
Skanda Shasti: स्कंद षष्ठी का नियम
Skanda Shasti: स्कंद षष्ठी व्रत पूरे देश में संतान की लंबी आयु, संतान प्राप्ति और संतान की उन्नति के लिए रखा जाता है। विशेष रूप से दक्षिण भारत में इस व्रत का बड़ा महत्व है।
खास तौर पर कार्तिक चंद्र मास की, जब 6 दिन का व्रत रखते हैं। लेकिन आप में से कई लोगों को नहीं मालूम होगा, कई बार यह व्रत पंचमी तिथि पर भी रखा जाता है, इसकी कुछ वजह होती हैं। वाराणसी के पुरोहित पं. शिवम तिवारी से आइये जानते हैं यही सीक्रेट ..
पं. तिवारी के अनुसार स्कंद षष्ठी व्रत उस दिन रखा जाता है, जब षष्ठी तिथि पंचमी से मिली हुई है। इस कारण कई बार तिथि लोप या अन्य वजहों से स्कंद षष्ठी का व्रत पंचमी तिथि के दिन भी हो सकता है।
पं. तिवारी के अनुसार स्कंद षष्ठी व्रत के लिए धर्म सिंधु और निर्णय सिंधु ग्रंथों में कुछ नियमों का विचार किया गया है। इसके अनुसार जब सूर्योदय और सूर्यास्त के मध्य में पंचमी तिथि समाप्त होती है या षष्ठी तिथि प्रारंभ होती है तब यह दोनों तिथि आपस में संयुक्त हो जाती है। ऐसे में इस दिन को स्कंद षष्ठी व्रत के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।
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तिरुचेन्दुर में प्रसिद्ध श्री सुब्रह्मन्यम स्वामी देवस्थानम सहित तमिलनाडु में कई मुरुगन मंदिर इसी नियम का अनुसरण करते हैं। अगर एक दिन पूर्व षष्ठी तिथि पंचमी तिथि के साथ संयुक्त हो जाती है तो सूरसम्हाराम का दिन षष्ठी तिथि से एक दिन पहले माना जाता है।
पं. तिवारी के अनुसार शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि यानी स्कंद षष्ठी भगवान मुरुगन की पूजा के लिए समर्पित है। इसमें सबसे खास कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की षष्ठी है। इस महीने में तमिलनाडु में कई भक्त छह दिन का उपवास शुरू करते हैं जो सूरसम्हाराम तक चलता है। इसके अगले दिन तिरु कल्याणम मनाया जाता है। वहीं इसके बाद की स्कंद षष्ठी यानी अगहन की स्कंद षष्ठी, सुब्रहमन्य षष्ठी या कुक्के सुब्रहमन्य षष्ठी के नाम से जानी जाती है।
Updated on:
05 Jan 2025 03:28 pm
Published on:
05 Jan 2025 03:27 pm
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