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एक ऐसा पेड़ जिसके स्मरण मात्र से ही मिलता है गोदान का पुण्य

धौलपुर. आंवला एकादशी का पर्व जिले भर में आस्था व श्रद्धा के साथ मनाया गया। लोगों ने इस दिन आंवला के वृक्ष की जड़ में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना कर उपवास रखा तथा दान दिया। प्रत्येक संवत के फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी आंवला एकादशी कहलाती है।

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A tree whose memory is found only by virtue of cow

एक ऐसा पेड़ जिसके स्मरण मात्र से ही मिलता है गोदान का पुण्य

एक ऐसा पेड़ जिसके स्मरण मात्र से ही मिलता है गोदान का पुण्य

धौलपुर. आंवला एकादशी का पर्व जिले भर में आस्था व श्रद्धा के साथ मनाया गया। लोगों ने इस दिन आंवला के वृक्ष की जड़ में भगवान विष्णु की पूजा अर्चना कर उपवास रखा तथा दान दिया। प्रत्येक संवत के फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी आंवला एकादशी कहलाती है। इसे रंग भेदनी एकादशी भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस एकादशी को ही सृष्टि की उत्पत्ति के लिए भगवान विष्णु ने भगवान ब्रह्मा के साथ देवता, दानव, राक्षस, यक्ष व गंदर्भ की उत्पत्ति की थी। कहा जाता है कि एक बार भगवान विष्णु ने अवज्ञा प्रकट होने पर पृथ्वी पर चन्द्रमा के समान कांतिमान बिन्दु प्रकट हुआ, जिससे आंवले का पौधा उत्पन्न हुआ। भगवान विष्णु द्वारा उत्पन्न ब्रह्मा, देवता, दानव, राक्षस, यक्ष, गंदर्भ आदि ने अपनी उत्पत्ति के बाद आंवले के पौधे के पास जा कर आराधना की। कहा जाता है कि आंवले के स्मरण मात्र से ही एक हजार गोदान का तथा स्पर्श से दो गुना व सेवन से तीन गुना पुण्य प्राप्त होता है। ऐसी भी मान्यता है कि इस दिन राजस्थान के सीकर जिले के खाटू में श्याम कुण्ड में बाबा श्याम के मष्तक का प्राकट्य हुआ था, तभी से यहां प्रति वर्ष मेला भरता है। आंवला पापों को हरने वालाहै तथा इसके मूल में ब्रह्मा, विष्णु व महेश का, शाखाओं में मुनियों का, टहनियों में देवताओं का, पत्तों में वसु का तथा फलों में प्रजापति का वास रहता है। उत्तर प्रदेश के काशी क्षेत्र में मान्यता है कि भगवान शिव, गौरी से विवाह के बाद पहली बार काशी पहुंचे थे। इस पर उनके स्वागत के लिए काशी नगरी को रंग-गुलाल आदि से सजाया जाता है, तभी से यह परम्परा आज तक जारी है। इसीलिए भगवान शिव की प्रिय नगरी काशी क्षेत्र में इसे रंगभेदनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इसी के अनुरूप जिले भर में घर-घर में लोगों ने आंवला एकादशी का उपवास रख कर पूजा-अर्चना की।