
Special things of lord shiv which always with him
सनातनधर्मावलंबियों में पांच देवों को प्रमुख माना गया है, जिनमें श्री गणेश, श्री हरि विष्णु, मां दुर्गा, देवों के देव महादेव व सूर्य देव हैं। इन पांच देवों में से कलयुग में केवल सूर्य देव को ही दृश्य देव माना गया है। बाकि सभी देवों को कलयुग में अदृश्य देव माना गया है।
वहीं इन आदि पंच देवों में से एक भगवान भोलेनाथ भी हैं। जिन्हें संहार का देवता माना जाता है। वहीं इनके आसानी से प्रसन्न होकर मनचाहा वरदान प्रदान करने के चलते इन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता हैं
भोलेनाथ यायिन भगवान शिव यूं ही भोले और औढर दानी नहीं कहलाते हैं। तभी तो एक पुरातन कथा के अनुसार एक लकड़हारा जब किसी कारणवश एक बेल के पेड़ पर चढ़ा तो कुछ पत्तियां टूट कर शिव-लिंग पर गिर गई। वहीं इसी दौरान उसका पानी से भरे लोटे का पानी भी पेड़ से ही शिव-लिंग पर जा गिरा, ऐसे में भगवान शिव ने इसे पूजा मानकर उसके सारे दु:ख दूर कर देते हैं।
मान्यता के अनुसार भोलेनाथ की कृपा इन भक्तों पर ही नहीं रही बल्कि देवताओं और अन्य जीवों पर भी रहती है। उनके गले में नाग, जटा में गंगा, सिर पर चंद्रमा और हाथ में त्रिशूल-डमरू इसी बात का प्रतीक हैं। लेकिन क्या आप भगवान शिव के इन्हें धारण करने का उद्देश्य और रोचक किस्से के बारे में जानते हैं, क्योंकि कई चीजें ऐसी भी हैं, जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं...
भोलेनाथ : हाथों में त्रिशूल...
सृष्टि के आरंभ से ही भोलेनाथ के हाथों में त्रिशूल का जिक्र मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब शिव जी प्रकट हुए तो उनके साथ ही सत, तम और रज ये तीन गुण भी उत्पन्न हुए, जो कि त्रिशूल के रूप में बदल गए। क्योंकि इन गुणों में सामंजस्य बनाए रखना बेहद आवश्यक था, तो भोलेनाथ ने इन तीनों गुणों को त्रिशूल रूप में अपने हाथ में धारण किया।
भगवान शिव: सृष्टि के संतुलन के लिए डमरू
भगवान शिव ने जिस तरह से सृष्टि में सामंजस्य बनाए रखने के लिए सत, रज और तम गुण को त्रिशूल रूप में धारण किया था। ठीक उसी प्रकार सृष्टि के संतुलन के लिए उन्होंने डमरू धारण किया था।
एक कथा के अनुसार जब देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ तो उन्होंने वीणा के स्वरों से सृष्टि में ध्वनि का संचार किया। लेकिन कहा जाता है कि वह ध्वनि सुर और संगीत हीन थी। तब भोलेनाथ ने नृत्य किया और 14 बार डमरू बजाया। मान्यता है डमरू की उस ध्वनि से ही संगीत के धुन और ताल का जन्म हुआ। डमरू को ब्रह्मदेव का भी स्वरूप माना जाता है।
भगवान शिव : नागराज वासुकी...
भगवान शिव के गले में लिपटे हुए नाग को देखकर कई बार आपके मन में भी ख्याल आता होगा कि आखिर क्यों शिवजी उसे अपने गले में स्थान देते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार नागराज वासुकी भगवान शिव के परम भक्त थे।
वह सदैव ही उनकी भक्ति में लीन रहते थे। इसी बीच सागर मंथन का कार्य शुरू हुआ तब रस्सी का काम नागराज वासुकी ने किया। उनकी भक्ति को देखकर भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने वासुकी को उसे अपने गले से लिपटे रहने का वरदान दिया। इस तरह नागराज वासुकी अमर भी हो गए और भगवान शिव के गले से लिपट कर रहने लगे।
भोलेनाथ : जटा में धारण की गंगा...
पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराज भागीरथ ने अपने पूर्वजों को जीवन-मरण के दोष से मुक्त करने के लिए गंगा का पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तप किया। इससे मां गंगा प्रसन्न हुईं और वह पृथ्वी पर आने को तैयार हो गईं। लेकिन उन्होंने भागीरथ से कहा कि उनका वेग पृथ्वी सहन नहीं कर पाएगी और रसातल में चली जाएगी।
यह सुनकर भागीरथ ने भोलेनाथ की आराधना की। शिव उनकी पूजा से प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा। तब भागीरथ ने उनसे अपने मनोरथ कहा। इसके बाद जैसे ही गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई तो भोलेनाथ ने उनका अभिमान चूर करने के लिए उन्हें अपनी जटाओं में कैद कर लिया। हालांकि गंगा के माफी मांगने पर उन्हें मुक्त भी कर दिया।
भगवान शिव : सिर पर चंद्रमा को किया धारण...
शिव पुराण में एक कथा आती है, जिसके अनुसार भगवान शिव के सिर पर चंद्रमा धारण किया। कथा के अनुसार महाराज दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा के साथ किया था। लेकिन चंद्रमा रोहिणी से अत्यधिक प्रेम करते थे। दक्ष की पुत्रियों ने इसकी शिकायत की। तब दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग से ग्रसित होने का शाप दिया।
इससे बचने के लिए चंद्रमा ने भगवान शिव की पूजा की। भोलेनाथ चंद्रमा के भक्ति भाव से प्रसन्न हुए और उनके प्राणों की रक्षा की। साथ ही चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किया। लेकिन आज भी चंद्रमा के घटने-बढ़ने कारण महाराज दक्ष का शाप ही माना जाता है।
Updated on:
22 Mar 2020 03:42 pm
Published on:
22 Mar 2020 03:27 pm
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