मुशायरे में हुआ पहला दीदार इतिहासकार बताते हैं कि महाराजा भगवंत सिंह ने गजरा का पहला दीदार मुशायरा के दौरान किया था। उस समय दरबार में एक मुशायरा का आयोजन किया गया था। गजरा अत्यंत सुंदर, मोहक और नृत्य कलाओं में पारंगत थी। यही वो पल था जब महाराजा ने गजरा को पहली बार देखा। और देखते ही वह उनके पे्रम में डूब गए। और दोनों एक दूसरे की मोहबत में कैद हुए। भगवंत सिंह और गजरा के बीच पहली नजर का यह पे्रम धीरे-धीरे परवान चढ़ता गया।
पे्रम की अमिट निशानी बनाना चाहते थे महाराज इतिहासकार अरविद शर्मा बताते हैं कि भगवंत सिंह अपनी प्रेयसी गजरा के लिए एक अमिट प्रेम निशानी बनाना चाहते थे जिसे लोग उनके पे्रम के रूप में सदा याद करें। जिसके बाद इस इमारत को ताजमहल जैसी सूरत देनी की कोशिश की गई। इमारत को बनाने के लिए नृसिंह बाग का चयन किया गया। महाराजा भगवंत सिंह चाहते थे कि इसी इमारत में उनकी और गजरा की कबे्रं भी बनाईं जाएं। गजरा और महाराजा की मृत्यु के बाद दोनों को उसी इमारत में दफनाया गया।
ताजमहल की तर्ज पर इमारत का निर्माण महाराजा इस ऐतिहासिक इमारत को प्यार का प्रतीक माने जाने वाले ताजमहल की तर्ज पर कराना चाहते थे। जिसके लिए उन्होंने भरकस प्रयास किया। और इमारत में लाल और सफेद पत्थर का प्रयोग किया गया। इस इमारत में चारों ओर मीनारें, बीच के हिस्से चौकारें, बुलंद दरवाजा, चारों तरफ छोटे-छोटे महराब और मध्य में मकबरा स्थापित किया गया। जब इस मकबरे का काम अपने अंतिम चरण में था तो किन्हीं कारणों से कार्य रुकवा दिया। जिससे इस मकबरे का गुम्बद नहीं बन पाया और यह धौलपुर का ताजमहल गुम्बद के अभाव में अधूरा रह गया। 1859 के आसपास गजरा का इंतकाल हो गया।
खण्डहर हो रही इमारत, प्रशासन ने भी नहीं दिया ध्यान वर्तमान में यह इमारत शहर के सबसे जिले राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय महाराना परिसर में है। लेकिन लंबे समय से यह उपेक्षित है। इमारत पर ध्यान नहीं देने से यह दिनोंदिन खण्डहर में तब्दील हो रही है। इमारत में बने बुर्ज धीरे-धीरे जर्जर होकर धराशायी हो रहे हैं। स्थानीय प्रशासन और पर्यटन विभाग की ओर से इस इमारत को कभी पर्यटन की दृष्टि से नहीं देखा, जिस वजह से यह अब पूरी तरह अलग-थलग हो चुकी है।