथा

Shattila Ekadashi 2022- माघ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी

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Shattila Ekadashi 2022

Shattila Ekadashi in 2022

Shattila Ekadashi 2022 : हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत (त्रयोदशी तिथि) के महत्व के समान ही एकादशी को भी अत्यंत विशेष माना गया है। इनमें मुख्य अंतर केवल इतना है कि जहां त्रयोदशी तिथि यानि प्रदोष भगवान शंकर को समर्पित मानी गई है, वहीं एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है।

यह दोनों ही पर्व हर माह में दो बार आते हैं। ऐसे में माघ मास की पहली एकादशी षटतिला एकादशी (Shattila Ekadashi) है, जो माघ माह के कृष्ण पक्ष में आती है। हर एकादशी की भांति ये एकादशी भी जगत के पालनहार भगवान विष्णु (Lord Vishnu) को समर्पित होती है। इस एकादशी पर तिल के दान (Sesame Donation) का विशेष महत्व है। इस बार षटतिला एकादशी का व्रत शुक्रवार, 28 जनवरी को रखा जाएगा।

षटतिला एकादशी 2022 पूजा मुहूर्त (Shattila Ekadashi Puja Muhurat 2022)
षटतिला एकादशी 2022 पूजा मुहूर्त 28 जनवरी को सुबह 07 बजकर 11 मिनट से 9 बजकर 20 मिनट तक रहेगा। यानि ये शुभ मुहूर्त 2 घंटे 9 मिनट का होगा।

षटतिला एकादशी पूजा विधि (Shattila Ekadashi Puja vidhi)
1. ब्रह्म मुहूर्त मे स्नानादि नित्यकर्म के पश्चात भगवान विष्णु की पूजा करें और उन्हें पुष्प, धूप आदि अर्पित करने चाहिए।
2. इस दिन व्रत रखने के बाद रात के समय भगवान विष्णु की आराधना करने के अलावा रात्रि में जागरण और हवन करना शुभ माना जाता है।
3. इसके एकादशी के दिन के पश्चात द्वादशी को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि नित्यकर्म के पश्चात भगवान विष्णु को भोग लगाएं और पंडितों को भोजन कराने के बाद ही स्वयं अन्न ग्रहण करना चाहिए।

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मान्यता है कि इस व्रत को रखने मात्र से व्यक्ति को जो पुण्य प्राप्त होता है, वह हजारों सालों की तपस्या, स्वर्णदान और कन्यादान से ही प्राप्त होता है। व्यक्ति जीवन में सारे सुख इस पुण्य के प्रभाव से प्राप्त करता है, इसके बाद मोक्ष की ओर अग्रसर हो जाता है। यदि आप भी ये व्रत रखने का विचार कर रहे हैं, तो पूजा के दौरान षटतिला एकादशी की व्रत कथा जरूर पढ़ें।

ये है षटतिला एकादशी व्रत कथा : vrat katha
षटतिला एकादशी व्रत कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। वो श्रीनारायण भगवान की अनन्य भक्त थी और उनको समर्पित सारे व्रत रहती थी। हर रोज उनका पूजन किया करती थी। उस ब्राह्मणी ने एक बार पूरे माह का व्रत नारायण के लिए रखा। इस व्रत क कारण उसका शरीर तो बहुत दुर्बल हो गया, लेकिन उसका तन शुद्ध हो गया। यह देख भगवान विष्णु ने सोचा कि क्यों न इसका मन भी शुद्ध कर दिया जाए, ताकि इस भक्त को विष्णु लोक में निवास करने का सौभाग्य मिल सके।

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ये सोचकर भगवान विष्णु उसके पास दान मांगने गए, लेकिन उस ब्राह्मणी ने भगवान को दान में मिट्टी का एक पिंड दे दिया। इस पर श्रीहरि वही दान लेकर वहां से चले आए। कुछ समय बाद ब्राह्मणी की मृत्यु हो गई और वो सीधे विष्णुलोक पहुंच गई। विष्णुलोक में उसे रहने के लिए एक कुटिया मिली, लेकिन वो पूरी तरह से खाली थी। इसके बाद उस महिला के मन में खयाल आया कि मैंने जीवनभर प्रभु की सेवा की, लेकिन मुझे क्या मिला, खाली कुटिया? तब श्रीहरि ने कहा कि तुमने अपने मनुष्य जीवन में कभी भी अन्न या धन का दान नहीं किया। ये उसी का परिणाम है कि तुमने पूजा से विष्णु लोक तो प्राप्त कर लिया, लेकिन इससे अधिक कुछ और प्राप्त नहीं कर सकीं।

तब महिला ने भगवान से इस समस्या के समाधान पूछा। इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि जब देव कन्याएं तुमसे मिलने आएं, तो तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत करने की विधि पूछ लेना। और फिर इस व्रत को पूरी विधि विधान से करना। भगवान विष्णु के बताए अनुसार उस ब्राह्मणी ने देव कन्याओं से षटतिला एकादशी व्रत की विधि जानी और पूरी श्रद्धा और नियम के साथ इस व्रत को रखा।

इस व्रत को रखने के बाद उसकी कुटिया सभी आवश्यक वस्तुओं, धन-धान्य आदि से भर गई और साथ ही वह भी काफी रूपवती हो गई। इस प्रकार षटतिला एकादशी व्रत कथा लोगों को अन्न दान का महत्व बताती है। कहा जाता है कि इस दिन तिल का दान करने से सौभाग्य बढ़ता है और दरिद्रता भी दूर होती है।