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उत्पन्ना एकादशी 2020 : शुक्रवार को पड़ रही उत्पन्ना एकादशी में इस बार क्या है खास

locationभोपालPublished: Dec 06, 2020 12:01:20 pm

देवी एकादशी भगवान विष्णु की एक शक्ति का रूप…

utpanna ekadashi 2020 puja vidhi,shubh muhurat and importance

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एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता हैं। वहीं इस साल 2020 में उत्पन्ना एकादशी व्रत 11 दिसंबर, शुक्रवार को रखा जाएगा। हिंदू पंचांग के मुताबिक मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन उत्पन्ना एकादशी व्रत किया जाता है।

माना जाता है कि उत्पन्ना एकादशी के दिन एकादशी माता का जन्म हुआ था इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। देवी एकादशी भगवान विष्णु की एक शक्ति का रूप है। उत्पन्ना एकादशी व्रत रखने से शुभ फलों की प्राप्ति होती हैं। साथ ही यह भी बताया जाता है कि इस व्रत को रखने से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है और सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इसलिए भगवान विष्णु के भक्त उत्पन्ना एकादशी का व्रत जरूर करते हैं।

मान्यता है कि इस दिन एकादशी माता ने उत्पन्न होकर राक्षस मुर का वध किया था। इसलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन स्वयं माता एकादशी को आशीर्वाद दिया था और इस व्रत को महान व पूज्नीय बताया था। कहा जाता है कि उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखने से मनुष्य के पूर्वजन्म और वर्तमान दोनों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।

उत्पन्ना एकादशी शुभ मुहूर्त (Utpanna Ekadashi Shubh Muhurat)
सुबह की पूजा का मुहूर्त – 11 दिसंबर, शुक्रवार – सुबह 05:15 से सुबह 06:05 तक।
संध्या पूजा का मुहूर्त – 11 दिसंबर, शुक्रवार – 05:43 PM से 07:03 PM तक।

उत्पन्ना एकादशी व्रत मुहूर्त…
उत्पन्ना एकादशी पारणा मुहूर्त :07:04:38 से 09:08:48 तक 12, दिसंबर को
अवधि :2 घंटे 4 मिनट

उत्पन्ना एकादशी व्रत की पूजा विधि (utpanna ekadashi vrat katha and poojan vidhi)

अन्य एकादशी व्रत की तरह उत्पन्ना एकादशी व्रत का पूजा विधान भी एक समान है, इसके तहत…

1. एकादशी व्रत रखने वाले व्यक्ति को एक दिन पूर्व यानि दशमी की रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए।
2. एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए और उन्हें पुष्प, जल, धूप, दीप, अक्षत अर्पित करना चाहिए।
3. इस दिन केवल फलों का ही भोग लगाना चाहिए और समय-समय पर भगवान विष्णु का सुमिरन करना चाहिए। रात्रि में पूजन के बाद जागरण करना चाहिए।
4. अगले दिन द्वादशी को पारण करना चाहिए। किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन व दान-दक्षिणा देना चाहिए। इसके बाद स्वयं को भोजन ग्रहण करके व्रत खोलना चाहिए।

उत्पन्ना एकादशी मंत्र (Utpanna Ekadashi Mantra)
सत्यस्थ: सत्यसंकल्प: सत्यवित् सत्यदस्तथा।
धर्मो धर्मी च कर्मी च सर्वकर्मविवर्जित:।।
कर्मकर्ता च कर्मैव क्रिया कार्यं तथैव च।
श्रीपतिर्नृपति: श्रीमान् सर्वस्यपतिरूर्जित:।।
भक्तस्तुतो भक्तपर: कीर्तिद: कीर्तिवर्धन:।
कीर्तिर्दीप्ति: क्षमाकान्तिर्भक्तश्चैव दया परा।।

भगवान विष्णु का स्मरण कर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस द्वादश मंत्र का जाप करें।

भगवान विष्णु के पंचरूप मंत्र –
ॐ अं वासुदेवाय नम:
ॐ आं संकर्षणाय नम:
ॐ अं प्रद्युम्नाय नम:
ॐ अ: अनिरुद्धाय नम:
ॐ नारायणाय नम:

ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान।
यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।

ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि।

श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।

ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा (Utpanna Ekadashi Vrat katha)
भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं एकादशी माता के जन्म और इस व्रत की कथा युधिष्ठिर को सुनाई थी। सतयुग में मुर नामक एक बलशाली राक्षस था। उसने अपने पराक्रम से स्वर्ग को जीत लिया था। उसके पराक्रम के आगे इंद देव, वायु देव और अग्नि देव भी नहीं टिक पाए थे इसलिए उन सभी को जीवन यापन के लिए मृत्युलोक जाना पड़ा। निराश होकर देवराज इंद्र कैलाश पर्वत पर गए और भगवान शिव के समक्ष अपना दु:ख बताया। इंद्र की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव उन्हें भगवान विष्णु के पास जाने के लिए कहते हैं। इसके बाद सभी देवगण क्षीरसागर पहुंचते हैं, वहां सभी देवता भगवान विष्णु से राक्षस मुर से अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं। भगवान विष्णु सभी देवताओं को आश्वासन देते हैं। इसके बाद सभी देवता राक्षस मुर से युद्ध करने उसकी नगरी जाते हैं। कई सालों तक भगवान विष्णु और राक्षस मुर में युद्ध चलता है। युद्ध के समय भगवान विष्णु को नींद आने लगती है और वो विश्राम करने के लिए एक गुफा में सो जाते हैं। भगवान विष्णु को सोता देख राक्षस मुर उन पर आक्रमण कर देता है। लेकिन इसी दौरान भगवान विष्णु के शरीर से कन्या उत्पन्न होती है। इसके बाद मुर और उस कन्या में युद्ध चलता है। इस युद्ध में मुर घायल होकर बेहोश हो जाता है और देवी एकादशी उसका सिर धड़ से अलग कर देती हैं। इसके बाद भगवान विष्णु की नींद खुलने पर उन्हें पता चलता है कि किस तरह से उस कन्या ने भगवान विष्णु की रक्षा की है। इस पर भगवान विष्णु उसे वरदान देते हैं कि तुम्हारी पूजा करने वाले के सभी पाप नष्ट हो जाएंगे और उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी।

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