
Why Brahmin Don't Eat Onions And Garlic Story In Hindi
सनातनर्धिवलंबी खान पान से लेकर कर्म तक कई तरह से अलग अलग आचरणों में बंधे हुए हैं। धर्म और जाति के अनुसार ये नियम भी प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग है। एक ओर जहां पंडित पूजा पाठ और धर्म कर्म से जुड़ा माना जाता, वहीं क्षत्रिय सेना या पराक्रम के कार्यों से जुड़ा, लेकिन इसके बावजूद ये धर्म अनेक विविधताओं के बावजूद सभी को आपस में जोड़े रखता है। क्योंकि हर किसी के कार्य का व हर चीज का अपना अलग महत्व है, जो बाकी सब नहीं करते।
ऐसे ही खानपान में भी ब्राह्मण प्याज और लहसुन नहीं खाते, जबकि क्षत्रियों में इसे लेकर कोई मनाही नहीं है।
प्याज और लहसुन के बिना आपको खाना बेस्वाद लगता होगा लेकिन कई ब्राह्मण आज भी इससे दूरी बनाकर चलते हैं। ब्राह्मण प्याज और लहसुन से परहेज क्यों करते हैं, क्या आपके दिमाग में भी ये सवाल कभी कौंधा है?...
इस संबंध में लोग इसके पीछे धार्मिक मान्यताओं का हवाला देते हुए कहते हैं कि ये पदार्थ तामसिक प्रवृत्ति के माने जाते हैं, ऐसे में ब्राह्मण के कर्म के आधार पर भगवान से जुड़े रहने के चलते,ये तामसिक प्रवृत्ति उसे उसके मार्ग से भटकाने का कारण बन सकती थी, इन्हीं कारणों के चलते ब्राह्मण प्याज व लहसुन नहीं खाते। बिना प्याज व लहसुन वाले शाकाहारी भोजन को सात्विक भोजन भी कहा जाता है।
जानें वैज्ञानिक कारण...
वहीं कुछ लोगों के अनुसार इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं। इस रिपोर्ट में हम आपको उन वजहों की जानकारी भी दे रहे हैं जिनके चलते ब्राह्मण प्याज और लहसुन से दूरी बनाते हैं...
फूड कैटगराइजेशन:
आयुर्वेद में खाद्य पदार्थों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है - सात्विक, राजसिक और तामसिक। मानसिक स्थितियों के आधार पर इन्हें हम ऐसे बांट सकते हैं...
सात्विक: शांति, संयम, पवित्रता और मन की शांति जैसे गुण
राजसिक: जुनून और खुशी जैसे गुण
तामसिक: क्रोध, जुनून, अहंकार और विनाश जैसे गुण
पौराणिक कथा: ऐसे समझे कारण...
समुद्र मंथन के बारे में तो हम सभी ने सुना है। समुद्र मंथन के दौरान जब समुद्र से अमृत का कलश निकाला गया था, तो भगवान विष्णु सभी देवताओं को अमरत्व प्रदान करने के लिए अमृत बांट रहे थे,उसी दौरान एक राक्षस भी उनके बीच आकर बैठ गया, ऐसे में गलती से भगवान ने उन्हें भी अमृत पिला दिया था लेकिन जैसे ही देवताओं को इस बात का पता चला तो विष्णुजी ने अपने सुदर्शन चक्र से राक्षसों के धड़ से उनके सिर को अलग कर दिया। हालांकि जब तक उनका सिर धड़ से अलग हुआ तब तक अमृत की कुछ बुंदें उनके मुंह के अंदर चली गई थी, ऐसे में उनका सिर व घड़ दोनों राहु और केतु नाम से अमर हो गए।
विष्णुजी द्वारा जब उन पर प्रहार किया गया तो खून की कुछ बुंदे नीचे गिर गई थी और उन्हीं से प्याज और लहसुन की उत्पत्ति हुई और यहीं वजह है कि इन्हें खाने से इंसान के मुंह से गंध आती है। हालांकि इसके पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण भी है जैसे कि आयुर्वेद में खाद्य पदार्थो को तीन श्रेणियों में बांटा गया है सात्विक, राजसिक, तामसिक। बता दें कि प्याज ओर लहसुन को राजसिक और तामसिक में बांटा गया है।
ये तामसिक चीजें मनुष्य में कुछ केमिकल सिक्रिएशन्स को बढ़ावा देते हैं जिससे उत्तेजना बढ़ाने वाले हार्मोन्स शरीर में ज्य़ादा प्रवाह होते है। अब यदि इसी बात को आध्यात्म से जोड़े तो उत्तेजना से आध्यात्म के मार्ग पर चलने में समस्या उत्पन्न होती है, जिससे एकाग्रता बाधित होती है और संयम क्षमता का नाश होता है। इसी कारण सनातन धर्म में प्याज,लहसुन जैसी तामसिक चीज़ों के सेवन पर मनाही है। ये पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है और इसी विज्ञान को आध्यात्म से जोड़ा गया है।
ये हैं वजह:
अहिंसा: प्याज़ और लहसुन तथा अन्य ऐलीएशस (लशुनी) पौधों को राजसिक और तामसिक रूप में वर्गीकृत किया गया है। जिसका मतलब है कि ये जुनून और अज्ञानता में वृद्धि करते हैं। अहिंसा - हिंदू धर्म में, हत्या (रोगाणुओं की भी) निषिद्ध है।
जबकि जमीन के नीचे उगने वाले भोजन में समुचित सफाई की जरूरत होती है, जो सूक्ष्मजीवों की मौत का कारण बनता है। अतः ये मान्यता भी प्याज़ और लहसुन को ब्राह्मणों के लिये निषेध बनाती है, लेकिन तब सवाल आलू, मोल्ली और गाजर पर उठता है।
अशुद्ध खाद्य: कुछ लोगों का ये भी कहना है कि मांस, प्याज और लहसुन का अधिक मात्रा में सेवन व्यवहार में बदलाव का कारण बन जाता है। शास्त्र के अनुसार लहसुन, प्याज और मशरूम ब्राह्मणों के लिए निषिद्ध हैं, क्योंकि आमतौर पर ये अशुद्धता बढ़ाते हैं और अशुद्ध खाद्य की श्रेणी में आते हैं। ब्राह्मणों को पवित्रता बनाए रखने की जरूरत होती है, क्योंकि वे देवताओं की पूजा करते हैं जोकि प्रकृति में सात्विक (शुद्ध) होते हैं।
सनातन धर्म के अनुसार: सनातन धर्म के वेद शास्त्रों के अनुसार प्याज और लहसुन जैसी सब्जियां प्रकृति प्रदत्त भावनाओं में सबसे निचले दर्जे की भावनाओं जैसे जुनून, उत्तजेना और अज्ञानता को बढ़ावा देती हैं, जिस कारण अध्यात्मक के मार्ग पर चलने में बाधा उत्पन्न होती हैं और व्यक्ति की चेतना प्रभावित होती है। इस कराण इनका सेवन नहीं करना चाहिए।
मान्यताएं: इन बातों का अब कम महत्व है, क्योंकि शहरी जीवन में तो जाति व्यवस्था विलुप्त होने के कगार पर है और बेहद कम लोग ही इन नियमों का पालन करते हैं। आज के दौर के अधिकांश लोग, खासतौर पर युवा पीढ़ी इसे अंधविश्वास से जोड़ कर देखती है या यह वर्तमान जीवन शैली के कारण इनका पालन नहीं कर सकती है।
Published on:
23 Apr 2020 03:45 pm
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