इस परियोजना में जिले में करीब 160 नेस्ट संरक्षित किए गए। जिसमें कुल करीब 3267 बच्चों को वापस चंबल नदी में छोड़ा गया। बता दें कि चंबल नदी में बाटापुर की दो प्रजाति पाई जाती है। जिसमें एक लाल तिलक धारी और ढोर है। राष्ट्रीय चंबल घडिय़ाल अभयारण्य के उप वन संरक्षक डॉ. आशीष व्यास और डीएफओ धौलपुर वी. चेतन कुमार ने बताया कि इन दोनों प्रजाति के कछुओं के अंडों को हर साल संरक्षित करने का प्रयास किया जाएगा। जिससे इनकी संख्या बढ़ सके और यह सुरक्षित रहे।
बजरी माफिया से बचा कर रखा…
चंबल नदी किनारे बजरी माफिया का राज है। धौलपुर और एमपी के पड़ोसी जिले मुरैना की सीमा पर बहने वाली चंबल नदी किनारे जगह-जगह अवैध बजरी खनन होता है। ऐसे में इन्हें संरक्षित करना बड़ा मुश्किल कार्य था। चंबल अभयारण्य और वन विभाग की टीमों ने लगातार मॉनिटरिंग की और इन अंडों पर नजर रखी। अंडे से बच्चे बाहर आने पर इन्हें चंबल नदी में छोड़ दिया गया। साथ ही अंडों को सियार इत्यादि जानवर से भी खतरा रहता है। ये आसान शिकार होते हैं।